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समभाव से जीवन में आती है सरलता : आचार्य सम्राट डॉ. श्री शिवमुनि जी म.सा.

सूरत। आचार्य सम्राट डॉ. श्री शिवमुनि जी म.सा. ने अपने उद्बोधन में कहा कि जीवन में समभाव आवश्यक है, क्योंकि समभाव से सरलता आती है और यह सरलता मिथ्यात्व को तोड़कर जड़-जीव के भेदज्ञान से उत्पन्न होती है। सम्पूर्ण लोक में आत्मा विद्यमान है और आत्मा का स्वभाव ज्ञाता-दृष्टा भाव में रहना अर्थात जानना और देखना है। उन्होंने कहा कि आज विश्व में जो युद्ध हो रहे हैं, वे अहंकार के कारण हैं, कोई भी देश झुकना नहीं चाहता, परिणामस्वरूप हिंसा और विनाश बढ़ रहा है। परिवार में भी यदि परस्पर प्रेम और समभाव नहीं है तो झगड़े होते हैं। जीवन में पहला सहयोग मां का, दूसरा पिता का, तीसरा गुरु का और चौथा अपने हृदय का है, साथ ही प्रकृति भी बड़ा सहयोग देती है।

आचार्यश्री ने आगे कहा कि जैन दर्शन कर्मसिद्धांत पर आधारित है, जैसा कर्म व्यक्ति करता है वैसा ही फल उसे प्राप्त होता है। मन चंचल होने के कारण मन से भी कर्मबंध हो जाता है, अतः मन के पीछे नहीं भागना चाहिए। उन्होंने स्पष्ट किया कि यदि कोई गाली दे और उसे समभाव से सहन कर लिया जाए तो यह 66 करोड़ उपवास के बराबर पुण्य है।

प्रमुख मंत्री श्री शिरीष मुनि जी म.सा. ने कहा कि शरीर और स्थान को अपना मानना मिथ्यात्व का पोषण है। शरीर की चिंता और साता ढूंढना मोह शत्रु को बढ़ावा देता है, जिससे व्यक्ति कर्मबंधन में फंसता है। इस अवसर पर युवा मनीषी श्री शुभम मुनि जी म.सा. ने सुमधुर भजन ‘‘तूझे देखना इबादत, तेरी याद बंदगी है’’ प्रस्तुत किया।

रानियां (हरियाणा), विजयनगर (राजस्थान), जोधपुर, उदयपुर आदि स्थानों से श्रद्धालु बड़ी संख्या में आचार्य भगवन के दर्शन हेतु उपस्थित हुए। विजयनगर से श्री प्रवीण संचेती ने आचार्यश्री के सान्निध्य में 93 उपवास का प्रत्याख्यान लिया, जिनका शिवाचार्य आत्म ध्यान फाउण्डेशन की ओर से शॉल, माला और स्मृति चिन्ह द्वारा सम्मान किया गया।

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