
सूरत। जीएसटी नियमों की जटिलताओं और अधिकारियों की व्याख्या में भिन्नता के कारण व्यापारियों को कई बार अनावश्यक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। विशेष रूप से ई-वे बिल और ई-इनवॉइस से जुड़ी छोटी-छोटी गलतियां भी जुर्माने और पूछताछ का कारण बन सकती हैं।
जीएसटी नियमों के अनुसार, यदि किसी व्यापारी द्वारा किसी अन्य व्यापारी को 50 हजार रुपये से कम का माल बेचा जाता है, तो ई-वे बिल बनाना अनिवार्य नहीं है। लेकिन व्यवहार में, जब ट्रांसपोर्ट पर माल की जांच होती है, तो अधिकारी कुल माल की कीमत जोड़कर देखते हैं, भले ही वह अलग-अलग विक्रेताओं से लिया गया हो।
टेक्स एडवाइजर नारायण शरणा ने बताया कि यदि किसी व्यापारी ने 3 अलग-अलग व्यापारियों से क्रमशः 15 हजार, 25 हजार और 20 हजार रुपये का माल खरीदा है, तो अधिकारी इसे संयुक्त रूप से 60 हजार का ट्रांजैक्शन मानते हैं और ई-वे बिल की मांग करते हैं। इस स्थिति में व्यापारी पर जुर्माने की कार्रवाई भी की जा सकती है।
इसलिए सुझाव है कि व्यापारी प्रत्येक बिल पर भले ही वह 50 हजार से कम का हो, ई-वे बिल बनवाएं, ताकि किसी तरह की व्याख्या के अंतर या चेकिंग के दौरान परेशानी न हो।
इसके अतिरिक्त, ई-वे बिल व ई-इनवॉइस पर हस्ताक्षर व फर्म की मुहर भी अनिवार्य हैं। कई व्यापारी जल्दबाजी में इन दस्तावेजों पर हस्ताक्षर और सील करना भूल जाते हैं, जिससे चेकिंग के समय अधिकारियों को संदेह होता है कि माल कच्चा है या बिल बाद में रद्द किया जा सकता है।
इस तरह की लापरवाही से बचने के लिए व्यापारी ई-वे बिल, इनवॉइस और अन्य दस्तावेजों को पूर्ण रूप से तैयार कर ही ट्रांसपोर्ट में माल भेजें।
व्यापारिक संगठनों ने अपील की है कि व्यापारीगण नियमों की पूर्ण जानकारी रखें और लापरवाही से बचें, ताकि जीएसटी विभाग के अधिकारियों की कार्रवाई से बचा जा सके और व्यापार निर्बाध रूप से चलता रहे।