अहमदाबाद नगर में महातपस्वी महाश्रमण का महामंगल प्रवेश
योग साधना से शांति व शक्ति की प्राप्ति संभव : महायोगी आचार्यश्री महाश्रमण

–स्वागत में उमड़ा श्रद्धा का सैलाब, जन-जन पर बरसी मंगल आशीष की कृपा
-कई महीनों पश्चात अनेक संतों ने किए अपने आराध्य के दर्शन, हर्षित हुए मन
-भव्य स्वागत जुलूस के साथ अहमदाबाद के स्व बंगलो में पधारे शांतिदूत
-साध्वीप्रमुखाजी ने भी अहमदाबादवासियों को किया अभिप्रेरित
21.06.2025, शनिवार, अहमदाबाद।जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान देदीप्यमान महासूर्य, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने वर्ष 2024 में गुजरात राज्य की डायमण्ड नगरी सूरत से आध्यात्मिक प्रकाश ऐसे उजाले का प्रसार किया जिसने मानों सम्पूर्ण गुजरात की धरा को उस आध्यात्मिक आलोक से आलोकित कर दिया। महासूर्य की उस ज्योति ने केवल चतुर्मास, उसके उपरान्त के सम्पूर्ण आठ माह का शेषकाल भी गुजरात को प्रदान करने के उपरान्त वर्ष 2025 में गुजरात की धरा को आध्यात्मिकता के आलोक से भरने के लिए वर्ष 2025 का चतुर्मास अहमदाबाद के कोबा में स्थित प्रेक्षा विश्व भारती परिसर में करने की घोषणा ने मानों सम्पूर्ण गुजरात की जनता के मानस को स्पंदित कर दिया।
गुजरात की धरा पर एक चतुर्मासकाल पूर्ण कर, गुजरात की धरा पर शेषकाल का विहरण व प्रवास ही नहीं, तेरापंथ धर्मसंघ के समस्त महनीय आध्यात्मिक-धार्मिक आयोजनों को प्रदान करने के उपरान्त शनिवार को जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपनी धवल रश्मियों के साथ अहमदाबाद नगर में मंगल प्रवेश किया तो गुजरात की राजधानी नवीन आध्यात्मिक आभा से आलोकित हो उठी और समूचे वातावरण में आध्यात्मिक उल्लास छा गया।
शनिवार को प्रातः लिम्बडिया से ज्योतिचरण ने अपने चरण गतिमान किए तो उन सुपावन चरणों का अनुगमन करने को सैंकड़ों की संख्या में उत्साही अहमदाबादवासी श्रद्धालु पहले ही पहुंच चुके थे। जैसे-जैसे दो पावन चरण अहमदाबाद नगरी से निकट होते जा रहे थे, लोगों की संख्या व उत्साह भी बढ़ता जा रहा था। हो भी क्यों न चतुर्मास से पूर्व ही अहमदाबादवासियों को अपने नगर में 15 दिनों तक अपने आराध्य के दर्शन, उपासना व आराधना का सुअवसर जो प्राप्त हो रहा था। लगभग 10 कि.मी. का विहार कर आचार्यश्री ने जैसे अहमदाबाद नगर सीमा में प्रवृष्ट हुए तो श्रद्धा का ऐसा सैलाब उमड़ा कि पूरा वातावरण महाश्रमणमय बनता चला गया। मार्ग के दोनों ओर श्रद्धा से जुड़े हाथ, आह्लादित मन व बुलंद जयघोष राष्ट्रीय संत की अभिवंदना में श्रद्धालुओं के सहचर बने हुए थे। भव्य स्वागत जुलूस के साथ आचार्यश्री नगर की सीमा में गतिमान हुए।
इस दौरान लगभग चार महीने बाद मुनि जितेन्द्रकुमारजी आदि संत तो अपने आराध्य के दर्शन किए। तेरापंथ समाज के सभी संस्थाओं के सदस्य अपने गणवेश में अपने गणाधीश का अभिनंदन कर रहे थे। तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम के 218 सदस्यों ने 218 दिनों के उपवास व तप के साथ अभिनंदन किया। भव्य व विशाल स्वागत जुलूस के साथ आचार्यश्री अहमदाबाद के तपोवन सर्कल में स्थित स्व बंगलो में पधारे।
स्व बंगलो परिसर में आयोजित मुख्य मंगल प्रवचन कार्यक्रम में श्रद्धा से ओतप्रोत अहमदाबादवासियों को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन संबोध प्रदान करते हुए कहा कि हर आदमी को बड़ी शक्तियां नहीं मिलतीं। अगर शक्ति मिल जाए तो आदमी को दो बातों पर ध्यान देना चाहिए। आदमी को शरीर सक्षम मिल जाए, स्वस्थ मिल जाए तो उसे अपनी शक्ति का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। कहा गया है कि दुर्जन के पास शक्ति होती है तो वह शक्ति दूसरों को तकलीफ देने, कष्ट देने में उपयोग होता है तथा वही शक्ति किसी सज्जन के पास हो तो वह दूसरों का कल्याण करने वाली बन जाती है। आदमी के भीतर यह भाव रहना चाहिए कि मैं अपने शक्ति का गलत कार्यों में उपयोग न करूं। जो कमजोर, दुर्बल, निर्बल होता है, वह कमजोर होता है। वह आदमी अच्छा काम चाहते हुए भी कर नहीं पाता। इच्छा होने पर भी आदमी शक्ति के अभाव में अच्छा कार्य नहीं कर पाता।
