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चोरी रूपी पाप से बचने का प्रयास करे मानव : मानवता के मसीहा महाश्रमण

मेहसाणा जिले के देणाप गांव में शांतिदूत का हुआ मंगल पदार्पण

आचार्यश्री ने किया लगभग 13 किलोमीटर का विहार

-सेठ एम.सी. विद्या मंदिर पूज्यचरणों से बना पावन

17.05.2025, शनिवार, देणाप,मेहसाणा।

जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें देदीप्यमान महासूर्य, अखण्ड परिव्राजक, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्तमान समय में गुजरात के मेहसाणा जिले की धरा को पावन बना रहे हैं। मेहसाणा जिले के गांव, नगर व कस्बे पूज्यचरणों से पावनता को प्राप्त हो रहे हैं। मेहसाणावासी भी ऐसे महामानव के दर्शन व मंगलवाणी का श्रवण कर धन्यता की अनुभूति कर रहे हैं। गर्मी के आतप में भी आध्यात्मिकशीलता प्रदान करने वाले युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी शनिवार को उंझा से प्रातः की मंगल बेला में गतिमान हुए। तपती गर्मी वे भी नित्य प्रति विहार एक दृढ़संकल्पी आचार्य द्वारा ही सम्पन्न हो सकते हैं।

दृढ़ संकल्पी, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी तपती गर्मी में भी श्रद्धालुओं पर मंगल आशीष की वर्षा करते हुए लगभग 13 किलोमीटर का विहार कर देणाप में स्थित सेठ एम.सी. विद्या मंदिर के प्रांगण में पधारे। विद्या मंदिर से संबंधित लोगों ने आचार्यश्री का भावपूर्ण स्वागत किया।

विद्या मंदिर में आयोजित प्रातःकालीन मुख्य मंगल प्रवचन मंे युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन संबोधन प्रदान करते हुए कहा कि जैन धर्म में नव तत्त्व बताए गए हैं- जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आश्रव, संवर, निर्जरा, बंध व मोक्ष। इनमें एक है- पाप। जीव असत् प्रवृत्ति करता है तो पाप कर्म का बंध हो जाता है। बुरी प्रवृत्तियां भी पाप हैं। अठारह प्रकार के पाप भी बताए गए हैं। इनमें तीसरे पाप की प्रवृत्ति है अदत्तादान अर्थात् चोरी। नहीं दी गई वस्तु को उठा लेना चोरी कहलाती है। चोरी पाप की प्रवृत्ति है। श्रेष्ठ आदमी के लिए पराया धन धूल के समान होता है। आदमी कई बार मोहवश अथवा कभी अभाववश चोरी भी कर सकता है, लेकिन आदमी का इतना मजबूत संकल्प हो कि कुछ भी हो जाए, कोई भी परिस्थिति आ जाए, लेकिन चोरी नहीं करना तो आदमी चोरी रूपी पाप कर्मों से बच सकता है।

चोरी करने से आत्मा का नुक्सान होता है। मोहनीय कर्मों का प्रभाव और निमित्तों की प्रबलता से आदमी चोरी कर सकता है। कोई धंधा, व्यापार करने में दूसरों को ठगने का, झूठ बोलने से भी बचने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को जहां तक संभव हो सके, अपने कार्यों में ईमानदारी रखने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को अपने जीवन में नैतिकता व ईमानदारी रखने का प्रयास करना चाहिए। कुछ लोग टैक्स सरकार को नहीं देते हैं तो यह टैक्स की चोरी हो जाती है। जिस पर आपका अधिकार नहीं है और उसे किसी प्रकार अपने पास रखना भी चोरी ही है। इसलिए जो टैक्स है, उसे सरकार को जमा करा देने का प्रयास करना चाहिए। इससे शुद्धता की बात बनी रह सकती है। ईमानदारी तो व्यापार करने वाले से लेकर नौकरी करने वाले अफसरों व राजनेताओं तक सभी के लिए आवश्यक होती है। जीवन में नैतिकता व ईमानदारी का प्रभाव होता है तो आदमी का जीवन पाप से बच भी सकता है। ईमानदारी तो सभी के लिए पालनीय होनी चाहिए। कोई नास्तिक भी हो तो उसे भी ईमानदारी का पालन करना चाहिए। आदमी को अपने जीवन में शुद्धता बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए।

 

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