फलसुंड के युवा भजन गायक जोगराज सिंह जोधा की लोक गायन में विशेष पहचान

बफलसुंड, जैसलमेर। सीमावर्ती गांव फलसुंड के भोमसिंहपुरा निवासी जोगराज सिंह जोधा राजस्थानी लोक गीतों और देवी-देवताओं के भजनों के क्षेत्र में अपनी खास पहचान बना चुके हैं। इनका जन्म 1 नवम्बर 1998 को हुआ। उनके पिता श्री किशोरसिंह जोधा हैं। जोगराज सिंह ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही प्राप्त की। बचपन से ही भक्ति भाव से जुड़े रहने वाले जोगराज सिंह ने नखत बन्ना को अपना इष्ट माना और नेतासर स्थित नखत बन्ना मंदिर में भोपाजी भँवरसिंह जोधा के सान्निध्य में रहकर सेवा कार्य किया। यहीं भजन-कीर्तन के माहौल में उन्होंने लोक संगीत की ओर रुचि विकसित की।
नवयुवक अवस्था में उन्होंने स्वयं अभ्यास कर राजस्थानी लोक गीतों व भजनों की साधना प्रारंभ की। वर्ष 2014 में पहली बार उन्हें भांडियावास (जिला जोधपुर) स्थित नखत बन्ना मंदिर में एक बड़े मंच पर गाने का अवसर मिला, जहां उनकी भावपूर्ण प्रस्तुति ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और राजस्थानी लोक भजन गायक के रूप में अपनी अलग पहचान बना ली।
जोगराज सिंह विशेष रूप से देवी-देवताओं के जागरण, भजन संध्या और मंदिर प्रतिष्ठा जैसे धार्मिक आयोजनों में प्रस्तुति देते हैं। नखत बन्ना के प्रति उनकी गहरी आस्था और समर्पण के कारण देशभर में आयोजित नखत बन्ना व Bअन्य लोकदेवताओं के कार्यक्रमों में आयोजक उन्हें विशेष रूप से आमंत्रित करते हैं।
उन्होंने जोधपुर, बाड़मेर, बीकानेर, सिरोही, जालोर जैसे प्रमुख जिलों के साथ-साथ हैदराबाद, पुणे, कोयंबटूर जैसे बड़े शहरों में भी अपने भजनों की गूंज बिखेरी है। हाल ही में गुजरात के सूरत जिले के कोसंबा में ॐ बन्ना मंदिर की मूर्ति स्थापना के अवसर पर, प्रसिद्ध भजन गायक महावीर सांखला के साथ हजारों श्रद्धालुओं के समक्ष दी गई उनकी प्रस्तुति को जबरदस्त सराहना मिली।
अपने संगीत प्रेम को विस्तार देने हेतु उन्होंने फलसुंड-जोधपुर रोड पर “जोधाणा म्यूजिक स्टूडियो” की स्थापना की है, जो न सिर्फ उनका स्वप्न है बल्कि गांव के अन्य कलाकारों के लिए भी एक मंच बन गया है।
अब तक वे राजस्थान के सुप्रसिद्ध लोक गायकों जैसे प्रकाश माली, छोटूसिंह रावणा, श्याम पालीवाल, महावीर सांखला आदि के साथ साझा मंच पर प्रस्तुति दे चुके हैं। सीमावर्ती जिले जैसलमेर के फलसुंड गांव से निकलकर प्रदेश व देश में अपनी भक्ति एवं कला के माध्यम से पहचान बनाने वाले वे पहले युवा लोक भजन गायक हैं।
फलसुंड जैसे ग्रामीण अंचल से निकलकर जोगराज सिंह जोधा ने सिद्ध कर दिया कि समर्पण, साधना और संकल्प हो तो कोई भी मंच दूर नहीं। वे आज गांव, समाज और सम्पूर्ण राजस्थान की लोक सांस्कृतिक परंपरा के सशक्त प्रतिनिधि के रूप में उभर रहे हैं।
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