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संतों के प्रवचन से होता है जनकल्याण : राष्ट्रीय संत आचार्यश्री महाश्रमण

10 कि.मी. का विहार कर आचार्यश्री पहुंचे चंद्राला स्थित श्री ज्योति विद्या मंदिर

-आचार्यश्री ने सत्संगति के महत्त्व को किया व्याख्यायित

18.06.2025, बुधवार, चन्द्राला, गांधीनगर।जन-जन के मानस को आध्यात्मिक सिंचन प्रदान करने वाले, जनता को सन्मार्ग दिखाने वाले, सम्पूर्ण गुजरात को मानों आध्यात्मिकता से भावित बनाने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी धवल सेना के साथ बुधवार को गुजरात के साबरकांठा जिले से गांधीनगर जिले की सीमा में मंगल प्रवेश किया। इसके साथ ही आचार्यश्री की अहमदाबाद शहर में प्रवेश व चतुर्मास प्रवेश की निकटता का आभास भी अहमदाबादवासियों ने स्पष्ट अनुभव किया।

बुधवार को प्रातः की मंगल बेला में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने साबरकांठा जिले के दलानी मुवाड़ी गांव से गतिमान हुए। आज भी आसमान में बादल छाए हुए थे। विहार के दौरान वर्षा तो नहीं हो रही थी, किन्तु जमीन और मार्ग पूरी तरह गीले ही दिखाई दे रहे थे। ग्रामीण संकरे मार्ग से गुजरते आचार्यश्री के दर्शन से ग्रामीण जनता ही नहीं, अन्य विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चे भी दर्शन व मंगल मार्गदर्शन से लाभान्वित हुए। आचार्यश्री ने एक-दो स्थानों पर अपने कदम थामकर उन्हें मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। मार्ग में लगे सब्जी के खेतों में कार्य करने वाले लोग भी आचार्यश्री के आशीष को प्राप्त कर आनंदित हुए। एक स्थान पर एक युवक अपने बगीचे से पका हुआ पपिता लेकर आचार्यश्री को श्रद्धापूर्वक अर्पित करने के लिए उपस्थित था, किन्तु उसे जैन साधुचर्या की जानकारी दी गई और आचार्यश्री ने उसे मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। विहार के दौरान आचार्यश्री ने साबरकांठा जिले की सीमा को अतिक्रांत कर गांधीनगर जिले में मंगल प्रवेश किया। गुजरात की राजधानी तो वैसे गांधीनगर के नाम से ही सुप्रसिद्ध है, किन्तु आचार्यश्री ने आज गांधीनगर जिले की सीमा में ही मंगल प्रवेश किया था। हालांकि आचार्यश्री के गांधीनगर जिले की सीमा में प्रवेश के साथ ही अहमदाबाद से निकटता और कम हो गई और अहमदाबादवासियों ने ऐसा महसूस किया कि अब तो हम सभी की भावनाएं फलीभूत होने ही वाली हैं। आचार्यश्री लगभग दस किलोमीटर का विहार कर गांधीनगर जिले के चंद्राला गांव में स्थित श्री ज्योति विद्या मंदिर में पधारे।

विद्या मंदिर परिसर में ही समायोजित प्रातःकालीन के मुख्य मंगल प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित श्रद्धालु जनता को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि साधु-संतों का गांव आदि में आगमन व प्रवास होता है। साधुओं के द्वारा प्रवचन, सत्संग भी किया जाता है। कई रसिक व इच्छुक लोग उस सत्संग, प्रवचन को सुनने वाले बनते हैं। एक वक्ता साधु बोलता है और कितने उसके श्रोता होते हैं। वक्ता द्वारा वाणी से ज्ञान प्रदान करता है और श्रोतागण के द्वारा उस वाणी और ज्ञान को ग्रहण करना भी हो सकता है। यह प्रकार का आदान-प्रदान होता है। जैसे विद्यालयों में विद्या का आदान-प्रदान होता है, उसी प्रकार सत्संगस्थली भी विद्या के आदान-प्रदान का स्थान भी बन सकता है। सत्संगस्थली ज्ञान प्राप्ति का स्थान भी बन जाता है, क्योंकि साधु की ज्ञानमयी वाणी जो साधना संपृष्ट होती है तो वह श्रोता के दिल व दिमाग को कई बार ज्यादा प्रभावित कर सकती है। वक्ता अनेक प्रकार के हो सकते हैं, किन्तु सभी वक्ता के प्रति श्रोता के मन में श्रद्धा का भाव हो अथवा न हो। श्रद्धा का भाव होता है तो श्रोता उस बात को ज्यादा सावधानी से सुन सकता है और हर्षित भी हो सकता है। इस प्रकार वचन, अनुग्रह, श्रवण और श्रद्धान- ये चारों संयुक्त होते हैं तो कल्याण की बात हो सकती है।

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साधु में साधना हो, तपस्या हो और फिर प्रवचन हो। यदि उसमें साधना का गुण न हो तो फिर कल्याण की बात संभव नहीं होती। साधु हो, उसमें साधना हो, त्याग हो और ज्ञान भी हो तो कल्याण की बात हो सकती है। ऐसे संतों का गांवों में आगमन हो जाए और उनका प्रवचन प्राप्त हो जाए तो कितनों का कल्याण हो सकता है। इसलिए साधु की संगति थोड़ी ही देर के लिए प्राप्त हो जाए तो जीवन का कल्याण हो सकता है। संतों के प्रभाव से कभी पापी आदमी भी पाप का परित्याग कर पुनीत आत्मा बन सकता है।

आचार्यश्री ने आगे कहा कि साधु की पदयात्रा तो जनकल्याण के लिए ही होती है। गांवों में रहने वाली जनता के बीच में प्रवचन जाना हो, प्रवचन हो और उससे किसी को समाधान मिल जाए, किसीका आध्यात्मिक कल्याण हो जाए तो कितनी अच्छी बात हो सकती है। हम साधु वाहन का उपयोग नहीं करते हैं तो वह उनका कितना बड़ा त्याग होता है। वाहन आदि के प्रयोग में न जाने कितनी-कितनी हिंसा हो सकती है। पक्षी, कीड़े-मकोड़े, जीव क्या, कभी-कभी तो आदमी की भी हिंसा हो सकती है। वाहन का प्रयोग नहीं करने से साधु के कितने प्रकार के हिंसा आदि से बचाव हो जाता है। अहिंसा की दृष्टि से भी इसका महत्त्व है, संयम भी है, साधना भी है और परोपकार भी ज्यादा हो सकता है।

आचार्यश्री ने इस बार की शेषकाल की सम्पन्नता धीरे-धीरे निकट है। सभी का कल्याण हो और विद्या के लोगों में भी आध्यात्मिक विकास हो। आचार्यश्री के स्वागत में श्री महावीर हिरण, सुश्री चांदनी सिसोदिया, विद्या मंदिर के प्रमुख श्री दशरथ पटेल, प्रिंसिपल श्री राकेशकुमार पटेल ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। स्थानीय तेरापंथ महिला मण्डल की सदस्याओं ने गीत का संगान किया। प्रांतीज ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी।

 

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