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शत्रु के समान होता है गुस्सा : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण 

मुमुक्षु विशाल परिख को 3 सितम्बर को मुनि दीक्षा देने की आचार्यश्री ने की घोषणा

-गुस्से का परित्याग कर शांति में रहने को आचार्यश्री ने दी पावन प्रेरणा

-साध्वीवर्याजी का हुआ उद्बोधन, चारित्रात्माओं ने अर्पित की प्रणति

-ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों आदि ने दी अपनी-अपनी प्रस्तुति*

*29.06.2025, रविवार, शाहीबाग, अहमदाबाद।कषाय वह तत्त्व है, जिसके द्वारा पापकर्म का आगमन होता है। जैन वाङ्मय में कषाय के चार प्रकार बताए गए हैं- क्रोध, अहंकार, माया और लोभ। शास्त्र में कहा गया है कि यह गुस्सा प्रीति का नाश करने वाला होता है। दो मित्रों की मित्रता व उनका प्रेम गुस्से के कारण समाप्त हो सकता है। आदमी को बहुत ज्यादा गुस्से बचने का प्रयास करना चाहिए। जितना संभव हो सके, वाणी में मधुरता हो, व्यवहार में भी मधुरता हो तो प्रेम भी बना रह सकता है और लोगों का भला भी हो सकता है।

गुस्से को देखा जाए तो तो वह कहीं भी काम का नहीं होता है, बल्कि वह हर जगह नुक्सानदेह ही होता है। परिवार को ही देखा जाए तो यदि उसमें कोई बार-बार गुस्सा करेगा तो परिवार के माहौल में विघटन की स्थिति आ सकती है। गुस्सा करने वाले को भी कठिनाई हो सकती है। कोई बात जो शांति से कही जा सकती है और उसे गुस्से में क्यों कहना। आदमी को अपने गुस्से पर नियंत्रण रखने का प्रयास करना चाहिए। प्रेक्षाध्यान के माध्यम से गुस्से को शांत करने का प्रयास किया जा सकता है। आदमी के मन में गुस्सा आए तो भी आदमी इतना ध्यान रखे कि वह गुस्से में बोलेगा नहीं और अपने शरीर पर नियंत्रण रखना चाहिए। कभी गुस्सा आ जाए तो थोड़ी देर मौन रह जाना चाहिए। गुस्सा आए तो थोड़ी देर के लिए मुंह में मिश्री ली जा सकती है।

जीवन में गुस्सा एक शत्रु के समान होता है। इसका सदैव परित्याग रखना चाहिए। गुस्से के कारण परिवार में अशांति हो सकती है, व्यापार-धंधे में गुस्सा हो तो धंधे में नुक्सान हो सकता है, ग्राहकों का आना कम होगा तो व्यापारिक हानि हो सकती है। समाज में गुस्सा ज्यादा है तो समाज में भी हानि उठानी पड़ सकती है। इसलिए आदमी को अपने मन में शांति रखने का प्रयास करना चाहिए और वाणी में मिठास होनी चाहिए। आदमी के मन में शांति रखने का प्रयास करना चाहिए। आदमी गुस्से को कम करने और स्वयं में शांति और क्षमा का विकास करने का प्रयास करना चाहिए। उक्त पावन पाथेय जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने रविवार को शाहीबाग तेरापंथ भवन प्रवास के तीसरे दिन रविवार को समुपस्थित श्रद्धालुओं को प्रदान की।

रविवार को आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीवर्या साध्वी सम्बुद्धयशाजी का भी उद्बोधन हुआ। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त गत चतुर्मास अहमदाबाद में सम्पन्न करने वाले मुनि मदनकुमारजी ने अपने हृदयोद्गार व्यक्त किए। साध्वी संवेगप्रभाजी ने भी अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री के स्वागत में तेरापंथ किशोर मण्डल-अहमदाबाद ने अपनी प्रस्तुति दी। अहमदाबाद ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। आचार्यश्री ने ज्ञानार्थियों को पावन प्रेरणा प्रदान की। मुमुक्षु विशाल परिख ने आचार्यश्री के सम्मुख अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति दी तो आचार्यश्री ने चतुर्मास के दौरान तीन सितम्बर को आयोजित दीक्षा समारोह में मुनि दीक्षा प्रदान करने की घोषणा कर दी। ज्ञानशाला के बालक नियांश मेहता ने अपनी बाल सुलभ प्रस्तुति दी।

 

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