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उधना में मनाया गया तेरापंथ के संस्थापक आचार्य भिक्षु का 266वां अभिनिष्क्रमण दिवस

सामूहिक सामायिक एवं जप अनुष्ठान का आयोजन

SURAT;जैनों के विविध संप्रदायों में एक महत्वपूर्ण स्थान है जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्म संघ का। जैन श्वेतांबर तेरापंथ संप्रदाय के आद्य संस्थापक थे आचार्य श्री भिक्षु। वे धर्म क्रांति के जनक माने जाते हैं। आचार विचार में मतभेदों के चलते आज से लगभग 266 वर्ष पूर्व उन्होंने पूर्व दीक्षित संघ से अभिनिष्क्रमण किया। उनके 266 वें अभिनिष्क्रमण दिवस को श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथी सभा, उधना के तत्वावधान में तेरापंथ भवन, उधना, सूरत में उत्साह पूर्ण तरीके से मनाया गया।
इस अवसर पर सामूहिक सामायिक एवं जप अनुष्ठान का कार्यक्रम आयोजित किया गया। प्रातः 9:30 से 11:00 बजे तक कार्यक्रम चला।
स्वागत वक्तव्य देते हुए श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथी सभा, उधना के अध्यक्ष श्री निर्मल जी चपलोत ने कहा – आचार्य भिक्षु हम सबके आराध्य हैं। उन्होंने आगम के अनेक ग्रंथों का गहन अध्ययन किया। भगवान महावीर के सिद्धांतों को गहराई से जाना एवं समझा। उन्होंने धर्म के शुद्ध स्वरूप को लोगों के सामने रखा। तेरापंथ की आज जो प्रतिष्ठा है उसमें आचार्य भिक्षु का त्याग, समर्पण एवं बलिदान बोल रहा है।
प्रवक्ता उपासक श्री अर्जुन जी मेड़तवाल ने अपने वक्तव्य में कहा – आचार्य भिक्षु एक महान कर्मयोगी आचार्य थे। वे सत्य की खोज के लिए निकल पड़े। धर्म के क्षेत्र में व्याप्त शिथिलाचार और अनुशासनहीनता के सामने उन्होंने बुलंदी से आवाज उठाई। उनका सामाजिक बहिष्कार किया गया। जीवन निर्वाह के लिए पर्याप्त मात्रा में आहार और पानी भी उन्हें नहीं मिलता था। रहने के लिए स्थान भी नहीं दिया जाता था। ऐसी स्थिति में वे श्मशान भूमि जैसी निर्जन भूमि में भी रुक जाया करते थे। उनके सामने अनेक विघ्न आए, संकट आए लेकिन वे अपने मार्ग पर अंडोल होकर आगे बढ़ते गए। उनके द्वारा निरूपित मर्यादाएं तेरापंथ जैन धर्मसंघ के विकास की धरोहर बन गई। उपासक श्री नेमीचंद जी कावड़िया एवं ललित जी कच्छारा ने सुमधुर गीतिका के माध्यम से आर्य भिक्षु को श्रद्धा सुमन अर्पित किए। कार्यक्रम में अच्छी संख्या में श्रावक श्राविकाओं की उपस्थिति रही। कार्यक्रम का संचालन सभा मंत्री श्री मुकेश जी बाबेल ने किया।

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