युगप्रधान आचार्य श्री तुलसी के 29वें महाप्रयाण दिवस पर श्रद्धाभरा नमन-मुनिश्री कमल कुमार

आचार्य श्री तुलसी का बाह्याभ्यन्तर विराट और आकर्षक व्यक्तित्व था। गौरवर्ण विशाल भाल प्याले जैसी स्नेहिल आंखें लम्बे लम्बे कान और कानों पर काले काले बाल सूरिले कंठ हाथ पैरों की सुन्दर आकृति मधुर और तत्त्व भरी वाणी शरणागत को मंत्र मुग्धकर देती। आन्तरिक व्यक्तित्व इससे भी उच्च स्तर का था। समिति गुप्ति की जागरूकता योगों की स्थिरता लक्ष्य के प्रति सर्वात्मना समर्पित आचार निष्ठ अनुशासन प्रिय अध्यात्म से ओतप्रोत दूरदर्शी चिंतन स्वपर कल्याण में तत्परता अनाग्रह वृत्ति के धनी थे आचार्य श्री तुलसी।
मात्र 11 वर्ष की अवस्था में तेरापंथ धर्म संघ के अष्टमाचार्य परम पूज्य कालूगणी से दीक्षित शिक्षित विकसित हुए। मात्र 22 वर्ष की अवस्था में पूज्य कालूगणी ने अपना उत्तराधिकारी बनाकर तेरापंथ संघ को दीर्धजीवी और आधुनिक बना दिया। गुरूदेव तुलसी मात्र तीन दिन ही युवाचार्य रहे तीज के दिन आपको चार तीर्थ के मध्य युवाचार्य बनाया गया और छठ के दिन पूज्य कालूगणी का संथारा पूर्वक देवलोक गमन हो गया। आचार्य के देवलोक होते ही युवाचार्य आचार्य बन जाते है। गुरूदेव तुलसी तीन दिन पूर्व युवाचार्य बने और तीन दिन बाद विधिवत आचार्य पद पर अर्थात भाद्रव शुक्ला नवमी को प्रतिष्ठित हुए। तेरापंथ धर्म संघ में सबसे छोटी अवस्था में आचार्य श्री तुलसी ही आचार्य पद पर प्रतिष्ठित हुए। आपका हर दूरदर्शी सपना तेरापंथ को गतिमान बनाने वाला सिद्ध हुआ। आचार्य श्री तुलसी से पूर्व साध्वियों का अध्ययन नाम मात्र ही कहा जा सकता था। आज जो साध्वियों का हर क्षेत्र में विकास देख रहे है यह आचार्य श्री तुलसी की ही देन कह सकते है। महिला मण्डल, युवक परिषद्, कन्या मण्डल, किशोर मण्डल, ज्ञानशाला, उपासक श्रेणी, समण श्रेणी सब आचार्य तुलसी की ही देन है। आगम साहित्य, अणुव्रत साहित्य, प्रेक्षाध्यान साहित्य, जीवन विज्ञान पाठ्यक्रम गद्य साहित्य, पद्य साहित्य विविध भाषाओं में आधुनिक शैली में प्रांजल साहित्य जो आज हम देख रहे हैं। यह सब आचार्य तुलसी की महान देन है। साहित्य के कारण ही जैन अजैन आज तेरापंथ को बड़ी श्रद्धा से निहार रहे हंै। जैन विश्व भारती के कारण कितने कितने बौद्धिक लोगों से सहज जुड़ना हो रहा है। दिगम्बर श्वेताम्बर समाजके लिए अध्ययन का एक विश्वसनीय केन्द्र बना है अनेक विदेशी लोग जैनत्त्व तेरापंथ तत्त्व को आसानी से समझ सकते हैं। प्रेक्षाध्यान अणुव्रत जीवन विज्ञान को जैनों से ज्यादा अजैनों ने अपना कर सात्विक स्वच्छ और आनंदमय जीवन बनाया है। तेरापंथ धर्मसंघ में सबसे बड़ा आचार्यकाल आप का ही रहा है। आपने पंजाब से कन्याकुमारी, राजस्थान से कोलकात्ता तक की पैदल यात्रायें करके मानव धर्म का जो प्रचार किया है उसे युग नहीं शताब्दियों तक विस्मृत नहीं किया जा सकता। वर्तमान के पदालिप्सित युग में हर तरह से सक्षम होते हुए भी आचार्य पद का विसर्जन कर स्वर्णिम इतिहास बना दिया। आपकी ही दूरदर्शिता से हमें अप्रमत्त अध्यात्म योगी उन्नत विचारक मृदु अनुशास्ता युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण जी का कुशल मार्ग दर्शन प्राप्त होता है। आपकी सूझ बूझ से ही यह तेरापंथ जन जन का पंथ बन पाया है। आज मेरे शिक्षा प्रदाता दीक्षा प्रदाता के पूण्य दिवस पर श्रद्धा भरा हार्दिक नमन करता हूँ और यह मंगल कामना करता हूँ कि अंतिम श्वास तक धर्मसंघ की सेवा करता रहूं।