इंद्रियों को नियंत्रित करना ही वास्तविक संयम है – मुनिश्री अजीत सागर जी महाराज

सूरत।दिगंबर जैन भट्टार रोड मंदिर में आयोजित धर्मसभा में पूज्य मुनिश्री निराग सागर जी महाराज एवं मुनिश्री अजीत सागर जी महाराज ने धर्मोपदेश प्रदान किए।
मुनिश्री अजीत सागर जी महाराज ने कहा कि जिस प्रकार मां अपने चारों बच्चों के शांत हुए बिना कार्य नहीं कर सकती, उसी प्रकार जब तक क्रोध, मान, माया और लोभ जैसे चारों कषाय शांत नहीं होते, तब तक आत्मा भी अपने वास्तविक कार्य में प्रवृत्त नहीं हो सकती। अपने ऊपर शासन करना ही संयम है। जब तक परिवार के बड़ों में संयम और सुधार नहीं होगा, तब तक परिवार और धर्म सुरक्षित नहीं रह सकते। संयमी और अनुशासित मुखिया ही परिवार एवं धर्म को सुरक्षित बनाए रखते हैं।
उन्होंने आगे कहा कि समुचित आस्था, समुचित ज्ञान और उत्तम संयम से ही मोक्ष प्राप्त होता है। इतिहास में जितने भी महापुरुष हुए हैं, सभी ने आत्मा पर नियंत्रण और संयम से ही परमात्मा की प्राप्ति की है। इसलिए जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में नियंत्रण आवश्यक है। जीवन को सही दिशा और दशा में परिवर्तन करना ही उत्तम संयम है।
मुनिश्री ने स्पष्ट किया कि इंद्रियों को नियंत्रित करना और प्राणी मात्र की रक्षा करना ही संयम है। स्वेच्छा से लिया गया नियम निर्जरा का साधन है, जबकि मजबूरी में लिया गया नियम संसार का कारण बनता है। उन्होंने कहा कि स्वेच्छा से अपनाया गया संयम कर्मों का नाश कर देता है। मन को अनुशासित करने के लिए उत्तम शास्त्रों का अध्ययन और वैराग्य की साधना आवश्यक है।




