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श्री उत्तराध्ययन सूत्र वांचन का तृतीय दिवस निश्चय में आत्मा ही गुरु है – प्रमुखमंत्री श्री शिरीष मुनि जी म.सा.

4 अक्टूबर 25, आत्म भवन, बलेश्वर, सूरत।प्रमुखमंत्री श्री शिरीष मुनि जी म.सा. ने अपने उद्बोधन में श्री उत्तराध्ययन सूत्र के स्वाध्याय की विधि व नियमों का उल्लेख करते हुए फरमाया कि श्री उत्तराध्ययन आदि शास्त्रों का स्वाध्याय विनय पूर्वक, काल के अनुसार करना चाहिए। चौदह अतिचारों को ध्यान में रखकर पढ़ना चाहिए।
उन्होंने आगे मनःपर्यव ज्ञान का विश्लेषण करते हुए फरमाया कि ज्ञान की परिपक्वता बार-बार परावर्तन, स्वाध्याय से होती है। अवधि ज्ञानी का बहुमान अवधि ज्ञान विनय है। मनःपर्यव ज्ञान वह है जिसमें व्यक्ति अपने मन के भावों को पढ़ता रहता है कि उसका मन कहां-कहां विचर रहा है, मन भूतकाल में जा रहा है या भविष्यकाल में जा रहा है, पुद्गल में जा रहा है, पर में जा रहा है ऐसे ही अपने भावों को पढ़ते-पढ़ते अनुभव हो जाता है कि सामने वाला व्यक्ति क्या विचार कर रहा है। मनः पर्यव ज्ञान होने से मन के पर्यायों को जीव प्रत्यक्ष जान सकता है। पांच ज्ञान में तीन ज्ञान प्रत्यक्ष है और दो ज्ञान परोक्ष है। प्रत्यक्ष है अवधिज्ञान, मनःपर्यव ज्ञान और केवल ज्ञान, जिसमें इन्द्रिय और मन की आवश्यकता नहीं हैं, लेकिन मतिज्ञान और श्रुत ज्ञान में इन्द्रियां और मन की आवश्यकता है इसलिए परोक्ष कहा गया है।
उन्होंने यह भी फरमाया कि ज्ञान के प्रकाश में राग-द्वेष नहीं आते। आत्मा के भीतर राग-द्वेष है या नहीं यह आत्मा देखती है। स्वयं की आत्मा स्वयं को ज्ञान के प्रकाश में प्रेरणा देती है। व्यवहार में देव, गुरु, धर्म है और निश्चय में आत्मा ही देव, आत्मा ही गुरु और आत्मा ही धर्म है, क्योंकि आत्मा ही चौबीसों घंटे साधक को जगाती है। गुरु का कभी-कभी संयोग मिलता है, लेकिन आत्मा चौबीस घंटे साथ में रहती है, गुरु बनकर जगाती है। धर्म है स्वभाव में रहना जहां विभाव में गए वहां अधर्म है, उस समय तुरंत स्वभाव में आने का प्रयास करें, ऐसा करने से राग-द्वेष आदि विकार उभरते नहीं हैं। ज्ञान के प्रकाश में सत्चिद्आनन्द की अनुभूति होती है। सचिदानन्द सद, चित और आनन्द।
उन्होंने आगे फरमाया कि व्यवहारिक दृष्टि से आत्मार्थी साधु व श्रावक हर पल हर क्षण हर परिस्थिति में आनन्द में रहते हैं, चाहे कैसा भी उदय कर्म आए वह अपने स्वभाव को नहीं छोड़ते आनन्द में रहते हैं और यही धर्म है।
प्रवचन प्रभाकर श्री शमित मुनि जी म.सा. ने श्री उत्तराध्ययन सूत्र वांचन के छठे, सातवें, आठवें अध्ययन का मूल वांचन किया।
प्रवचन के पश्चात् प्रमुख मंत्री श्री शिरीष मुनि जी म.सा. ने ध्यान के प्रयोग करवाये गये। नवपद ओली के अंतर्गत श्रावक-श्राविकओं ने आयंबिल के प्रत्यख्यान लिये।
विशेष – आचार्य श्री जी का स्वास्थ्य पूर्वपेक्षा उत्तरोत्तर अभिवृद्धि को प्राप्त हो रहा है। वे शीघ्र ही आप सभी को मंगल आशीर्वाद प्रदान करेंगे।

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