पॉक्सो आरोपी के खिलाफ एफआईआर रद्द नहीं होगी : गुजरात हाईकोर्ट
समझौते के आधार पर एफआईआर रद्द करना पॉक्सो कानून की भावना के खिलाफ – अदालत

अहमदाबाद।गुजरात हाईकोर्ट ने पॉक्सो एक्ट के एक गंभीर मामले में स्पष्ट किया है कि शिकायतकर्ता और आरोपी के बीच आपसी समझौता हो जाने के बावजूद ऐसे मामलों में एफआईआर रद्द नहीं की जा सकती। अदालत ने कहा कि बच्चों के साथ यौन अपराध केवल किसी एक व्यक्ति के खिलाफ नहीं, बल्कि पूरे समाज के खिलाफ अपराध होते हैं, और ऐसे अपराधों में समझौते का आधार कानूनी रूप से स्वीकार्य नहीं हो सकता।
यह अहम फैसला न्यायमूर्ति दिव्येश ए. जोशी की एकलपीठ ने सुनाया। उन्होंने कहा कि पॉक्सो कानून की धाराएं विशेष रूप से 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों को यौन उत्पीड़न, शारीरिक शोषण और पोर्नोग्राफी जैसी गंभीर आपराधिक गतिविधियों से सुरक्षा देने के लिए बनाई गई हैं। यदि कोर्ट सिर्फ इस आधार पर एफआईआर रद्द कर दे कि दोनों पक्षों में समझौता हो गया है, तो इससे कानून की मूल भावना को ठेस पहुंचेगी और समाज को गलत संदेश जाएगा।
प्रस्तुत मामला अहमदाबाद के निकोल पुलिस स्टेशन में दर्ज एफआईआर से जुड़ा है, जिसमें एक छह वर्षीय बालिका के साथ यौन उत्पीड़न की शिकायत पर आरोपी के खिलाफ पॉक्सो एक्ट की धाराओं में मामला दर्ज किया गया था। बाद में आरोपी ने हाईकोर्ट में अर्जी लगाई कि दोनों पक्षों में आपसी सहमति से मामला सुलझ गया है, इसलिए एफआईआर रद्द की जाए।
हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में एफआईआर को रद्द करने का आधार आपसी समझौता नहीं हो सकता, क्योंकि यह अपराध केवल पीड़िता के नहीं बल्कि समाज के विरुद्ध है। अदालत ने अपने आदेश में कहा, “पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज अपराध को समझौते के आधार पर समाप्त करना कानून की मंशा और नीति के खिलाफ है। अगर ऐसा किया गया तो इससे कानून का दुरुपयोग बढ़ेगा और पीड़ित बच्चों की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है।”
अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के कई पूर्ववर्ती निर्णयों का भी हवाला दिया और कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि ऐसे गंभीर अपराधों में कोर्ट को सिर्फ आपसी समझौते के आधार पर एफआईआर रद्द करने से बचना चाहिए। न्यायमूर्ति जोशी ने कहा कि इस मामले में प्रथम दृष्टया आरोपी के खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य मौजूद हैं और उन आधारों पर जांच व ट्रायल चलाया जा सकता है।
हाईकोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि पॉक्सो एक्ट की धाराएं बच्चों को यौन शोषण से सुरक्षा देने के लिए कठोर सजा और प्रक्रियात्मक सुरक्षा प्रदान करती हैं। यदि इन धाराओं का पालन सख्ती से नहीं किया गया, तो बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की जा सकेगी और समाज में अपराधियों का मनोबल बढ़ेगा।
गुजरात हाईकोर्ट का यह निर्णय आने वाले समय में ऐसे मामलों में कानूनी नजीर के रूप में देखा जाएगा, जहां पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज मामलों को समझौते या आपसी सहमति के आधार पर समाप्त करने का प्रयास किया जाएगा। अदालत ने साफ किया कि ऐसे अपराधों में समाजहित सर्वोपरि है और कानून का उद्देश्य बच्चों को हर हाल में सुरक्षित रखना है।