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मैं तो डेढ़ बांस का था, गुरु ने मुझे बाँसुरी बना दिया।”-मुनि अजित सागर

गुरु पूर्णिमा पर्व पर प्रवचन: गुरु रूपी पारसमणि से जीवन बनता है स्वर्णमय – पूज्य मुनि गण

सूरत। उपकारी के उपकारों को जीवन की स्वर्णिम पृष्ठों पर लिख लेना चाहिए, इनमें सबसे श्रेष्ठ उपकार गुरु का होता है। गुरु जीवन को दिशा, दृष्टि और दिव्यता देने वाले होते हैं। उपरोक्त विचार पूज्य मुनि श्री निराग सागर जी महाराज ने गुरु पूर्णिमा पर्व पर आयोजित प्रवचन सभा में व्यक्त किए।

उन्होंने कहा कि जैसे इंद्र मूर्तित ने गुरु चरणों में समर्पण करते ही गौतम आशीर्वाद बन गए, वैसे ही हम सभी को गुरु शरण में रहकर जीवन को व्यवस्थित बनाना चाहिए।

इस अवसर पर ऐलक श्री विवेकानंद सागर जी ने कहा कि गुरु हमारे जीवन को श्रेष्ठ बनाते हैं। वे पारसमणि की तरह होते हैं, जो लोहे रूपी भक्त को भी स्वर्णमय बना देते हैं। यदि हम अपने जीवन को राग-द्वेष रूपी जंग से मुक्त कर शुद्ध लोहा बना दें तो गुरु रूपी पारसमणि हमें भी स्वर्ण में बदल सकते हैं।

उन्होंने कहा कि गुरु सेवा, दान और ज्ञान के समय मन से स्वाभिमान और प्रभिमान का त्याग करना चाहिए। अहम और वहम को छोड़कर गुरु चरणों में समर्पित रहना ही सच्ची मानवता है।

मुनि श्री अजित सागर जी महाराज ने कहा कि अंधकार से प्रकाश की ओर आना, यानी अज्ञान से ज्ञान की ओर बढ़ना ही गुरु पूर्णिमा का सार है। गुरु ही जीव की सुप्त शक्तियों को जाग्रत कर उसे आत्मप्रकाश की ओर ले जाते हैं।

उन्होंने कहा कि इस सदी के श्रेष्ठ गुरु आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज रूपी दीपक से जिनका जीवन जुड़ता है, उनका जीवन प्रकाशमय हो जाता है। उन्होंने विनम्रता पूर्वक कहा – “मैं तो डेढ़ बांस का था, गुरु ने मुझे बाँसुरी बना दिया।” इसलिए हम सभी को चाहिए कि जीवन को बाँसुरी की तरह गुरु मार्गदर्शन में साधें।

सभा में गुरुओं की वंदना, गुरु भक्ति गीतों व संगीतमय माहौल में श्रद्धालु भावविभोर हो गए। गुरु की महिमा शब्दों में नहीं समाई जा सकती, बल्कि वह जीवन की अनुभूति में बसती है।

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