संतोष शर्मा : संघर्ष, सेवा और संस्कार की प्रेरक गाथा

संतोष शर्मा का जन्म 5 फरवरी 1963 को जमशेदपुर (अब झारखंड) में हुआ। मूल रूप से राजस्थान के झुंझुनूं जिले के खेतड़ी तहसील के रोजड़ा गांव निवासी हैं। उनके पिता स्वतंत्रता के बाद जमशेदपुर आकर जादूगोड़ा यूरेनियम कॉरपोरेशन में व्यवसाय शुरू किया।
*शिक्षा का संघर्षपूर्ण सफर*
प्रारंभिक शिक्षा गांव के स्कूल में गोबर उठाने और पुताई जैसे अनुभवों के बीच शुरू हुई। फिर जादूगोड़ा के सेंट्रल स्कूल में पढ़ाई शुरू की लेकिन कंपनी कर्मचारियों के बच्चों को ही पढ़ाने के नियम से बाहर कर दिए गए। पांचवीं से आठवीं तक बंगाली स्कूल में 5 किमी पैदल आना-जाना पड़ा। इसके बाद रांची मारवाड़ी हाई स्कूल में पढ़ाई की। कॉलेज की पढ़ाई उड़ीसा के डालमिया कॉलेज, राजगंगपुर से पूरी की जहां हिंदी से अंग्रेजी माध्यम में संघर्ष कर ग्रेजुएशन किया। CA-CS की पढ़ाई भी की, लेकिन पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण पूरी नहीं कर सके।
*प्रोफेशनल यात्रा*
महज ₹300 की पहली नौकरी से शुरुआत की। ऑडिटिंग में अनुभव लिया और कोलकाता के सिंघानिया ग्रुप में कार्य किया। 1987 में सूरत आकर प्रतिभा ग्रुप से जुड़ गए। यार्न और टेक्सटाइल इंडस्ट्री का गहरा अनुभव प्राप्त किया। सूरत की पहचान बनाई। कपड़ा व्यापार में मास्टर क्या करता है, फैब्रिक कैसे बनता है, यह नजदीक से जाना और बड़े-बड़े ब्रांड्स के लिए काम किया।

*सामाजिक और राजनीतिक योगदान*
1992 में दंगों के बाद सामाजिक सेवा में सक्रिय हुए। बीजेपी में सक्रिय भूमिका निभाई। अनेक प्रशासनिक अधिकारियों से अच्छे संबंध बने। रक्तदान, मतदान जागरूकता, विकलांग शिविर, गौसेवा, पुलिस स्टेशन निर्माण जैसे कई सामाजिक कार्य किए। अखिल भारतीय मारवाड़ी युवा मंच के फाउंडर सचिव बने। विप्र फाउंडेशन, राजस्थान युवा संघ में नेतृत्व किया। बीजेपी प्रवासी प्रकोष्ठ के सूरत शहर अध्यक्ष रहे। GST आंदोलन में राजस्थान भाजपा के नेताओं के साथ मिलकर सूरत सहित गुजरात में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

*संस्कार और जीवन दर्शन*
शर्मा जी का मानना है—“कर्म ही पूजा है, हम केवल माध्यम हैं।” गांव के संस्कार, ब्राह्मण कुल की परंपरा और संघर्ष के दिनों ने सेवा का स्वाभाविक भाव दिया। वे कहते हैं—“ईमानदारी सबसे बड़ा धर्म है। कोई भी व्यक्ति मेहनत और सेवा से ही समाज में स्थान बना सकता है।” गरीब बच्चों की शिक्षा, रक्तदान, समाज सेवा के अनेक क्षेत्रों में सक्रिय योगदान देते रहे।
*जीवन का सार*
संतोष शर्मा की जीवन गाथा संघर्ष, परिश्रम, त्याग और सेवा की प्रेरणा है। छोटे से गांव से निकलकर सूरत जैसे महानगर में अपनी पहचान बनाई और आज भी अपने संस्कारों और समाज सेवा के संकल्प से जुड़े हुए हैं।
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