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गुस्से का विवेक करे मानव : मानवता के मसीहा महाश्रमण 

13 देशों के 171 अप्रवासी तेरापंथी सदस्यों की उपस्थिति से गुलजार बना चतुर्मास स्थल

-शांतिदूत की मंगल सन्निधि में प्रारम्भ हुआ ‘तेरापंथ ग्लोबल समिट’ का चतुर्थ सम्मेलन

-अच्छी आध्यात्मिक खुराक देने वाला सिद्ध हो यह आयोजन : युगप्रधान आचार्यश्री

-मुख्यमुनिश्री ने भी सदस्यों को दी आध्यात्मिक प्रेरणा

02.08.2025, शनिवार, कोबा, गांधीनगर (गुजरात) :जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के देदीप्यमान महासूर्य, वर्तमान अधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी वर्तमान समय में अहमदाबाद के कोबा मंे स्थित प्रेक्षा विश्व भारती में वर्ष 2025 का चतुर्मास कर रहे हैं। आचार्यश्री के आगमन से पूरा अहमदाबाद और गांधीनगर मानों आध्यात्मिक नगरी बन गई है। चतुर्मास प्रवास स्थल मानों लघु भारत का रूप में ही परिवर्तित हो गया है। इसके अतिरिक्त आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में आयोजित होने वाले नित नूतन आयोजनों से चतुर्मास के ठाट और वृद्धिंगत कर दिया है। कई आयोजनों के भव्य समायोजन के बाद आज से तेरापंथ समाज की संस्था शिरोमणि जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के तत्त्वावधान में चतुर्थ ‘तेरापंथ ग्लोबल समिट’ का भव्य द्विदिवसीय सम्मेलन प्रारम्भ हुआ। इस सम्मेलन में भाग लेने के लिए 13 देशों के 171 प्रवासी तेरापंथी परिवार अपने आराध्य की सन्निधि में पहुंचे तो लगा मानों पूरा विश्व मानवता के मसीहा की सन्निधि में उपस्थित हो गया हो। इस सम्मेलन में भाग लेने के लिए आस्ट्रिया, आस्ट्रेलिया, बेल्जियम, बांग्लादेश, ब्राजील, कनाडा, हांगकांग, इण्डोनेशिया, कतर, सिंगापुर, यूएई, यूके और यूएसए से श्रद्धालुओं का एक साथ आध्यात्मिक लाभ लेने के उपस्थित होना अपने आप में विशिष्ट बात प्रतीत हो रही है। इस समिट का थीम है ‘सृजन एवं समन्वय, आओ बने भिक्षुमय।’

शनिवार को मुख्य मंगल प्रवचन कार्यक्रम में युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ‘वीर भिक्षु समवसरण’ के मंच पर विराजमान हुए तो उनकी मंगल सन्निधि में ‘तेरापंथ ग्लोबल समिट के संभागी सदस्य अपने-अपने प्रवास वाले देश का प्रतिनिधित्व करते हुए उन-उन देशों के ध्वजों के साथ समवसरण में अपने आराध्य की सन्निधि में पहुंचे तो एक बहुत ही सुन्दर मनोरम दृश्य उत्पन्न हो रहा था।

शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित विशाल जनमेदिनी को ‘आयारो’ आगम के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के भीतर अनेक वृत्तियां विद्यमान रह सकती हैं। वीतरागता प्राप्त हो जाती है, तो राग-द्वेषात्मक वृत्तियां समूल रूप से समाप्त हो जाती हैं। सामान्य आदमी अथवा छठे गुणस्थान वाले साधु में अनेक वृत्तियां प्रगट होती हैं। ‘आयारो’ आगम में कहा गया है कि क्रोध रूपी वृत्ति को अलग करने, अथवा उसे कम करने अथवा उसे सम्पूर्ण रूप से समाप्त करने का प्रयास करना चाहिए। गुस्से का विवेक करने की प्रेरणा प्रदान की गई है।

आदमी को कोई बार गुस्सा आ जाता है। नहीं चाहते हुए भी आक्रोश का भाव आ जाता है। यह गुस्सा शाश्वत नहीं होता, यह थोड़े समय का ही होता है। अभव्य जीव में गुस्सा शाश्वत रूप में होती है। शेष तो किसी भी मानव में गुस्सा लम्बे काल तक नहीं रहता। किसी पर गुस्सा आया, लेकिन कुछ क्षण बाद ही वह गुस्सा उपशांत हो जाता है। शास्त्र में बताया गया कि गुस्से का आयुष्य लम्बा नहीं होता। इसलिए आदमी को इस गुस्से का परित्याग ही कर देने का प्रयास करना चाहिए।

