गुजरातसामाजिक/ धार्मिकसूरत सिटी

शक्ति का गोपन नहीं, सदुपयोग का हो प्रयास : तेरापंथाधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण

अष्टमाचार्य कालूगणी के महाप्रयाण दिवस पर शांतिदूत ने अर्पित की विनयांजलि

-उनके जीवन वृतांत से लाभान्वित बनी जनता

-ठाणे ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने दी अपनी प्रस्तुति, प्राप्त किया मंगल आशीष

29.08.2025, शुक्रवार, कोबा, गांधीनगर।प्रेक्षा विश्व भारती में चतुर्मासरत जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में पर्युषण महापर्व का क्षमापना दिवस के सुसम्पन्नता के उपरान्त भी श्रद्धालु अपने आराध्य की मंगल सन्निधि में आध्यात्मिक लाभ उठा रहे हैं। आठ दिनों तक आचार्यश्री द्वारा ‘भगवान महावीर की अध्यात्म यात्रा’ के वाख्यानमाला के उपरान्त शुक्रवार से पुनः अहमदाबादवासियों को ‘आयारो’ आगम के माध्यम से मंगल प्रेरणा प्रदान करने का क्रम प्रारम्भ किया।

शुक्रवार को ‘वीर भिक्षु समवसरण में समुपस्थित श्रद्धालुओं को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘आयारो’ आगम के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आदमी को अपनी शक्ति का गोपन नहीं करना चाहिए। शक्ति का होना भी एक उपलब्धि होती है। एक निर्बल और एक सबल आदमी होता है। दुनिया में शारीरिक शक्ति का महत्त्व है तो मानसिक शक्ति का भी महत्त्व होता है और आध्यात्मिक शक्ति का बहुत ज्यादा महत्त्व होता है। इसके अलावा जनबल, तनबल, धनबल, मनबल, वचनबल आदि इन सभी शक्तियों से ऊपर अध्यात्म की शक्ति होती है। इसलिए आदमी को अपनी शक्ति का गोपन नहीं करना चाहिए। आदमी को पहले शक्ति का अर्जन करने का प्रयास करना चाहिए और शक्ति उपलब्ध हो जाए तो शक्ति का सदुपयोग करने का प्रयास करना चाहिए।

शक्ति के भी तीन रास्ते बन जाते हैं- शक्ति का दुरुपयोग, शक्ति का सदुपयोग और शक्ति का अनुपयोग। जो आदमी अपनी शक्ति का प्रयोग गलत कार्यों में लगाए, पाप कर्म का बंध करने में लगाए, हिंसक कार्यों में लगाए तो वह उसकी शक्ति का दुरुपयोग हो जाता है। अपनी शक्ति को अच्छे कार्यों में लगाए, किसी की सेवा में लगाए तो शक्ति का सदुपयोग हो जाता है और कोई शक्ति का न तो सदुपयोग करता है और न ही दुरुपयोग करता है तो उसकी शक्ति का मानों अनुपयोग हो जाता है।

आज भाद्रव शुक्ला षष्ठी है। हमारे धर्मसंघ के आठवें आचार्यश्री परम पूज्य कालूगणी का महाप्रयाण दिवस है। वे राजस्थान के छापर नामक कस्बे में जन्मे थे। महापुरुष की जन्मस्थली भी मानों गौरवान्वित हो जाती है। ताल छापर की रज को लोग अपने सर-माथे पर लगाने की इच्छा रखते हैं। वे छोटी अवस्था में आचार्यश्री मघवागणी के पास दीक्षित हो गए। मुनि कालू ने संस्कृत भाषा के अध्ययन में मानों बहुत श्रम किया। मघवागणी के महाप्रयाण के बाद माणगणी व डालगणी तेरापंथ के आचार्य बने। आचार्यश्री डालगणी ने मुनि कालू (छापर) को गुप्त रूप में अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। उस गुप्त पत्र के आधार पर मुनि कालू को आचार्य बनाया गया। कालूगणी तेरापंथ धर्मसंघ के अष्टम आचार्य बने। करीब तैंतीस वर्ष की उम्र में तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य बन गए थे। उनका आचार्यकाल लगभग 27 वर्षों का रहा। आचार्यश्री तुलसी भी उन्हीं के पास दीक्षित हुए थे। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी भी उनके पास दीक्षित हुए। हमारे धर्मसंघ में संस्कृत भाषा के विकास में परम पूज्य कालूगणी का योगदान है। गंगापुर में उन्होंने मुनि तुलसी को अपना युवाचार्य बनाया। आज के दिन उन्होंने सायंकाल महाप्रयाण किया था। उनके महाप्रयाण को 89 वर्ष पूर्ण हुए हैं। वे हमारे धर्मसंघ के अष्टम आचार्य थे। उनके उत्तराधिकारी आचार्यश्री तुलसी बने। आचार्यश्री तुलसी नवमें आचार्य बने। आज आचार्यश्री कालूगणी की पुण्यतिथि है। आचार्यश्री कालूगणी ने अपने ढंग से यात्रा भी की, विहरण किया। अपने युग में कितनों को दीक्षाएं दी थीं। उन्होंने संस्कृत भाषा के विकास का प्रयास किया था।

इस प्रकार उन्होंने अपनी शक्ति का अच्छा सदुपयोग किया था। इसलिए आदमी को अपनी शक्ति का गोपन नहीं करना चाहिए और दूसरी बात है कि शक्ति है तो उसका सदुपयोग करने का प्रयास होना चाहिए और दुरुपयोग से बचने का प्रयास करना चाहिए।

राजस्थान हॉस्पिटल के श्री पृथ्वीराज कांकरिया ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। ठाणे ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपने आराध्य के समक्ष अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। ज्ञानार्थियों की ओर से संकल्पों का उपहार भी अर्पित किया तो आचार्यश्री ने ज्ञानार्थियों को मंगल प्रेरणा प्रदान की।

 

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button