सम्यगदृष्टि ही धर्म की वास्तविक नींव है”-मुनिश्री समर्पित सागर जी म.सा.

सूरत। सूरत में पूज्य खरतरगच्छ आचार्य श्री जिनपीयूषसागर सूरीश्वरजी म.सा. की पावन निश्रा में विराजित उनके शिष्य श्री समर्पित सागर जी म.सा. ने आज के प्रवचन में आत्मशुद्धि के महत्व पर गहरा प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि अगर आत्मा में पाप का सूक्ष्मतम अंश भी रह जाए, तो वह जीव को मोक्ष के मार्ग पर आगे नहीं बढ़ने देता।
मुनिश्री ने जोर देकर कहा कि सम्यग्दृष्टि जीव का वास्तविक आभूषण है। यह केवल बाहरी दिखावा नहीं, बल्कि आत्मा की आंतरिक पवित्रता और सही दृष्टि है। यदि किसी विवशता या अज्ञानता के कारण पाप हो भी जाए, तो उसका पश्चाताप और प्रायश्चित्त करने का भाव अत्यंत अनिवार्य है। यही भाव आत्मा को उस पाप के बंधन से मुक्त करता है।
उन्होंने पूज्य आचार्य भगवंत श्री शांतिसूरी म.सा. के धर्म प्रकरण के वचनों का स्मरण करते हुए कहा कि धर्मरूपी रत्न को धारण करने के लिए सर्वप्रथम सम्यग्दृष्टि की आवश्यकता होती है। सम्यग्दृष्टि के बिना धर्म केवल एक बाहरी आडंबर बनकर रह जाता है, जिसमें क्रियाएं तो होती हैं, लेकिन भाव नहीं होते। वहीं, जब धर्म सम्यग्दृष्टि के साथ जुड़ता है, तो वह मोक्ष का कारण बन जाता है।

मुनिश्री ने आज के प्रवचन से तीन महत्वपूर्ण संदेश दिए:
• सम्यगदृष्टि: यह धर्म का पहला और सबसे महत्वपूर्ण सोपान है। इसके बिना कोई भी धार्मिक क्रिया सफल नहीं हो सकती।
• पाप और प्रायश्चित्त: पाप से बचना आत्मशुद्धि का मूल है, और गलती हो जाने पर उसका प्रायश्चित्त करना उससे भी महत्वपूर्ण है।
• भावना: धर्म का स्वरूप केवल क्रियाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि उसमें पवित्र और शुद्ध भावना का होना अत्यंत आवश्यक है।
बाड़मेर जैन श्री संघ के वरिष्ठ सदस्य चंपालाल बोथरा ने मुनिश्री समर्पित सागर जी म.सा. के प्रवचनों को समाज के लिए एक प्रेरणा स्रोत बताया। उन्होंने कहा, “आज मुनिश्री ने हमें यह समझाया कि धर्म में मंदिर जाने या पूजा करने के साथ साथ यह हमारे भीतर की चेतना को जगाने की एक प्रक्रिया है। हम सभी को अपने जीवन में सम्यग्दृष्टि को अपनाना चाहिए, ताकि हमारे धार्मिक कार्य सच्चे अर्थों में मोक्षदायी बन सकें। मुनिश्री का यह संदेश हमें न केवल धर्म के प्रति, बल्कि अपनी आत्मा के प्रति भी अधिक जागरूक बनाता है। यह हम सभी के लिए एक अनमोल मार्गदर्शन है।”आचार्य श्री से मिलने डोंडाइचा ,रायपुर , जोधपुर , बीकानेर , हिंगोली , दुर्ग आदि नगरों से गुरुभक्त पधारे और सभी ने दर्शन वंदन का लाभ लिया ।




