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सूरत कोर्ट में व्यापारी पक्ष के पक्ष में तीन वसूली प्रकरणों में निर्णायक आदेश

सूरत। सूरत के द्वितीय अतिरिक्त न्यायाधीश लघु वाद न्यायालय, ब्रिजेन्द्र चन्द्र त्रिपाठी की अदालत ने तीन प्रमुख व्यापारिक वसूली प्रकरणों में वादी व्यापारी के पक्ष में आदेश सुनाकर व्यापार जगत में न्याय का महत्वपूर्ण उदाहरण पेश किया है। इन मामलों में प्रतिवादी व्यवसायियों द्वारा बकाया राशि और विलंब शुल्क का भुगतान न करने के कारण वादी पक्ष को कोर्ट की शरण लेनी पड़ी।

पहला मामला: निकीता सिल्क मिल्स के प्रोपराइटर अशोक सोनी ने कैलाश चंदर भवरलाल माली के खिलाफ 1,71,758/-रुपये के कपड़े की बकाया राशि व विलंब शुल्क वसूलने के लिए केस दर्ज किया था। प्रतिवादी ने शुरू में 35,000/- रुपये का भुगतान करने के,बकाया राशि चुकाने में विलंब किया । वादी ने परिवादी से विलंब फीस न चुकाने पर कोर्ट में केस किया था।जिसमे विद्वान वकील विराज देसाई( वीवी देसाई) की दलीलों को गाह्य रखते हुवे अदालत ने वादी के पक्ष में फैसला सुनाया और प्रतिवादी को 68,876/- रुपये 24% वार्षिक ब्याज सहित भुगतान करने का आदेश दिया। साथ ही मुकदमे का खर्च भी प्रतिवादी को वहन करना होगा।

दूसरा मामला: बालाजी फैब्रिक्स के प्रोपराइटर ने सवाईम्वर साड़ीज़ की मालिक रेखा शर्मा के खिलाफ 99,280/- रुपये के बकाया और विलंब शुल्क की वसूली के लिए केस दायर किया। अदालत ने पाया कि प्रतिवादी ने मुख्य राशि पहले के मुकदमे में चुका दी थी, लेकिन विलंब शुल्क का भुगतान नहीं किया। अदालत ने वादी के पक्ष में आदेश दिया कि प्रतिवादी को 69,545/-रुपये 18% वार्षिक ब्याज सहित चुकाना होगा और मुकदमे का खर्च भी वहन करना होगा।

तीसरा मामला: प्रतीक मोतीलाल अग्रवाल, जो रोहित मोतीलाल अग्रवाल के पावर ऑफ अटॉर्नी हैं, ने मंडप साड़ीज़ के मालिक सुरेंद्र शर्मा के खिलाफ 2,11,154/- रुपये के खरीदे गए माल का विलंब शुल्क 1,43,543/- रुपये वसूलने के लिए मुकदमा दायर किया। अदालत ने एकतरफा सुनवाई (एक्स-पार्टी) के बाद प्रतिवादी को उक्त विलंब शुल्क 18% वार्षिक ब्याज सहित भुगतान करने का आदेश दिया। साथ ही मुकदमे का खर्च भी प्रतिवादी को वहन करना होगा।
न्यायालय ने सभी मामलों में वादी के दस्तावेज़ी प्रमाण और एडवोकेट विराज देसाई की दलीलों को मान्यता देते हुए स्पष्ट आदेश दिए, जिससे व्यापारिक अनुशासन और समय पर भुगतान की महत्ता को रेखांकित किया गया।
सभी आदेश 17 सितंबर 2025 को खुले न्यायालय में सुनाए गए। यह फैसले व्यापार जगत में अनुशासन और वसूली के लिए महत्वपूर्ण मिसाल माने जा रहे हैं।

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