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कर्मवाद का सिद्धांत है जैसी करनी वैसी भरनी : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

10 कि.मी. का विहार कर शांतिदूत पहुंचे चिराई नानी गांव,श्री शक्ति विद्यालय में हुआ मंगल प्रवास

21.03.2025, शुक्रवार,चिराई नानी,कच्छ। जन-जन के मानस को आध्यात्मिक अभिसिंचन प्रदान करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी गांधीधाम का संघप्रभावक प्रवास सुसम्पन्न कर पुनः यात्रायित हो चुके हैं। शुक्रवार को प्रातःकाल की मंगल बेला में शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पडाना में स्थित पाइन इण्डिया परिसर से मंगल प्रस्थान किया। संबंधित परिवार के लोगों ने आचार्यश्री के श्रीचरणों में अपनी प्रणति अर्पित की। उन सभी को मंगल आशीष से आच्छादित करने के उपरान्त अखण्ड परिव्राजक आचार्यश्री अगले गंतव्य की ओर प्रस्थित हुए। बसंत ऋतु के अब धीरे-धीरे गर्मी ने अपना प्रभाव दिखाना प्रारम्भ कर दिया। सूर्योदय के कुछ समय बाद ही सूर्य की किरणें तीखी लगने लगी हैं। सूर्य की किरणें भले ही तीखी हो गईं हों, किन्तु आचार्यश्री की मधुर मुस्कान श्रद्धालुओं में उत्साह बनाए हुए थी। जन-जन को आशीष प्रदान करते हुए लगभग दस किलोमीटर का विहार कर चिराई नानी गांव में स्थित श्री शक्ति विद्यालय में पधारे।

विद्यालय परिसर में आयोजित मुख्य मंगल प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित जनता को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि कर्मवाद का सिद्धांत जैनिज्म और अन्य धर्मों में प्राप्त होता है। कर्मवाद का संक्षिप्त प्राणतत्त्व है- जैसी करनी, वैसी भरनी। बस इतने में ही कर्मवाद का मानों सार आ गया है। शास्त्र में बताया गया है कि आदमी इस लोक और परलोक में भी अपने किए हुए कर्मों के अनुसार कष्ट को प्राप्त होता है, सुख को भी प्राप्त होता है। किए हुए कर्मों का फल पाए बिना, उसे भोगे बिना छुटकारा नहीं मिलता। अपने द्वारा किए गए कर्म स्वयं को ही भोगने होते हैं। अपने कर्म से आदमी कष्ट पाता है। आदमी जैसा कार्य करता है, उसे वैसा फल भोगना ही होता है।

प्राणी जो भी कर्म करता है, उसका फल उसे भोगना ही होता है। आदमी हंसते-हंसते कर्म बांधता है, और जब परिणाम आता है तो आदमी को उतना रोना भी पड़ता है। कोई आदमी चोरी करे और कभी पकड़ लिया जाए तो उसे कितना कष्ट झेलना पड़ता है। उसी प्रकार हिंसा, हत्या में लगे हुए लोगों को भी अपने कर्मों के फल भोगने होते हैं।

आदमी अपने जीवन में यह प्रयास करे कि उससे कोई बुरे कार्य न हों। चोरी, हिंसा, हत्या, ठगी आदि से बचते हुए आदमी को ईमानदारी के पथ पर चलने का प्रयास करना चाहिए। जहां तक संभव हो सके, बेईमानी से बचने का प्रयास करना चाहिए। इस मानव जीवन को दुर्लभ बताया गया है और वर्तमान में हम सभी मानवों को यह सुगमता से प्राप्त है तो आदमी को इस जीवन में धर्म की साधना करने का प्रयास होना चाहिए। जितना संभव हो सके, धर्म की आराधना, साधना करते हुए अपने मानव जीवन का लाभ उठाने का प्रयास करना चाहिए। धर्म को आपत्ति, विपत्ति और संकट भी आ जाए तो आदमी को धर्म नहीं छोड़ना चाहिए। धर्म के प्रति आस्था नहीं टूटनी चाहिए। इस मानव जीवन में धर्म की अच्छी आराधना करें, यह काम्य है।

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