दुःख मात्र से व्याकुल न बने मानव : मानवता के मसीहा आचार्यश्री महाश्रमण
आयारो आगम के माध्यम से समता-शांति में रहने को आचार्यश्री ने किया अभिप्रेरित

14.07.2025, सोमवार, कोबा, गांधीनगर।
आयारो आगम में जीवनोपयोगी एक सुन्दर संदेश दिया गया है कि दुःख आने पर आदमी व्याकुल न बने। आदमी के जीवन में कभी अनुकूल स्थितियां आती हैं तो कभी प्रतिकूल परिस्थितियां भी आ सकती हैं। साधु जीवन में भी प्रतिकूलताएं मिल सकती हैं। विहार के दौरान प्रवास स्थानों की विकटता होती है तो मौसम के कारण भी प्रतिकूलताएं उठानी पड़ती हैं। इस प्रकार मानव जीवन में प्रतिकूल परिस्थितियों में समता और शांति आवश्यक होता है। साधु के लिए यह तो धर्म ही है।
गृहस्थ जीवन में भी दुःख आते हैं, कठिनाइयां और प्रतिकूलताएं भी आ सकती हैं। इन प्रतिकूल परिस्थितियों से आदमी को व्याकुल नहीं बनना चाहिए। कभी कोई विपति भी जाए, कोई कठिनाई भी आ जाए, कभी आर्थिक विपत्ति भी आती है तो आदमी परेशानी का अनुभव करता है। इन ऐसी विपरीत परिस्थितियों में आदमी को अपने मन को शांत रखने का प्रयास करना चाहिए। समस्या अलग है, इसके लिए आदमी को मानसिक रूप से परेशान होने से और दुःखी बनने से बचने का प्रयास करना चाहिए। आदमी यह विचार करे कि यह मेरे पूर्व कर्मों का फल है, उसे शांति से सहन करने का प्रयास करना चाहिए। परिवार में किसी को शारीरिक कठिनाई हो जाती है तो आदमी को आकुल-व्याकुल बनने से बचने का प्रयास करना चाहिए। परिस्थितियों से निपटने पर ध्यान दिया जा सकता है, लेकिन व्याकुल बनने से बचने का प्रयास करना चाहिए।
व्यापारिक, सामाजिक, पारिवारिक अथवा शारीरिक कठिनाई आ भी जाए तो प्रतिकूलता में भी समता और शांति को बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। आदमी जहां भी रहे अपने कार्य में नैतिकता व ईमानदारी रखने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को शारीरिक कष्ट और मानसिक कष्ट होते हैं। आदमी को हिम्मत बनाए रखना चाहिए और उन समस्याओं के निदान का प्रयास करना चाहिए। आदमी के भीतर सहिष्णुता का विकास हो।
अध्यात्म की साधना की एक निष्पत्ति मिले कि विशेष कठिनाई के बाद भी मन में शांति रहे। साधु हो अथवा गृहस्थ कठिनाई अथवा प्रतिकूल परिस्थितियां आ सकती हैं। इसमें समता, शांति रखने का प्रयास करना चाहिए। नौ तत्त्वों में दुःख का कारण आश्रव को और दुःख से मुक्ति के रूप में संवर और निर्जरा को देखा जा सकता है। इसे ध्यान में रखते हुए परेशानियों के समाधान का प्रयास होना चाहिए। आदमी चिंतन प्रशस्त रहे, सकारात्मक रहे तो कठिनाइयों को झेलना आसान हो सकता है। उक्त पावन पाथेय जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने सोमवार को ‘वीर भिक्षु समवसरण’ में उपस्थित श्रद्धालुओं को अपने प्रातःकालीन मुख्य प्रवचन कार्यक्रम के दौरान प्रदान की।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त मुनि मदनकुमारजी ने तपस्या के संदर्भ में जानकारी प्रदान की। श्रीमती प्रभा सुरेन्द्रमल लोढ़ा ने अपने शोध ग्रंथ ‘आचार्य महाप्रज्ञ एवं अनासक्त चेतना’ को पूज्यप्रवर के समक्ष लोकार्पित करते हुए अपनी भावाभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने इस संदर्भ में मंगल आशीर्वाद प्रदान किया।