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प्रमाद रहित जीवन ही सच्चा आत्मिक जीवन-आचार्य सम्राट डॉ. शिवमुनि

आत्म भवन, बलेश्वर में विशाल धर्मसभा का आयोजन, देशभर से श्रद्धालुओं की उपस्थिति

सूरत। आत्म भवन, बलेश्वर में आयोजित धर्मसभा में आचार्य सम्राट डॉ. शिवमुनि जी म.सा. ने जीवन को सार्थक बनाने की प्रेरणा देते हुए कहा कि “मनुष्य जीवन डोर की भांति होता है, कब टूट जाए कुछ पता नहीं। प्रमाद ही जीवन का सबसे बड़ा शत्रु है।”
उन्होंने फरमाया कि जो व्यक्ति कर्तापन और भोक्तापन के भाव में रहता है, वह प्रमादी होता है और अपने आत्मस्वरूप को नहीं जान पाता। व्यक्ति को चाहिए कि बुढ़ापा, रोग और मृत्यु से पहले धर्म का मार्ग पकड़ ले। उन्होंने जीवन की तुलना सूर्य से करते हुए कहा कि बचपन सुबह, युवावस्था दोपहर, वृद्धावस्था सायं और मृत्यु रात्रि के समान होती है। अतः जीवन के दिन ढलने से पहले आत्मचिंतन जरूरी है।
डॉ. शिवमुनि जी ने कहा कि जो व्यक्ति परिवार, धन और पद को अपना मान बैठता है, वह मोहजाल में उलझ जाता है, जबकि आत्मा ही वास्तविक सत्य है। आत्मनिरीक्षण कर जीवन को सुलझाना आवश्यक है।
प्रमुख मंत्री शिरीष मुनि जी म.सा. ने शिष्य धर्म पर प्रकाश डालते हुए कहा कि गुरु की अवहेलना मिथ्यात्व का कारण बनती है, और गुरु की निंदा करने से अधोगति का द्वार खुलता है। उन्होंने अन्य संप्रदायों की निंदा से बचने की सीख भी दी।
युवामनीषी शुभम मुनि जी म.सा. ने भजन “न पापों में जीवन गुजारा करो तुम, प्रभु नाम पल-पल उच्चारा करो तुम” की सुमधुर प्रस्तुति देकर भावविभोर कर दिया।

सभा में मुंबई, दिल्ली, हुबली, बैंगलोर, दावणगिरी सहित कई शहरों से श्रद्धालु उपस्थिति रहे एवं कई श्रावकों ने त्याग-प्रत्याख्यान की भावना से प्रेरित होकर धर्मलाभ लिया।

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