कर्म क्षय का उत्तम साधन है शरीर: आचार्य सम्राट डॉ. शिवमुनि जी म.सा

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6 सितम्बर 2025, अवध संगरीला, बलेश्वर, सूरत।
आचार्य सम्राट डॉ. श्री शिवमुनि जी म.सा. ने अपने उद्बोधन में फरमाया कि व्यक्ति का जीव शरीर रूपी पुद्गल में स्थित होता है और पुद्गल में इच्छा कामना होती है। यदि वह इच्छा कामनाओं से उपर उठकर ज्ञाता दृष्टा भाव में रहता है। कोई भी कार्य करते हुए किसी विषय वस्तु में मोह का पोषण नहीं करता तो वह कर्मो के बंधन से मुक्त रह सकता है।
उन्होंने आगे फरमाया कि व्यक्ति दो प्रकार से जीवन जीता है। आत्महित में जीवन जीने वाला आत्मार्थी एवं इन्द्रियों के विषयों को प्रमुखता देने वाला गुणार्थी होता है। गुणार्थी व्यक्ति मेरी मां, मेरे पिता, मेरी पत्नी, मेरी पु़त्री, मेरा पुत्र, मेरे मित्र, मेरे स्वजन, मेरी कोठी- बंगला आदि को अपना मानकर सारा जीवन व्यतीत कर लेता है। दिन-रात तृष्णा में, पांचों इन्द्रियों में आसक्त रहता वह गुणार्थी होता है। गुणार्थी दुःखी होकर तृष्णा से व्याकुल होता है। धन के लिए हिंसा करता है, चोरी करता है। बार-बार वह पाप करता है।
उन्होंने आत्मार्थी व्यक्ति के लक्षणों की चर्चा करते हुए फरमाया कि आत्मार्थी अपनी आत्मा के लिए सोचता है, चिंतन करता है कि मैं केवल आत्मा हूं। मैं शरीर नहीं हूं, शरीर एक साधन मिला हैं और यह साधन कर्म काटने के लिए मिला है, कर्म बढ़ाने के लिए नहीं मिला है, इसी शरीर से ही कर्मों को काटना है। यह शरीर गजसुकुमाल को मिला, भगवान महावीर आदि अनेक तीर्थंकरों को मिला उन्होंने किस प्रकार तप, कायोत्सर्ग, भेद विज्ञान के द्वारा कर्म को काटकर सिद्ध बुद्ध और मुक्त दशा को प्राप्त किया। हमारा लक्ष्य वैसी दशा को प्राप्त करने का हो।
आचार्य भगवन ने यह भी फरमाया कि व्यक्ति संसार में रहता है तो सांसारिक कार्य करने ही होंगे परन्तु उन्हें करते हुए वह आत्मार्थ की ओर कैसे मुड़ सकता है इस पर कार्य करना चाहिए। गृहणी घर चलाए या भाई दुकान संभाले दोनों ही स्थान पर आत्मा को प्रमुखता देंगे तो निश्चित कर्म निर्जरा की ओर आगे बढेंगे।
प्रमुख मंत्री श्री शिरीष मुनि जी म.सा. ने अपने उद्बोधन में जिन वाणी का सार श्री दशवैकालिक सूत्र के नवम अध्ययन की संपूर्ति पर फरमाया कि जिस साधक में विनय, श्रुत, तप और आचरण जीवन में आ जाता है तो वह साधक समाधिमय जीवन जीता हुआ मोक्ष को प्राप्त कर सकता है।
युवामनिषी श्री शुभम मुनि जी म.सा. ने ‘मुक्ति को पाने की खातिर होवे अंतर ध्यान’ सुमधुर भजन की प्रस्तुति दी।
उधना से आचार्य भगवन के सान्निध्य में सिद्धितप के अंतर्गत श्रीमती मधु पवन कोठारी एवं सुश्री धु्रवी पवन कोठारी ने आज 7 उपवास की तपस्या का प्रत्याख्यान लिया, शिवाचार्य आत्म ध्यान फाउण्डेशन की ओर से स्मृति चिन्ह, शॉल, माला द्वारा सम्मान किया गया।
दिनांक 5 सितम्बर को महासाध्वी डॉ. श्री हर्षप्रभा जी म.सा. की नैश्राय में अध्ययनरत वैरागन भुमि जैन गुरु दर्शन एवं दीक्षा आज्ञा हेतु उदयपुर श्रीसंघ के साथ उपस्थित हुई। जिनकी दीक्षा उदयपुर में में 22 फरवरी 2026 को संभावित है, आचार्य भगवन ने वैरागन को मंगल आशीर्वाद प्रदान किया।
वैरागन बहन का शिवाचार्य आत्म ध्यान फाउण्डेशन एवं स्थानीय महिला मण्डल द्वारा तिलक कर शॉल, माला द्वारा स्वागत सम्मान किया।
आज भोपाल, हैदराबाद, दिल्ली आदि क्षेत्रों से श्रद्धालु गुरु दर्शन हेतु उपस्थित हुए।




