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अभ्याख्यान रूपी पाप से बचने का हो प्रयास : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण

-अरवल्ली जिले को पावन बना पुनः साबरकांठा जिले में पधारे युगप्रधान आचार्यश्री

-10 कि.मी. का विहार कर उभराण को पावन करने पधारे शांतिदूत

05.06.2025, गुरुवार, उभराण, साबरकांठा।गुजरात की पग-पग की धरा को ज्योतित करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अरवल्ली जिले को पावन बनाने के उपरान्त गुरुवार को पुनः साबरकांठा जिले की सीमा में प्रवृष्ट हुए। गुरुवार को प्रातःकाल की मंगल बेला में शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अणियोर कम्पा से गतिमान हुए। आज का विहार पथ ग्रामीण क्षेत्रों वाला ही तथा किन्तु काफी रमणीय भी था। आसपास वृक्षों से आच्छादित कुछ छोटी पहाड़ियां बारिश और तूफान से बिल्कुल हरितिमा से युक्त दिखाई दे रही थीं। उन पहाड़ियों के कारण मार्ग में भी आरोह-अवरोह लिए हुए था। आसमान में छाए बादलों के कारण मौसम भी अनुकूल बना हुआ था। जगह-जगह खेतों में फसलें लगी हुई थीं, तो कई खेत फसलों के बुआई आदि के लिए तैयार भी दिखाई दे रहे थे। विहार के दौरान आचार्यश्री ने पुनः साबरकांठा जिले में पधारे। आचार्यश्री लगभग 10 किलोमीटर का विहार कर उभराण में स्थित श्री एम.एम. मेहता हाईस्कूल में पधारे।

स्कूल परिसर में उपस्थित श्रद्धालुओं को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि जैन धर्म में अठारह पाप बताए गए हैं। उनमें एक है मृषावाद, एक है माया, एक है अभ्याख्यान और एक है माया-मृषा। ये चारों मानों मृषावाद से जुड़े हुए हैं। जब कोई झूठ बोलता है तो एक उसका एक सहयोगी तत्त्व माया भी होता है। माया और मृषा मानों दोनों संबद्ध भी हो सकते हैं। कपटपूर्वक झूठ बोलने में आदमी कई बार दूसरे व्यक्ति पर झूठा आरोप लगाता है। मन में द्वेष का भाव होता है तो किसी को बदनाम करने के लिए झूठा आरोप लगा देता है और उसे फैलाने का प्रयास भी होता है, ताकि समाज में उसकी गरिमा समाप्त हो जाए। ऐसा आरोप लगाने वाला और कपटपूर्वक झूठ बोलने वाला आदमी पाप से आबद्ध हो जाता है। शास्त्रों में बताया गया है कि आदमी जैसा झूठा आरोप दूसरों पर लगाता है, उसे वैसा फल भी भोगना होता है। झूठा आरोप लगाना, जिसे अभ्याख्यान पाप भी कहा जाता है, इससे मानव को बचने का प्रयास करना चाहिए।

अपने जीवन में किसी भी आदमी पर झूठा आरोप अपनी वाणी से लगाने से बचने का प्रयास करना चाहिए। गृहस्थ जीवन में कई बार ऐसे प्रसंग आ सकते हैं। कभी कोर्ट, पुलिस आदि में जाने का काम पड़ जाए तो भी झूठी शिकायत से बचने का प्रयास करना चाहिए। सही बात है तो पुलिस और कोर्ट में जाने का अधिकार है, किन्तु झूठी शिकायत, किसी को फंसाने के नियत से पुलिस और कोर्ट में जाना तो पाप ही है। न्याय पाना तो अधिकार है, किन्तु झूठ आरोप में फंसा देना, किसी से द्वेषवश गलत शिकायत कर देना पाप है। इससे यथासंभवतया बचने का प्रयास करना चाहिए।

आचार्यश्री के स्वागत में श्री विमलभाई पितलिया व श्री पिंटू पिछोलिया ने अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी व आचार्यश्री से मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया।

 

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