आत्मा को जीतना ही परम जय : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण
पालडी के चौधरी परिवार का जगा सौभाग्य, आचार्यश्री का हुआ मंगल प्रवास

अहमदाबाद नगर के डगर-डगर को पावन बना रहें हैं शांतिदूत
-साध्वीप्रमुखाजी, मुख्यमुनिश्री व साध्वीवर्याजी ने भी जनता को किया उद्बोधित
24.06.2025, मंगलवार, अहमदाबाद।वर्ष 2025 के चातुर्मासिक प्रवेश से पूर्व अहमदाबाद नगर की डगर-डगर को पावन बनाने व अहमदाबादवासियों को आध्यात्मिकता से भावित बनाने के लिए जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अखण्ड परिव्राजक, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ गतिमान हैं। नगरवासी अपने आराध्य की इस कृपा का पूर्ण लाभ उठा रहे हैं। आचार्यश्री अहमदाबाद नगर के जिस उपनगर में भी पधार रहे हैं, वहां मानों श्रद्धालुओं का हुजूम उमड़ रहा है। आचार्यश्री का एक स्थान से दूसरे स्थान के लिए विहार हो अथवा कहीं प्रवास, मंगल प्रवचन कार्यक्रम अथवा अन्य कोई भी समय श्रद्धालु निरंतर अपने आराध्य की सेवा-उपासना में जुटे हुए हैं।
मंगलवार को प्रातः की मंगल बेला में युगप्रगधान आचार्यश्री महाश्रमणजी पश्चिम अहमदाबाद तेरापंथ भवन से गतिमान हुए। मार्ग में लोगों को दर्शन देने व आशीष प्रदान करने का क्रम अनवरत जारी था। विहार मार्ग में आने वाले श्रद्धालुओं के मकान, दुकान, प्रतिष्ठान आदि स्थानों पर अपने सुगुरु के मुख से मंगलपाठ सुनने का अवसर प्राप्त कर रहे थे। जन-जन के मानस को आध्यात्मिक अभिसिंचन प्रदान करते अहमदाबाद के पालडी में स्थित श्री गौतम चौधरी के निवास स्थान में पधारे।
यहां आयोजित प्रातःकालीन मुख्य मंगल प्रवचन में समुपस्थित जनता को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन संबोध प्रदान करते हुए कहा कि शास्त्र में परम जय की बात बताई गई है। एक योद्धा संग्राम में दस लाख शत्रुओं को जीत लेता है। दुर्जय संग्राम में भी विजयी बन जाता है तो यह बहुत बड़ी जीत होती है, परन्तु यह जय परम जय नहीं है। जो एक अपनी आत्मा को जीत लेता है, वह उसकी परम जय होती है। अर्थात् दस लाख शत्रुओं को जीतने की अपेक्षा अपनी आत्मा को जीत लेना बहुत बड़ी बात होती है। अपने आपको जीतना बहुत कठिन कार्य है। जैनिज्म में आठ कर्म बताए गए हैं। इनमें मोहनीय कर्म है, उसे कर्मों का राजा कहा जाता है। इस मोहनीय कर्म को जीत लेने से मानों उसे असली विजय का रास्ता प्राप्त हो जाता है।
आदमी जितना भी अपराध करता है, उस अपराध का मूल जिम्मेदार मोहनीय कर्म ही है। राग-द्वेष, काम-क्रोध की वृत्तियां आदमी को पाप की ओर ढकेल देती हैं। हिंसा-हत्या जैसे कार्य भी हो सकता है। मोह को जीतना एक मुख्य लक्ष्य बन जाए तो फिर मोक्ष को पाना आसान हो जाता है। बाहर के शत्रुओं को जीतना विजय की बात तो होती है, लेकिन परम जय तो आत्मा पर विजय पाने से ही होती है।
दुनिया में युद्ध की स्थिति भी कभी-कभी आ जाती है। एक देश दूसरे देश पर आक्रमण कर देता है। कोई बुद्धिमान व्यक्ति बात के माध्यम से समस्या का समाधान करा दे तो बहुत अच्छी बात होती है। हिम्मत होना अच्छी बात है, लेकिन अनावश्यक हिंसा, हत्या, दहशत आदि का माहौल आम जनता को भला क्यों झेलना पड़े। किसी समस्या का समाधान बातचीत के माध्यम से हल किया जा सकता है। आज विश्व के कई देशों में तनाव की स्थितियां हैं, लेकिन हिंसा भी कैसे टले, विश्व में शांति रहे, इसका प्रयास होना चाहिए। आचार्यश्री ने पालडी के चौधरी परिवार को मंगल आशीर्वाद प्रदान किया।
आचार्यश्री ने चतुर्दशी के संदर्भ में हाजरी वाचन के क्रम को संपादित करते हुए साधु-साध्वियों को अनेक प्रेरणाएं प्रदान कीं। आचार्यश्री की अनुज्ञा से मुनि ऋषिकुमारजी, मुनि रत्नेशकुमारजी व मुनि केशीकुमारजी ने लेखपत्र का वाचन किया। आचार्यश्री ने तीनों संतों को दो-दो कल्याणक बक्सीस किए। तदुपरान्त उपस्थित चारित्रात्माओं ने अपने स्थान पर खड़े होकर लेखपत्र का उच्चारण किया।
तदुपरान्त साध्वीवर्याजी, साध्वीप्रमुखाजी व मुख्यमुनिश्री के भी उद्बोधन हुए। अपने स्थान में पदार्पण के संदर्भ में श्री गौतम चौधरी ने अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति दी। बालक अरिष्टनेमि ने अपनी बालसुलभ प्रस्तुति दी। श्रीमती समीक्षा चौधरी ने भी अपनी भवनाओं को अभिव्यक्ति दी। चौधरी व बोथरा परिवार की महिलाओं ने गीत का संगान किया। अहमदाबाद चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के मंत्री श्री विजयराज सुराणा ने भी अपनी भावाभिव्यक्ति दी।
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