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एक का दूसरों पर पड़ता है प्रभाव : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

-शांतिदूत की सन्निधि में पहुंचे ठाणे-महाराष्ट्र के पूर्व सासंद श्री संजीव नाईक

-कषायों को प्रतनु बनाने को आचार्यश्री ने किया अभिप्रेरित

-‘तेरापंथ प्रबोध’ के संगान व व्याख्यान से भी लाभान्वित हुए श्रद्धालु

18.07.2025,कोबा,गांधीनगर

आर्थिक रूप से समृद्ध गुजरात मानों आध्यात्मिक रूप से भी सम्पन्न बन रहा है। हो भी क्यों न जब जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, अध्यात्मवेत्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपना लगातार दूसरा चतुर्मास भी गुजरात की राजधानी गांधीनगर क्षेत्र के कोबा में स्थित प्रेक्षा विश्व भारती में कर रहे हैं। इस चतुर्मास के दौरान अहमदाबादवासियों को तेरापंथ धर्मसंघ के आद्य अनुशास्ता, महामना आचार्यश्री भिक्षु के जन्म त्रिशताब्दी वर्ष के प्रारम्भ का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ है। आचार्यश्री अपने चातुर्मास के दौरान बत्तीस आगमों में प्रथम आगम ‘आयारो’ के माध्यम से पावन प्रेरणा प्रदान करने के साथ ‘तेरापंथ प्रबोध’ के संगान के साथ उसके भी व्याख्यान का लाभ प्रदान कर रहे हैं। ऐसे सुअवसर को प्राप्त कर अहमदाबादवासी मानों उत्फुल्ल बने हुए हैं।

शुक्रवार को ‘वीर भिक्षु समवसरण’ से वीर भिक्षु के परंपर पट्टधर, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘आयारो’ आगम के माध्यम से पावन संबोध प्रदान करते हुए कहा कि एक का प्रभाव दूसरों पर भी पड़ सकता है, बहुतों पर भी पड़ सकता है और बहुतों का प्रभाव एक भी पड़ सकता है। एक और बहुत का परस्पर प्रभाव का संबंध है। जो एक को झुकाता है, वह बहुतों का झुकाता है और जो बहुतों को झुकाता है, वह एक को झुकाता है। व्यवहार में देखा जाए तो एक मुखिया व्यक्ति को प्रभावित कर दिया गया तो आम जनता भी काफी प्रभावित हो सकती है। एक साधु कहीं नगर, महानगर में जाता है, प्रवचन करता है, लोगों को अध्यात्म समझाने का प्रयास करता है। यदि वहां का मुखिया, राजा अथवा जो भी प्रमुख व्यक्ति है, वह यदि उस धर्म, अध्यात्म को समझ गया और उसे स्वीकार कर लिया तो उसका प्रभाव आम जनता पर भी पड़ता है। उसे देखकर और जनता भी प्रवचन में आने लगती है और उस साधु के प्रति श्रद्धा का भाव रखने लगते हैं। इसी प्रकार बहुत सारे लोग उस साधु के पास नित्य प्रवचन को सुनने को जाते हैं तो वहां का मुखिया भी सोच सकता है कि क्या बात है कि सारे लोग उस साधु के पास जा रहे हैं, कौन हैं वो। तब मुखिया के मन में भी आ सकता है कि जब मेरी इतनी जनता वहां जा रही है तो वह भी वहां जाने के लिए आकृष्ट हो सकता है।

तात्त्विक दृष्टि से देखें तो मोहनीय कर्म आठ कर्मों में एक कर्म है जो बहुत शक्तिशाली भी है। एक मोहनीय कर्म है तो ज्ञानावरणीय कर्म को रहना ही पड़ेगा, दर्शनावरणीय को रहना ही पड़ेगा, अंतराय और चार अघाति कर्मों को रहना ही पड़ेगा। मोहनीय कर्म मानों सातों कर्मों का राजा है। उनके पास कोई चारा नहीं कि वे मोहनीय कर्म को छोड़कर जा सकें। इसी प्रकार एक मोहनीय कर्म चला गया, क्षीण हो गया तो शेष कभी कर्मों को जाना ही पड़ेगा। इन आठ कर्मों का राजा मोहनीय कर्म को कह सकते हैं। कर्मों में मोहनीय कर्म को शरीर में सर के समान होता है। सर कट जाता है तो शेष शरीर भी निष्प्राण हो ही जाता है। इस प्रकार एक को झुका लिया तो बहुतों को झुकाया जा सकता है। जो एक भी कषाय को नष्ट कर दिया तो बहुत कषायों को नष्ट किया जा सकता है और एक बहुत कषायों को नष्ट कर दिया गया तो एक मोहनीय कर्म को भी नष्ट किया जा सकता है। आदमी को अपने कषायों को प्रतनु बनाने का प्रयास करना चाहिए। कषाय जितने प्रतनु पड़ेंगे, आदमी के जीवन का भला ही भला होगा।

आगम से मंगल पाथेय प्रदान करने के उपरान्त आचार्यश्री ‘तेरापंथ प्रबोध’ का संगान कर उसकी सरस व्याख्या की। ठाणे-महाराष्ट्र के पूर्व सांसद श्री संजीव नाईक आचार्यश्री के दर्शन करने के उपरान्त अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने उन्हें मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी के मंत्री श्री मनोज सिंघवी व जीवन विज्ञान प्रकल्प से जुड़े श्री रमेश पटावरी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी के पर्यवेक्षक मुनि मननकुमारजी ने अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति दी। इस संदर्भ में आचार्यश्री ने मंगल पाथेय प्रदान किया। तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री हिम्मत माण्डोत ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी।

 

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