जो व्यक्ति गहराई में उतरता है, वही इस भवसागर को पार कर पाता है। -आचार्य सम्राट डॉ. श्री शिवमुनि जी म.सा.

सूरत। आचार्य सम्राट डॉ. श्री शिवमुनि जी म.सा. ने अपने उद्बोधन में जीवन के गहन चिंतन और आत्मा की महत्ता पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि मनुष्य अपने जीवन का अवलोकन करे, साधना और धर्माराधना करता है, किंतु मुक्त क्यों नहीं हो पाया, इसका कारण यह है कि वह सम्यक दृष्टि से जड़-जीव का भेद नहीं कर पाया। व्यक्ति आत्मा की चर्चा तो करता है, परन्तु भीतर की गहराई में नहीं उतरता; जो व्यक्ति गहराई में उतरता है, वही इस भवसागर को पार कर पाता है।
आचार्य भगवन ने आत्मा के आठ प्रमुख गुणों का विवरण देते हुए कहा कि आत्मा में अनंत ज्ञान, अनंत शक्ति और अनंत सुख निहित है। जो सुख आत्मा में है, वह शरीर या बाहरी वस्तुओं में नहीं पाया जा सकता। उन्होंने शरीर और आत्मा के भेद, अमूर्तता, और आत्मा के क्षायिक समकीत (अटल श्रद्धा) के महत्व पर भी प्रकाश डाला। आचार्य ने बताया कि आत्मा पर निरंतर चिंतन और मनन करने से व्यक्ति सिद्धशिला की प्राप्ति कर सकता है।
उन्होंने बुद्धिमान व्यक्ति के लक्षणों पर भी प्रकाश डालते हुए कहा कि संसार में धन, पद, प्रतिष्ठा और शरीर सुख रखने वाला ही बुद्धिमान नहीं होता। वास्तविक बुद्धिमान वह है जो अपनी आत्मा को समय देता है, उसमें स्थित रहता है, और जीव मात्र को महत्त्व देता है। केवल शरीर या व्यक्तित्व का पोषण करने वाला व्यक्ति बुद्धिमान नहीं माना जा सकता।
प्रमुख मंत्री श्री शिरीष मुनि जी म.सा. ने अपने उद्बोधन में साधु की विशेषताओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि साधु भगवान की आज्ञा में विचरता है, उनकी वाणी पर अटल श्रद्धा करता है, और पांच आश्रवों—मिथ्यात्व, अव्रत, प्रमाद, कषाय और अशुभ योग—का त्याग करता है। साधु जागरूकता के साथ अपने लक्ष्य, सिद्धशिला की ओर अकषायी होकर आगे बढ़ता है और अपने योगों का शुभ एवं शुद्ध उपयोग कर अपनी आत्मा में रमण करता है।
कार्यक्रम में युवा मनीषी श्री शुभम मुनि जी म.सा. ने ‘‘तू ध्यान लगा निज आत्म का, तेरी उम्र गुजरने वाली है’’ भजन की सुमधुर प्रस्तुति दी। रानियां से श्री सूरज जैन ने भजन के माध्यम से अपनी भावनाओं को साझा किया।इस अवसर पर हरियाणा, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब आदि स्थानों से आए श्रद्धालुओं ने प्रवचन श्रवण कर आध्यात्मिक लाभ प्राप्त किया।



