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जीव के प्रति,आत्मा के प्रति श्रद्धा होना बहुत जरूरी है-आचार्य शिव मुनि

क्रोध को शांति से,मान को मार्दव,माया को सरलता से और लोभ को संतोष से जीता जा सकता है-शिरीष मुनि

आत्मज्ञानी सद्‌गुरुदेव आचार्य सम्राट पूज्य डॉ.श्री शिवमुनि जी म.सा. ने अपने उ‌द्बोधन में फरमाया कि व्यक्ति को अपने स्वरूप का बोध नहीं होने से अनंत अनंत जन्मों से चार गति चौरासी लाख जीवायोनि में भ्रमण कर रहा है। इसलिए अपने अस्तित्व का बोध जरूरी है। एक भीतर से पुकार उठे कि मैं हूं कौन?क्यों आया हूं?यह जीव क्यों संसार में भ्रमण कर रहा है?

आचार्य भगवन ने आगे फरमाया कि संसार का मूल कारण चित्त भ्रमण है।चित्त को एकाग्र करना आवश्यकहै,चित्त को शुभआलंबन देना चाहिए। जिससे व्यक्ति आत्मा में लीन हो जाए और जीव में स्थित हो जाए जो संवर और निर्जरा की साधनाहै।

आचार्य भगवन ने फरमाया कि मनुष्य के भीतर करुणा का भाव है तो वह सबको समान दृष्टि से देखता है,वह मनुष्यता है।व्यक्ति केवली तीर्थंकरों की वाणी सुनकर कल्याण के मार्ग को जानता है। सुख-दुःख
क्या है?पुण्य का मार्ग क्या है? सत्य क्या है असत्य क्या है? सुनकर के व्यक्ति जान सकता है और जानने के बाद निर्णय करता है,जो अच्छा लगता है उसे ग्रहण करता है। जीव के प्रति,आत्मा के प्रति श्रद्धा होना बहुत जरूरी है। मैं जीव आत्मा हूं। जो सुन लिया उसके उपर पुरुषार्थ करो उससे धर्म का बोध होगा। धर्म मंगल है,धर्म उत्कृष्ट है,अहिंसा,संयम,तपधर्म है। जो सुख समृद्धि से भर दे वह मंगल हैं। धर्म से ऊपर कोई ऊंचा नहीं है। महावीर की सारी देशना अहिंसा की है। जब जीव जीव में स्थित हो जाता है वह अहिंसा का पालन कर सकता है।

प्रमुख मंत्री श्री शिरीष मुनिजी म.सा.ने अपने उद्बोधन में फरमाया कि क्रोध को शांति से,मान को मार्दव,माया को सरलता से और लोभ को संतोष से जीता जा सकता है। आपको जड़ जीव के भेद ज्ञान की विधि मिली है।सम्पूर्ण जीवन काल में हमें केवल एक शुद्ध सामायिक करनी है।एक घड़ी ध्यान बहुत है जिसमें एक समय भी जीव
के अलावा न विचार,न बुद्धि,न संस्कार आए।न कोई अन्य स्मृति आ जाए। ज्ञाता दृष्टा भाव में रहो, अनादिकाल का मिथ्यात्व एक घड़ी की सामायिक में टूट सकता है।

श्री शुभम मुनि जी म.सा.ने “पायो जी मैंने आत्म दर्शन पायो” सुमधुर भजन की प्रस्तुति दी।

इस अवसर पर श्री ऑल इण्डिया श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन कॉन्फ्रेन्स के आत्म ध्यान प्रचार योजना के अन्तर्गत ‘आत्म ध्यान संकल्प महोत्सव हेतु’ जैन कॉन्फ्रेन्स के अनेक राष्ट्रीय एवं प्रान्तीय पदाधिकारीगण आचार्य भगवन के दर्शनार्थ उपस्थित हुए। जैन कॉन्फ्रेन्स के पदाधिकारियों ने भावी योजनाओं के संदर्भ में अपने विचार रखे एवं आचार्यश्री जी से आशीर्वाद ग्रहण किया।

आज श्री शौर्य मुनि जी म.सा. के 8 दिन के उपवास का प्रत्याख्यान किया।

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