जीव, कर्म बंधन और जीवन का विवेकपूर्ण मार्ग—आचार्य सम्राट डॉ. श्री शिवमुनि जी म.सा.

आत्म भवन,बलेश्वर, सूरत।
आत्म भवन में आचार्य सम्राट डॉ. श्री शिवमुनि जी म.सा. ने अपने दैनिक उद्बोधन में जीवन की गहराईयों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि व्यक्ति में जीवैषणा अर्थात् जीने की तीव्र आकांक्षा रहती है। चाहे कितना ही बड़ा रोग क्यों न हो, व्यक्ति बड़े से बड़े अस्पतालों में इलाज कराता है, परन्तु जब आयुष्य कर्म पूर्ण हो जाता है तो उसे संसार छोड़ना ही पड़ता है। बड़े अस्पतालों और आधुनिक उपचारों के बावजूद भी मृत्यु को कोई रोक नहीं सकता क्योंकि यह जीवैषणा ही कर्म बंधन का मूल कारण है।
आचार्य श्री ने परिवंदन अर्थात प्रशंसा, प्रसिद्धि और अधिकार की भावना को भी पाप कर्म का बंधन बताते हुए फरमाया कि व्यक्ति चाहता है कि उसका नाम हो, प्रसिद्धि मिले और दूसरों पर अधिकार स्थापित हो। यही कारण है कि राजा-राजा को झुकाना चाहता है। युक्रेन और रूस का वर्षों से चला आ रहा युद्ध भी इसी परिवंदन की उपज है। यह मनुष्य को पाप के बंधन में जकड़ता है।
आचार्यश्री ने इतिहास का उल्लेख करते हुए कहा कि अकबर ने महाराणा प्रताप को झुकाने के लिए अनेक प्रयास किए लेकिन वे असफल रहे। महाराणा प्रताप और छत्रपति शिवाजी मातृभूमि की रक्षा के लिए अडिग रहे। नालंदा विश्वविद्यालय की लाखों पुस्तकें मुगल आक्रांताओं द्वारा जला दी गईं, अंग्रेजों ने ईस्ट इंडिया कंपनी के माध्यम से भारत पर अधिकार जमाया लेकिन अंततः उनका अस्तित्व समाप्त हो गया। यह सब परिवंदन और अहंकार के कारण पाप कर्म का परिणाम है।
उन्होंने आगे कहा कि जब व्यक्ति में सत्कार या सम्मान पाने की भावना रहती है तो वह प्रसिद्धि पाने के लिए हिंसा, झूठ, कपट और ढोंग का सहारा लेता है, जो उसे पाप कर्म में बाँध देता है।
आचार्य श्री ने भगवान पार्श्वनाथ और कमठ के प्रसंग का उल्लेख करते हुए फरमाया कि अहंकार के वशीभूत होकर कमठ ने वैर भावना को अपनाया, परिणामस्वरूप वह नरक में गया, जबकि भगवान पार्श्वनाथ मोक्ष को प्राप्त हुए। जो व्यक्ति प्रशंसा, अधिकार और मान के लिए कठोर कर्म करता है वह संसार में बार-बार बंधता है।
कर्म के प्रवेश द्वार बंद करने का संदेश
प्रमुख मंत्री श्री शिरीष मुनि जी म.सा. ने फरमाया कि जैसे बंद दरवाजे से धूल-मिट्टी घर में नहीं आती, वैसे ही मन, वचन और काया को स्थिर कर व्यक्ति पाप कर्म के प्रवेश को रोक सकता है। ध्यान, मौन और योग की स्थिरता से मन शुद्ध होता है और कर्म बंधन के रास्ते बंद होते हैं।
कमलवत जीवन जीने की प्रेरणा
उन्होंने कहा कि चलती-फिरती आंखें भी कर्म बंधन का कारण बनती हैं। इसलिए भगवान की वाणी के अनुसार व्यक्ति को विवेकयुक्त जीवन जीते हुए कमलवत् संसार में रहना चाहिए।सहमंत्री श्री शुभम मुनि जी म.सा. ने “तू उड़ जा हंस अकेला रे, यह है जग जीवन मेला” भजन की मधुर प्रस्तुति देकर श्रद्धालुओं को भक्ति भाव से सराबोर किया।