अध्यात्म के जगत में शक्ति भी एक चीज है। योगसाधना जीवन की बहुत अच्छी उपलब्धि, अच्छी संपत्ति हो सकती है। योगरहित जिन्दगी तो मानों एक दृष्टि से बेकार है। शांति और शक्ति तथा एक ओर योग साधना। योग साधना से शांति और शक्ति भी प्राप्त हो सकती है। परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी के समय प्रेक्षाध्यान पद्धति प्रारम्भ हुई और आचार्यश्री महाप्रज्ञजी प्रेक्षाध्यान के प्रमुख प्रयोग कराने वाले थे। आसन ध्यान-साधना का अंग है। ध्यान-साधना किस प्रकार किया जाता है, सब अनेक योग मुद्राएं होती हैं। आदमी का शरीर कैसे ठीक रहे, उसका प्रयास करना चाहिए।
आदमी को अपने कार्य को स्वयं करना चाहिए। आदमी यह विचार करे कि उसे हाथ-पांव के रूप में नौकर प्राप्त हैं तो उनसे खुद उपयोग में ले और दूसरे के भरोसे क्यों रहना। दूसरों पर निर्भर रहने से बचने का प्रयास करना चाहिए। स्वावलम्बी जीवन मानव के लिए हितकर साबित हो सकता है। मानव जीवन की हर क्रिया के साथ योग को जोड़ा जा सकता है। चलने, उठने, बैठने, खाने-पीने आदि प्रत्येक क्रिया योग बन सकती है। आदमी ध्यान से चलता है। चलने में ही मन को जोड़ दिया और अहिंसा के साथ चल रहा है तो चलना भी गमन योग एक साधना का रूप बन सकता है। मोबाइल फोन आदि का उपयोग करते-करते भोजन करना अहितकर हो सकता है और वह विकार पैदा करने वाला बन जाता है। मौन भाव से भोजन करना योग बन सकता है। जीवन की प्रवृत्तियों के साथ योग जुड़ जाए तो आदमी का जीवन कितना अच्छा हो सकता है। बैठने की मुद्रा अच्छी हो। मोक्ष से जोड़ने वाले हर क्रिया योग होती है।
अब योग कितना व्यापक हो गया है। योग दिवस मनाया जाता है। परम पूज्य आचार्यश्री तुलसी और परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी ने मानों कितनी योग साधना, प्राणायाम और फिर प्रेक्षाध्यान किया करते थे। साधुपन को पालना भी कितना बड़ा योग होता है।
आचार्यश्री ने आगे कहा कि आज हमारा अहमदाबाद में आना हुआ है। अब अहमदाबाद में चतुर्मास होना है। व्यवस्था समिति के सामने भी एक बड़ा काम है। कब से लगना होता है और अब मौका एकदम सामने हैं। व्यवस्था समिति के कार्यकर्ता हैं, श्री अरविंदजी संचेती हैं, दिमाग एकदम शांति में रहे, दिमाग ठंडा रहे, बात करने में शांति रहे, कार्यकर्ता शांति में रहें, अच्छा उत्साह रहे। अच्छा से जुड़ा हुआ कार्य है। परस्पर सौहार्द का भाव रहे। पूरा समाज इस चतुर्मास का अच्छा लाभ उठाने का प्रयास करे, यह काम्य है।
आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने भी अहमदाबादवासियों को उद्बोधित किया। युगप्रधान आचार्यश्री के स्वागत में अहमदाबाद चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री अरविंद संचेती, स्व बंगलो के ऑनर श्री दानमल पोरवाल, श्री महेन्द्र पोरवाल, अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के अध्यक्ष श्री रमेश डागा ने अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति दी। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। आचार्यश्री ने ज्ञानार्थियों को मंगल आशीर्वाद भी प्रदान किया। अहमदाबाद तेरापंथ महिला मण्डल ने स्वागत गीत का संगान किया।