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युवाचार्य श्री महेन्द्र ऋषि जी म.सा. एक आध्यात्मिक साधक- प्रमुखमंत्री श्री शिरीष मुनि जी म.सा.

आत्म भवन, बलेश्वर, सूरत।पनवेल (मुंबई) में चार्तुमासार्थ विराजमान श्रमण संघीय युवाचार्य श्री महेन्द्र ऋषि जी म.सा. कें 59वें अवतरण दिवस पर प्रमुख मंत्री श्री शिरीष मुनि जी म.सा. ने आचार्य सम्राट डॉ. श्री शिव मुनि जी म.सा. एवं सभी संतवृदों की ओर से मंगल कामना करते हुए अपने उद्बोधन में फरमाया कि युवाचार्य श्री महेन्द्र ऋषि जी एक आध्यात्मिक साधक है, आगमों के ज्ञाता हैं, आचार्य सम्राट पूज्य आनन्दऋषि जी म.सा. के द्वारा बाल्य अवस्था में ही उनको संस्कारित किया। 14 वर्ष की उम्र में दीक्षा हुई। वे निरंतर ज्ञान ध्यान में आगे बढ़ रहे हैं। संयम व आत्मार्थ के बल पर पुण्य की शिखरता से श्रमण संघ के युवाचार्य पद पर सुशोभित हैं।
प्रमुख मंत्री श्री जी ने आगे फरमाया कि श्रमण संघ में आचार्य सम्राट डॉ. श्री शिवमुनि जी म.सा. ने जो अध्यात्म का मार्ग निर्मित किया है वह उत्तरोत्तर अभिवृद्धि को प्राप्त करे। जीव का जन्म-मरण नहीं होता, लेकिन व्यवहार दृष्टि से शरीर के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं, क्योंकि वे शरीर का उपयोग अध्यात्म में कर रहे हैं इसलिए संघ समाज उनके पुरुषार्थ की अनुमोदना कर रहा है। युवाचार्य श्री जी श्रमण संघ में एक आध्यात्मिकता का वातावरण निर्मित करने के लिए निमित बने, उनके अवतरण दिवस पर ऐसी मंगल कामना करते हैं।
इससे पूर्व प्रमुखमंत्री श्री शिरीष मुनि जी म.सा. ने अपने उद्बोधन में श्री उत्तराध्ययन सूत्र की व्याख्या करते हुए फरमाया कि साधक जब आगे बढ़ता है तो उसके जीवन में परिषह आते हैं। चारों ओर से आते हुए कष्टों को सहन करना परिषह है। विनीत साधक ही उन परिषहों को सहन कर सकता है।
उन्होंने आगे फरमाया कि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष है – ये चार पुरुषार्थ हैं काम पराधीन है और मोक्ष स्वाधीन सुख है। जो व्यक्ति धर्म में रहते हुए न्याय नीति से धन का उपार्जन करता है, मन में इच्छा कामना नहीं है वह स्वाधीन सुख में रहता है वह मोक्ष को प्राप्त कर सकता है।
इससे पूर्व प्रवचन प्रभाकर श्री शमित मुनि जी म.सा. ने श्री उत्तराध्ययन सूत्र का मूल वांचन किया।
नवपद ओली के अंतर्गत श्रावक-श्राविकओं ने आयंबिल के प्रत्याख्यान लिये।

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