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विनम्रता से की गई गुरुसेवा ही मोक्षमार्ग का पथ प्रशस्त करती है-शिरीष मुनि

तप, विनय और आत्मशुद्धि पर आधारित प्रवचन से श्रावकों ने पाया आध्यात्मिक लाभ

बलेश्वर (सूरत)। बलेश्वर में आयोजित धर्मसभा में आचार्य भगवन श्री के सान्निध्य में तप, आत्मध्यान और विनय धर्म की प्रभावशाली चर्चा हुई। सभा में श्रमण संघीय प्रमुख मंत्री श्री शिरीष मुनि जी म.सा. एवं सहमंत्री श्री शुभम मुनि जी म.सा. का विशेष प्रवचन श्रावक-श्राविकाओं को लाभान्वित करने वाला रहा।

प्रमुख मंत्री श्री शिरीष मुनि जी म.सा.ने श्री दशवैकालिक सूत्र के नवम अध्ययन की गाथाओं का विस्तारपूर्वक विवेचन करते हुए कहा कि जो शिष्य गुरु के पास रहते हुए अहंकार, क्रोध, माया और प्रमाद में लिप्त रहता है, वह गुरु की कृपा और ज्ञान से वंचित रह जाता है। उन्होंने कहा कि विनय धर्म ही धर्म का मूल है और विनम्रता से की गई गुरुसेवा ही मोक्षमार्ग का पथ प्रशस्त करती है।

मुनि श्री ने बाह्य और आभ्यंतर तपों की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए बताया कि बारह प्रकार के तपों में ‘स्वाध्याय’ का स्थान दसवां है, जो विनयी व्यक्ति ही कर सकता है। उणोदरी तप का अर्थ है आवश्यकता से बहुत कम आहार ग्रहण करना एवं अपनी आय का अंश दान में लगाना। तीव्र रसों के सेवन से कर्म बंधन बढ़ते हैं, इसलिए निरस रहने का प्रयास करें और आयंबिल तप से इन कर्मों के बंधन को रोका जा सकता है।

युवा मनीषी श्री शुभम मुनि जी म.सा. ने “धन्य धन्य ओ तप के सागर…” सुमधुर भजन की प्रस्तुति देकर सभा को भक्ति में सराबोर किया। उन्होंने कहा कि जैसे तालाब में पानी आने के मार्ग बंद कर दिए जाएं तो वह भरता नहीं, वैसे ही आत्मा में कर्मों के आश्रव को संवर द्वारा रोका जा सकता है। तप से कर्मों की निर्जरा संभव है और इसी से आत्मा की शुद्धि होती है।

उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि तप किसी कामना की पूर्ति हेतु नहीं, अपितु आत्मकल्याण व शुद्धि हेतु किया जाना चाहिए। मनुष्य शरीर तप का माध्यम है, जिससे मोक्षमार्ग प्रशस्त होता है।सभा में सुश्री उर्मिला विजय कुमार गन्ना ने 8 दिन के उपवास का प्रत्याख्यान लिया। अनेक श्रावक-श्राविकाओं ने भी अपने-अपने नियम अनुसार उपवास, एकासन व आयंबिल का प्रत्याख्यान किया।इस अवसर पर दिल्ली, जम्मू, मुंबई सहित देश के विभिन्न क्षेत्रों से श्रद्धालुजन गुरु दर्शन व साधना हेतु उपस्थित रहे।

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