विशेष प्रसन्नता के लिए समता की करें साधना : सिद्ध साधक आचार्यश्री महाश्रमण
प्रधानमंत्री मोदीजी के गांव को पावन बना गतिमान हुए ज्योतिचरण

–भारतीय पुरातत्विक अनुभवात्मक संग्रहालय में पधारे शांतिदूत
-10 कि.मी. का विहार कर उंढाई में पधारे आचार्यश्री महाश्रमण
-जनता ने गुरुमुख से स्वीकार किए सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति के संकल्प
20.05.2025, मंगलवार, उंढाई, मेहसाणा।
गुजरात के मेहसाणा जिले में स्थित देश के वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की जन्मभूमि वडनगर में एकदिवसीय प्रवास सुसम्पन्न कर जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान देदीप्यमान महासूर्य, महातपस्वी, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ मंगलवार को प्रातः की मंगल बेला में मंगल प्रस्थान किया। आचार्यश्री का कल प्रधानमंत्रीजी के अग्रज श्री सोमभाई मोदी से मिलना हुआ था। आज वडनगर की जनता को मंगल आशीष प्रदान करते हुए आचार्यश्री अगले गंतव्य की ओर गतिमान हुए। वडनगर में बने विश्वस्तरीय पुरातात्विक अनुभवात्मक संग्रहालय में भी आचार्यश्री का पावन पदार्पण हुआ। यह विश्व एक अद्भुत संग्रहालय है। जिसका उद्घाटन ही इसी वर्ष में हुआ है। संग्रहालय पदार्पण के पश्चात आचार्यश्री जनता को मंगल आशीष प्रदान करते हुए आगे बढ़ चले। लगभग दस किलोमीटर का विहार कर शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी उंढाई गांव में स्थित शाह नगीनदास परसोत्तमदास हाईस्कूल में पधारे।
स्कूल परिसर में आयोजित प्रातःकाल के मंगल प्रवचन कार्यक्रम में उपस्थित जनता को महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल संबोध प्रदान करते हुए कहा कि जीवन में समता की साधना कर मानव विशेष प्रसन्नता को प्राप्त कर सकता है। जीवन में लाभ हो अलाभ हो, सुख हो या दुःख हो, निंदा हो या प्रशंसा हो, जन्म हो अथवा मृत्यु हो इन सभी परिस्थितियों मंे आदमी को समता में रहना चाहिए। जितना संभव हो सके आदमी समता में रहे तो वह विशेष रूप से प्रसन्न रह सकता है।
मानव जीवन में स्थितियां तो बदलती रहती हैं। कोई व्यापारी है तो उसके व्यापार में कभी बहुत लाभ हो जाता है, कभी कम लाभ भी हो सकता है तो कभी बहुत ज्यादा घाटा हो भी सकता है और उसे नुक्सान उठाना पड़ जाता है। किसान को ही देखें तो कभी फसल बहुत अच्छी हो जाती है, कभी सामान्य तो कभी बाढ़ अथवा सूखे के कारण पूरी तरह नष्ट भी हो जाती है। ऐसी अनुकूल अथवा प्रतिकूल परिस्थितियां जीवन में कभी आएं तो आदमी को अनुकूल स्थितियों में बहुत ज्यादा प्रसन्न नहीं होना चाहिए और विपरीत परिस्थितियों मंे बहुत ज्यादा दुःखी नहीं बनना चाहिए। मन में समता का भाव रखने का प्रयास करना चाहिए।
कभी कोई शारीरिक कठिनाई आ जाए, कभी मान-सम्मान की प्राप्ति भी हो जाए, कभी प्रशंसा-प्रतिष्ठा प्राप्त हो जाए तो कभी निंदा भी हो जाए, ऐसी दोनों स्थितियों में आदमी को समता का भाव रखने का प्रयास करना चाहिए। परिस्थितियों का समाधान प्राप्त करने का प्रयास तो लेकिन घबरा नहीं चाहिए। आदमी को रोष और तोष से बचने का प्रयास करना चाहिए।
आदमी के मन में दया और क्षमा की भावना का विकास होना चाहिए। संत तो तन, मन व वचन से भी हिंसा नहीं करते, ऐसे साधु के दर्शन करने मात्र से भी पाप झड़ते हैं। संतों का आगमन भी बड़ा शुभ होता है। धन आदि तो सामान्य आदमी के यहां मिल जाता है, किन्तु संतों का समागम और भगवत कथा, हरी कथा व धर्मकथा दुर्लभ होती है। आदमी की संगति अच्छी होती है तो अच्छे संस्कार भी प्राप्त हो सकते हैं। इसलिए आदमी को अच्छे व्यक्ति की संगति में रहने का प्रयास करना चाहिए। साधु से प्रेरणा लेकर समता की साधना करने का प्रयास होना चाहिए। राग के समान कोई दुःख नहीं और त्याग के समान कोई सुख नहीं। इसलिए आदमी को समता की भावना को पुष्ट बनाए रहने का प्रयास करना चाहिए।
आचार्यश्री ने मंगल प्रवचन के द्वारा समुपस्थित ग्रामीणों को पावन प्रेरणा प्रदान करते हुए सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति की प्रेरणा प्रदान करते हुए ग्रामीणों से इनके संकल्पों को स्वीकार करने आह्वान किया तो समुपस्थित ग्राम्यजनता ने सहर्ष तीनों संकल्पों को स्वीकार किया।
आचार्यश्री के स्वागत में श्री किरिटभाई पटेल, श्री बाबूभाई पटेल, श्री महेशभाई रावल ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी व आचार्यश्री से मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया।