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मन के हारे हार है, मन के जीते जीत : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

रापर प्रवास के दूसरे दिन शांतिदूत ने मन को सुअश्व बनाने की दी प्रेरणा

साध्वीवर्याजी ने भी जनता को किया संबोधित

-रापरवासियों ने स्वागत समारोह में दी अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति

28.03.2025, शुक्रवार, रापर,कच्छ।रापर में दोदिवसीय प्रवास के लिए पधारे, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने रापर प्रवास के दूसरे दिन शुक्रवार को श्री वर्धमान जैन श्रावक संघ आराधना भवन परिसर में बने वर्धमान समवसरण में आयोजित मंगल प्रवचन कार्यक्रम में रापर की ओर से स्वागत समारोह भी समायोजित हुआ।

शुक्रवार को चतुर्दशी तिथि होने के कारण शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में मंगल प्रवचन के दौरान गुरुकुलवासी साधु-साध्वियों की विशेष उपस्थिति भी थी। इसके साथ ही रापर के अन्य गणमान्य लोगों की भी उपस्थिति थी। सिद्ध साधक आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि जीवन में शरीर, वाणी और मन- ये तीन प्रवृत्ति के साधन हैं। जीव के तीनों कर्मचारी हैं। शरीर से आदमी चलना, फिरना, उठना-बैठना, खाना-पीना, घूमना आदि करता है। वाणी से बोलते हैं और मन से चिंतन, कल्पना, स्मृति, विचार, समीक्षा आदि करते हैं। मन एक ऐसा तत्त्व है, जिसे दुष्ट अश्व भी कहा गया है। यह कुलीन अश्व भी हो सकता है। कई जगह कहा जाता है मन के हारे हार है, मन के जीते जीत। कई बार मन हार जाता है तो थोड़ी कठिनाई भी झेलना मुश्किल हो जाता है और जिसके पास साहस है, वह थोड़ी कठिनाई व साहस के साथ आगे बढ़ जाता है।

जीवन में मन की अच्छी स्थिति रहे तो जीवन काफी अच्छा रह सकता है। मन की अच्छी स्थिति के सबसे पहले मन में प्रसन्नता, शांति रहे और दूसरी बात बल और हिम्मत रहे तथा तीसरी बात है कि विचार करें तो सद्विचार ही करें। ये तीन चीजें मन के साथ जुड़ जाएं तो मन प्रसन्न रह सकता है। आदमी के चित्त में प्रसन्नता रहनी चाहिए। मन प्रसन्न होता है तो आदमी अच्छा कार्य कर सकता है, थोड़ा परिश्रम कर सकता है। मन खिन्न है, मन में कोई दुःख है तो भला आदमी क्या कर सकता है, प्रसन्नता को कहां जा सकता है। प्रिय के वियोग से दुःखी और वियोग से सुख की अनुभूति होती है। आदमी को अनुकूलता-प्रतिकूलता की स्थितियों में समता-शांति में रहने का प्रयास करना चाहिए। मनोबल है तो आदमी परेशानियों को भी गिराया जा सकता है।

कठिनाइयां तो किसी के भी जीवन में आ सकती हैं। कभी व्यापारिक कठिनाई, कभी सामाजिक कठिनाई तो कभी पारिवारिक कठिनाई, कहीं अपमान, कहीं विरोध आदि तो कहीं कोई धमकी आदि भी दे सकता है। इन सबके बावजूद भी आदमी के पास मनोबल हो तो आदमी कठिन परिस्थिति में समता भाव में रह सकता है। मनोबल होता है तो आदमी किसी भी परेशानी से बाहर निकल सकता है। आचार्यश्री ने प्रसंगवश कहा कि विज्ञप्ति को इन वर्षों में मैंने देखा है कि बहुत काफी प्रामाणिक और अच्छी बातें आ रही है। विज्ञप्ति में आई है तो बहुत वजनदार बात है। आचार्यश्री तुलसी के जीवन में कितने विरोध आए। उनका वर्णन उनकी आत्मकथा से प्राप्त हो सकता है। विरोध में आदमी को हिम्मत रखने का प्रयास करना चाहिए। विरोध होने पर भी आदमी को समता, शांति में रहने का प्रयास करना चाहिए। मन में शांति, सद्विचार, मनोबल है तो मन रूपी अश्व सुअश्व अथवा कुलीन अश्व बना रह सकता है।

आज चैत्र कृष्णा चतुर्दशी है। यह चैत्र का महीना अब इस विक्रम संवत् सम्पन्न होने वाला है। आगे वि.सं. 2082 प्रारम्भ होने वाला है। आज चतुर्विध धर्मसंघ के सामने हाजरी का सुन्दर क्रम है। आचार्यश्री ने हाजरी के क्रम को संपादित किया। मुमुक्षु वैरागियों, समणियों को भी पावन प्रेरणा प्रदान की। मुनि निकुंजकुमारजी के साथ मुनि मार्दव को मुमुक्षु बनाने की प्रेरणा प्रदान की। आचार्यश्री की अनुज्ञा से साध्वी देवार्यप्रभाजी व साध्वी धन्यप्रभाजी ने लेखपत्र का वाचन किया। आचार्यश्री ने दो-दो कल्याणक बक्सीस किए। तदुपरान्त उपस्थित साधु-साध्वियों ने अपने स्थान पर खड़े होकर लेखपत्र उच्चरित किया।

आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीवर्या साध्वी सम्बुद्धयशाजी ने रापरवासियों को उद्बोधित किया। स्वागत समारोह में स्थानीय पूर्व विधायक श्री पंकजभाई मेहता, छह कोटि संघ के प्रमुख श्री कीर्तिभाई मोरबिया, आठ कोटि संघ के अध्यक्ष श्री नवीन भाई वोरा, स्थानीय बे चौबीसी संघ के प्रमुख श्री अशोक भाई, ‘बेटी तेरापंथ की’ ओर से श्रीमती छाया बाबरिया, बालिका खुशी, श्री रमेशभाई दोसी व कच्छ-भुज की श्री वाड़ीभाई मेहता ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी।

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