गुस्सा आता है तो आत्मप्रदेशों में भी अस्थिरता होती है। गुस्से का कालमान ज्यादा नहीं होता तो आदमी का जीवन काल भी सीमित ही होता। अनिश्चित जीवनकाल में आदमी क्यों किसी की शांति भंग करे, क्यों दूसरों से लड़ाई-झगड़ाकर आपसी संबंधों को बिगाड़ना। इसलिए आदमी को गुस्से का विवेक करने का प्रयास करना चाहिए और जितना संभव हो सके, गुस्से को कृश करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को ज्यादा लड़ाई-झगड़े से बचने और शांति में रहने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को गुस्से को करने का प्रयास करना चाहिए। जहां तक संभव हो सके, आदमी को गुस्से को उपशांत ही रहने देने का प्रयास होना चाहिए। इसके लिए आदमी को अपने मन को समझाने का प्रयास करना चाहिए। दीर्घ श्वास के साथ प्रेक्षाध्यान का प्रयोग कर भी गुस्से को कम कर सकता है। कभी गुस्सा भी आए तो आदमी को मौन कर लेना चाहिए। योग में गुस्सा आ जाए तो मन भी दूषित हो जाता है। प्रेक्षाध्यान वर्ष चल रहा है तो आदमी को प्रेक्षाध्यान के द्वारा भी अपने गुस्से को कम करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को अपनी प्रकृति को बदलने का प्रयास करना चाहिए।

गुस्सा का कहीं भी काम का नहीं है। आदमी कहीं भी रहे, आफिस, दुकान, घर, बाजार और समाज आदि कहीं भी गुस्सा का नहीं होता। आदमी को शांति में रहने में का प्रयास करना चाहिए। गुस्से को उपाशांत करने के लिए आदमी को थोड़ी देर के लिए मौन भी कर लेना चाहिए। कभी कोई निर्णय भी करना हो तो शांति में करने का प्रयास होना चाहिए। मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ‘तेरापंथ प्रबोध’ के आख्यान से जनता को लाभान्वित कराया।

युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी की मंगल सन्निधि में ‘संस्था शिरोमणि’ जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के तत्त्वावधान में चतुर्थ ‘तेरापंथ ग्लोबल समिट के द्विदिवसीय आयोजन का शुभारम्भ हो रहा था। इस समिट का थीम है ‘सृजन एवं समन्वय, आओ बने भिक्षुमय।’ इस समिट में भाग लेने के लिए 13 देशों के 171 प्रवासी तेरापंथी परिवार अपने आराध्य की मंगल सन्निधि में उपस्थित थे। समिट के कन्वेनर श्री जयेशभाई शाह, तेरापंथी महासभा के अध्यक्ष श्री मनसुखलाल सेठिया व डॉ. राज सेठिया ने अपनी अभिव्यक्ति दी। मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने भी उपस्थित उन देशों के प्रवासी तेरापंथी सदस्यों को उद्बोधित किया।

 

युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने इस समिट के संभागियों को पावन संबोध प्रदान करते हुए कहा कि तेरापंथ के लोग भारत में ही नहीं, भारत से बाहर भी रहने लगे हैं। इन कुछ वर्षों में तेरापंथी महासभा के तत्त्वावधान में एक व्यवस्थित रूप बना हुआ है कि इन बिखरे हुए मोतियों को माला का रूप दिया जा रहा है। यह एक सुन्दर उपक्रम बन रहा है। हमारी समण श्रेणी भी बाहर जाकर विदेशों में रहने वाले परिवारों को धार्मिक लाभ प्राप्त होता है। इससे सभी को अच्छा धार्मिक लाभ प्राप्त होता है। एक साथ यहां आने से भी कितना लाभ प्राप्त हो सकता है। पर्युषण की अच्छी आराधना हो, संवत्सरी का उपवास आदि और अन्य आध्यात्मिक उपक्रम भी चले। अपने धार्मिक-आध्यात्मिक क्रम अच्छे ढंग से चलें। यह सम्मेलन अच्छी खुराक देने वाला सिद्ध हो। श्री नरेश मेहता ने भी अपनी भावाभिव्यक्ति दी।

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