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भू-छेदन से बचें, कृतज्ञता का जीवन जिएं : आचार्य सम्म्राट शिवमुनिजी

सूरत। आत्म भवन, बलेश्वर में आचार्य सम्म्राट डॉ. श्री शिवमुनि जी म.सा. ने अपने मंगल प्रवचन में कहा कि पृथ्वीकाय के जीव असंख्य संख्या में भूमि में रहते हैं। भवन निर्माण, पत्थर या मार्बल खोदने से उन जीवों की अनावश्यक हिंसा होती है। गृहस्थ व्यक्ति अपनी आवश्यकता की पूर्ति तक सीमित हिंसा करे, लेकिन व्यवसायिक लाभ हेतु बड़े पैमाने पर भूमि छेदन-भेदन उचित नहीं है। उन्होंने कहा कि जो जीव बोल, सुन या देख नहीं सकते वे अपना दुःख व्यक्त नहीं कर सकते, इसलिए विवेकपूर्वक हिंसा से बचना श्रावक का धर्म है।

आचार्य श्री ने छह काय के जीवों — पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति की हिंसा से बचने का आग्रह किया। साथ ही जीवन में कृतज्ञता का महत्व बताते हुए कहा कि धार्मिक व्यक्ति अपने उपकार का प्रचार नहीं करता और दूसरों के उपकार को कभी भूलता नहीं है।

प्रमुख मंत्री श्री शिरीष मुनि जी म.सा. ने आत्मध्यान शिविर के अंतिम दिन कहा कि ध्यान से साधक अपने भीतर धर्म को आत्मसात कर पाता है और पूर्व जन्म के कर्मों का क्षय करता है।

इस अवसर पर श्री शुभम मुनि जी म.सा. ने भावपूर्ण भजन “अरिहंत देव मेरी सुनीये पुकार” प्रस्तुत किया। ऑनलाइन माध्यम से मुंबई के नमन हितेश मेहता ने 13 उपवास तथा चलथान से श्रीमती मनीषा संचेती ने 3 उपवास का प्रत्याख्यान लिया।

आचार्य आनंदऋषि जी की 126वीं जयंती 25 जुलाई को मनाई जाएगी। श्रावक-श्राविकाओं से 23 से 25 जुलाई तक तेला तप आराधना करने का आह्वान किया गया।

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