गुजरातसामाजिक/ धार्मिकसूरत सिटी

ज्ञानार्जन के बाधक तत्त्वों से बचें विद्यार्थी : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

-आचार्यश्री के मंगल दर्शन व आशीष से लाभान्वित हो रही गुजरात की जनता

-9 कि.मी. का विहार कर महातपस्वी महाश्रमण पहुंचे साठंबा

-साठंबावासियों व विद्यार्थियों ने सहर्ष स्वीकार की संकल्पत्रयी

09.06.2025, सोमवार, साठंबा, अरवल्ली (गुजरात)

गुजरात राज्य में मानवता व अध्यात्म की गूंज मानों चहुंओर सुनाई दे रही है। यह आध्यात्मिक गूंज जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी की अखण्ड परिव्राजकता के कारण सुनाई दे रही है। गुजरात का चाहे सौराष्ट्र के भाग हो अथवा दक्षिण गुजरात हो या उत्तर गुजरात, हर क्षेत्र के अनेकानेक गांवों, कस्बों, नगरों में यात्रा व प्रवास के दौरान आचार्यश्री की अमृतवाणी गुंजायमान हुई। गुजरात के सुदूर क्षेत्रों में रहने वाले तेरापंथी श्रद्धालु भी अपने आराध्य की ऐसी कृपा को पाकर मानों धन्य-धन्य हो गए हैं। अब युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्ष 2025 के चतुर्मास के लिए अहमदाबाद की ओर गतिमान हैं।

सोमवार को प्रातःकाल की मंगल बेला में शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने जोधपुर गांव से गतिमान हुए। लोगों को पर आशीष प्रदान करते हुए आचार्यश्री ग्रामीण मार्ग से आगे की ओर गतिमान थे। मार्ग के दोनों ओर हरे-भरे वृक्ष व खेतों में छायी हरियाली सहज ही लोगों के मानस को शांति का अनुभव करा रही थी। कई स्थानों पर समूहबद्ध रूप में खड़े ग्रामीणों को आचार्यश्री ने मार्ग में ही विराजकर मंगल प्रेरणा व आशीर्वाद प्रदान किया। लगभग नौ किलोमीटर का विहार कर युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी साठंबा में पधारे तो ग्रामवासियों ने आचार्यश्री का भावभीना स्वागत किया। साठंबा ग्रुप विविध कार्यकारी सहकारी विद्यामंदिर परिसर में पधारे तो वहां के विद्यार्थियों ने पंक्तिबद्ध और करबद्ध खड़े होकर महातपस्वी महाश्रमणजी का अभिनंदन किया।

युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित साठंबावासियों व बड़ी संख्या में उपस्थित विद्यार्थियों को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि हमारे जीवन में ज्ञान का बहुत महत्त्व है। ज्ञान प्राप्ति के लिए विद्यार्थी कहां-कहां पहुंच जाते हैं। देश को छोड़कर विदेश में भी जाकर पढ़ाई करते हैं। ज्ञान दो प्रकार का होता है। एक लौकिक ज्ञान और दूसरा अध्यात्म विद्या का ज्ञान। भूगोल, खगोल, गणित, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान आदि-आदि विषय व हिन्दी, संस्कृत, प्राकृत आदि-आदि भाषाओं का ज्ञान होना लौकिक विद्या के अंतर्गत आते हैं। दूसरी बात है कि आध्यात्मिक ज्ञान। जिसमें अध्यात्म, आत्मा, परमात्मा, मोक्ष, आत्मा की निर्मलता आदि-आदि बातों का समावेश हो सकता है। ज्ञान प्राप्ति के लिए विद्यार्थी विद्यालय, महाविद्यालय और विश्वविद्यालयों में जाते हैं और ज्ञान प्राप्त करते हैं। प्रश्न हो सकता है कि ज्ञान प्राप्ति का उद्देश्य क्या होना चाहिए?

एक उत्तर हो सकता है कि पढाई से आदमी कमाई करने के लायक बन सके, यह शिक्षा का उद्देश्य हो तो हो सकता है, यह गलत भी नहीं है। इसके अलावा ज्ञान प्राप्त करना और ज्ञानी बनकर अपने चित्त को एकाग्र करने और सन्मार्ग पर स्थित होने और दूसरों को भी सन्मार्ग पर लाने का प्रयास करना ही आध्यात्मिक ज्ञान है। विद्या व ज्ञान को प्राप्त कर विद्यार्थियों में सद्ज्ञान की प्राप्ति हो जाए, उनका अच्छा विचार हो, ऐसा प्रयास करना चाहिए। ज्ञान के साथ अच्छे संस्कार भी आएं। संस्कारों से युक्त ज्ञान से विद्यार्थियों का अच्छा विकास होता है और वे विशिष्ट व्यक्ति के रूप में उभरकर सामने आ जाते हैं।

अध्यात्म में बताया गया कि पांच ऐसे कारणों के कारण विद्यार्थी ज्ञान प्राप्त नहीं कर पाता। ज्ञान प्राप्ति की एक बाधा है-अहंकार। ज्ञान प्राप्ति के लिए आदमी के भीतर आदर का भाव और ज्ञानदाता के प्रति भी आदर का भाव होना परम आवश्यक है। विद्यार्थी में अहंकार की भावना होनी ही नहीं चाहिए। ज्यादा गुस्सा भी ज्ञान प्राप्ति में बाधक है। प्रमाद को भी विद्या प्राप्ति में बाधक तत्त्व है। गलत कार्यों में जाने से विद्यार्थियों को बचने का प्रयास होना चाहिए। विद्यार्थी का शरीर स्वस्थ व निरोगी होता है तो ज्ञान अच्छे ढंग से अर्जित कर सकता है। बीमारी भी ज्ञान के अर्जन में एक बाधक तत्त्व है। पांचवीं बात बताई गई कि आलस्य भी ज्ञान प्राप्ति का बड़ा बाधक तत्त्व है। इसलिए विद्यार्थी को आलस्य से बचने का प्रयास करना चाहिए।

आचार्यश्री ने सभी को सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति की प्रेरणा प्रदान की। आचार्यश्री के आह्वान पर विद्यार्थियों ने तीनों संकल्पों को स्वीकार किया। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने भी जनता को उद्बोधित किया।

आचार्यश्री के स्वागत में विद्यालय की ओर से श्री दिलीपसिंह राउल, स्थानीय तेरापंथी उपसभा के संयोजक श्री गौतम बोल्या, श्री मितेश बोल्या, स्कूल की संस्थापक श्रीमती ऊषादेवी (महारानी साहिब), सुश्री महक बोहरा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। स्थानीय विधायक श्री धवलसिंह झाला ने भी आचार्यश्री के स्वागत में अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति दी व पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। स्थानीय तेरापंथ महिला मण्डल व जैन महिला मण्डल ने अपनी-अपनी प्रस्तुति दी। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने भी अपने सुगुरु के समक्ष अपनी प्रस्तुति दी।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button