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निःस्वार्थ भावों से की गई भावना होती है फलित: आचार्य सम्राट डॉ. श्री शिवमुनि जी म.सा.

आचार्य सम्राट डॉ. श्री शिवमुनि जी म.सा. आदि ठाणा-17 महावीर भवन, भटार रोड से विहार कर आज प्रातः आशीर्वाद पैलेस होते हुए प्रातः 8 बजे घोड़दोड़ रोड स्थित शांति भवन पधारे।

शांति भवन में दो दिवसीय प्रवास के प्रथम दिन उपस्थित धर्म सभा को संबोधित करते हुए अपने उद्बोधन में फरमाया कि निस्वार्थ भाव से, शुद्ध भावों से की गई कामना की पूर्ति अवश्य पूर्ण होती है। मनुष्य में ऐसी बेचैनी, ऐसी तड़फ अंग-अंग में अंतर हृदय में समा जाए तो उस भावना को फलीभूत होने में कोई नहीं रोक सकता। शांति भवन श्रीसंघ की यह भावना थी कि कोई सेवा का अवसर मिले इनको दो-दो अवसर मिल गये जिसमें चार-चार नवदीक्षितों की बड़ी दीक्षा का आयोजन 9 मई को हो रहा है.बड़ी दीक्षा में पंच महाव्रतों का आरोहण होता है।उसका आयोजन व साधु-साध्वीवृंद के दीक्षा दिवस का कार्यक्रम मिला वह यहां के श्रावकों की श्रद्धा व भावना का परिणाम है।

उन्होंने आगे फरमाया कि एक भाव रखने से अवश्य वह भाव फलीभूत होता है, जिस तरह से एक एक बीज चाहे वह सेव का है, नींबू का है, आम का है कोई भी बीज भूमि में डाला जाता है और वह बीज भूमि की गर्मी को सहन कर धीरे-धीरे अंकुरित होकर विशाल वृक्ष का रूप धारण कर लेता है उसी तरह व्यक्ति की निस्वार्थ व शुद्ध भावों से की गई भावना पूर्ण होती है जो चाहा वह मिल जाता है।

उन्होंने फरमाया का जीव का जीव में ठहरना सबसे बड़ा तप है। कठिन है किंतु धीरे-धीरे प्रयास से संभव हो सकता है और जीव का जीव में ठहरना ही मोक्ष का मार्ग है।

इससे पूर्व युवाचार्य श्री महेन्द्र ऋषि जी म.सा. ने फरमाया कि श्रावक-श्राविकाएं भी धर्मसंघ के प्रति ऐसी आस्था रखें कि मैं भी एक दिन साधु बनूं, यदि साधु नहीं बन सकते तो ऐसी भावनाएं रखें भावनाएं व्यक्ति के भावों को निर्मल बनाती है। अपने जीव पर दया कर प्रतिदिन कम से कम एक घंटे का ध्यान अवश्य करने से जीव का कल्याण हो सकता है।

इस अवसर पर प्रवर्तक श्री प्रकाश मुनि जी म.सा. ने अपने 52 वें दीक्षा दिवस पर बचपन के वैराग्यकाल के संस्मरणों की चर्चा करते हुए फरमाया कि

मुझे मेरे गुरुदेव ने बताया था कि वीतराग वाणी पर श्रद्धा रखना, बंधन में नहीं रहना, मोह-माया में उलझना मत, बदले की भावना से मन में गांठ मत बांधना उसी आधार पर चलने की प्रेरणा दी और वह प्रेरणा सभी के लिए प्रेरणाप्रद है। जो जिद्द करता है वह आगे निकल जाता है किंतु जिद्द भी अच्छी होनी चाहिए। मुझे भी संत बनने की जिद्दी थी और मैं संत बन गया।

इस अवसर आचार्य सम्राट डॉ. श्री शिवमुनि जी म.सा. ने प्रवर्तक श्री प्रकाशमुनि जी म.सा. के 52वें दीक्षा दिवस पर आदर की चादर भेंट की एवं साध्वी श्री दिव्यज्योति जी म.सा. साध्वी श्री ज्ञानप्रभाजी म.सा. और साध्वी सुरभि म.सा. का भी दीक्षा दिवस मनाया गया।

इस अवसर पर श्रीसंघ के सभी पदाधिकारी एवं कार्यकर्त्ताओं ने स्वागत अभिनन्दन किया।संघ श्रावक सुरेश चोपड़ा ने जानकारी देते हुवे बताया कि दिनांक 9 मई 2025 को नव दीक्षितों की बड़ी दीक्षा का आयोजन पांजरापोल, घोड़दोड़ रोड में होगा। जहां पर बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाएं उपस्थित रहेंगे।

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