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ईमानदारी के प्रति बड़े भक्ति की भावना : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

अहमदाबादवासियों ने अपने आराध्य की अभिवंदना में दी भावनाओं को अभिव्यक्ति

-प्रेक्षा विश्व भारती से शांतिदूत ने प्रवाहित की ज्ञानगंगा की अमृतधारा

-चार महीने तक श्रद्धालु लगाएंगे इस निर्मल गंगा में गोते

07.07.2025, सोमवार, कोबा, गांधीनगर।

वर्ष 2002 में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के दसमाधिशास्ता, प्रेक्षा प्रणेता की चतुर्मास स्थली प्रेक्षा विश्व भारती वर्ष 2025 में उनके सुशिष्य तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की चतुर्मास स्थली बन गई है। गत कल युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने वर्ष 2025 के चतुर्मास के लिए इस प्रेक्षा विश्व भारती में भव्य, आध्यात्मिक व महामंगल प्रवेश किया तो अहमदाबादवासी हर्षविभोर हो उठे। गुजरात राज्य में लगातार दूसरा चतुर्मास करने वाले मानवता के मसीहा के अभिनंदन को गुजरात राज्य के राज्यपाल आचार्यश्री देवव्रतजी भी उपस्थित हुए। इस प्रकार यह प्रेक्षा विश्व भारती एक बार पुनः चार महीनों तक आध्यात्मिकता से ओतप्रोत रहेगी। इस परिसर में बने भव्य एवं विशाल वीर भिक्षु समवसरण से वर्षावास भर महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी भक्तों को अपनी अमृतवाणी की वर्षा से आध्यात्मिक सिंचन प्रदान कर उसके मानस को आध्यात्म की फसलों से हरा-भरा बनाएंगे।

सोमवार को वीर भिक्षु समवसरण से वीर भिक्षु के प्रतिनिधि, तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित जनमेदिनी को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि साधु के पांच महाव्रत होते हैं और गृहस्थ श्रावक के बारह व्रतों में पांच अणुव्रत होते हैं। महाव्रतों और अणुव्रतों में चीजें तो वे ही हैं, सीमा अथवा मात्रा का अंतर है। साधु के पांच महाव्रतों में दूसरा है सर्व मृर्षावाद विरमण और अणुव्रत में स्थूल मृषावाद विरमण की बात आती है। शास्त्र में कहा गया है कि मृषा अविश्वास का कारण है, इसलिए मृषा का वर्जन करना चाहिए। अठारह पापों में भी दूसरा पाप मृषावाद पाप होता होता है। साधु के लिए तो तीन करण-तीन योग जीवन भर के लिए मृषावाद का प्रत्याख्यान होता है।

इसी प्रकार गृहस्थ जीवन में भी मृषावाद का विरमण होना ही चाहिए। आदमी अपने जीवन में मृषावाद का परित्याग रखता है तो यह माना जा सकता है कि जीवन में काफी ईमानदारी आ गई है। ईमानदारी के तीन आयाम मानें तो माया वर्जन, मृषा वर्जन और चौर्य वर्जन। इसकार त्रिआयामी ईमानदारी हो जाती है। गृहस्थ जीवन में ईमानदारी को जितना स्वीकार किया जा सके, करने का प्रयास होना चाहिए। इससे गृहस्थ अपने जीवन में बहुत ऊंचा उठ सकता है। मनोबल हो, लोभ न हो, कषाय प्रायः शांत हो तो मृषावाद विरमण की आराधना भी की जा सकती है। पैसे के संदर्भ में आदमी बेईमानी कर सकता है। ज्यादा पैसा पाने के चक्कर में बेईमानी कर सकता है। ईमानदारी के प्रति भक्ति हो जाए तो आदमी थोड़ी कठिनाई का मुकाबला करने को तैयार भी हो सकता है। आदमी को जीवन में ईमानदारी रखने का प्रयास करना चाहिए।

आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वी शकुन्तलाश्रीजी ने अपनी भावाभिव्यक्ति देते हुए सहवर्ती साध्वियों के साथ गीत का संगान किया। साध्वी लब्धिश्रीजी ने अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति दी। अभातेयुप के पूर्व महामंत्री श्री हनुमान लुंकड़ व श्री जसराज बुरड़ ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम-अहमदाबाद के सदस्यों ने गीत का संगान किया। अहमदाबाद चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति ने स्वागत गीत का संगान किया।

 

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