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जीवन का सबसे बड़ा शत्रु अहंकार-मुनि समर्पितसागरजी म.सा

बाड़मेर जैन श्री संघ का सर्वमंगलमय वर्षावास-2025 : संयम,शांति और दृष्टिकोण परिवर्तन का संदेश

सूरत। कुशल दर्शन दादावाड़ी, पर्वत पाटिया, सूरत में बाड़मेर जैन श्री संघ के तत्वावधान में चल रहे सर्वमंगलमय वर्षावास-2025 के अंतर्गत पूज्य खरतरगच्छाचार्य श्री जिनपीयूषसागर सूरीश्वरजी म.सा. के शिष्य पूज्य श्री शाश्वतसागरजी म.सा. एवं समर्पितसागरजी म.सा. ने प्रेरणादायक प्रवचनों के माध्यम से श्रद्धालुओं को जीवन की गहराइयों में झांकने का संदेश दिया।

पूज्य श्री शाश्वतसागरजी म.सा. ने अपने ओजस्वी प्रवचन में कहा कि जैसे गर्मी में शरीर के लिए फ्रिज और ए.सी. की आवश्यकता होती है, वैसे ही मन-मस्तिष्क की गर्मी को संयम,शांति और समर्पण से शीतल करना जरूरी है। आज मनुष्य बाहरी सुख-सुविधाओं के पीछे भाग रहा है, परंतु आत्मा की शांति के लिए संयम और आत्मचिंतन को भूलता जा रहा है।

घर की रामायण”-रिश्तों का आईना-पूज्य श्रीजी ने पालिताना की पावन टोंक में सहस्रफणा पार्श्वनाथ मंदिर के बाहर तीन विशेष पुतलियों का संदर्भ देते हुए बताया कि सर्प वाणी और क्रोध का, बिच्छू द्वेष और चुभन का तथा वानर चंचलता और अस्थिरता का प्रतीक हैं। उन्होंने समझाया कि ये प्रतीक पारिवारिक जीवन में सास, बहू और ननद के रिश्तों का उपहास नहीं, बल्कि आत्मा की परीक्षा का संकेत हैं। इनसे बचने के लिए प्रेम, करुणा, संयम और आत्मदर्शन आवश्यक है।

रामायण प्रसंग का उल्लेख करते हुए उन्होंने बताया कि राजा जनक ने सीता को विदाई में गहनों के बजाय ‘संमति’ (विवेक और निर्णय क्षमता) दी थी, जिसके बल पर सीता वनवास में भी अडिग रहीं। उन्होंने कहा कि आज समाज बेटियों को गहने तो देता है, परंतु निर्णय की शक्ति नहीं देता, जिससे वे बाहरी रूप से समृद्ध लेकिन आंतरिक रूप से असहाय बनती हैं।

भावपूर्ण दृष्टांत:बहुरूपिया और धर्म का बोध-पूज्य समर्पितसागरजी म.सा. ने एक मार्मिक प्रसंग में बताया कि एक पुत्र अपने वृद्ध पिता को मृत्यु से पूर्व धर्म का बोध कराने के लिए बहुरूपिया बुलाता है। तीन दिन के उपदेश के बाद पिता का देहांत हो जाता है, लेकिन बहुरूपिया पारिश्रमिक लेने से इंकार कर देता है। उसका तर्क था कि उसने धर्म सुनाया, लेकिन रोगी पिता के जीवन में न समता थी न शांति। इस अनुभव से उसका स्वयं का दृष्टिकोण बदल गया।

पूज्य श्रीजी ने जीवन में तीन सत्य समझाए- तात्कालिक सत्य (क्षणिक लाभ),समकालीन सत्य (समाज के अनुकूल) और सार्वकालिक सत्य (धर्म, संयम, करुणा)। उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति सार्वकालिक सत्य से जुड़ता है, वही सही मायने में सुख, साधना और सद्गति प्राप्त करता है।

अहंकार :अदृश्य शत्रु-पूज्य श्रीजी ने जीवन का सबसे बड़ा शत्रु अहंकार को बताते हुए कहा कि ‘मैं ही अच्छा, मैं ही सच्चा’ का भाव व्यक्ति को भीतर से खोखला कर देता है। उन्होंने उदाहरण दिया कि पागल के मन में भी सत्कथाएं प्रवेश कर सकती हैं, लेकिन अहंकारी व्यक्ति कभी धर्म का मार्ग नहीं पकड़ पाता।

आत्मिक संदेश:पागल बनो, अहंकारी नहीं-पूज्य श्रीजी ने अंत में कहा कि जीवन में ज्ञानी नहीं, विनम्र और साधक बनना चाहिए। खाली मन में ही गुरु और धर्म टिकते हैं। संघ के वरिष्ठ सदस्य चम्पालाल बोथरा ने जानकारी दी कि प्रवचन के पश्चात बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने आत्ममंथन कर जीवन में संयम और दृष्टिकोण परिवर्तन का संकल्प लिया।

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