गुजरातटॉप न्यूज़धर्मसामाजिक/ धार्मिकसूरत सिटी

क्षमा वीरस्यभूषणम् : महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण

आचार्यश्री ने क्षमा रूपी धर्म को किया व्याख्यायित

साध्वीवर्याजी के उद्बोधन से भी श्रद्धालु हुए लाभान्वित

-श्रद्धालुओं ने आज भी श्रीचरणों में दी भावनाओं को अभिव्यक्ति

02.07.2025, बुधवार, शाहीबाग, अहमदाबाद।

जिस प्रकार मानसून के आगमन से धरती पर हरियाली छा जाती है, उसी प्रकार अहमदाबाद नगर में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, शांतिदूत, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी के शुभागमन से आध्यात्मिकता की हरितिमा छाई हुई है। शाहीबाग में सप्तदिवसीय प्रवास कर रहे शांतिदूत की मंगल सन्निधि में प्रतिदिन अहमदाबाद के हजारों की संख्या में श्रद्धालु उपस्थित हो रहे हैं और आचार्यश्री के मंगल दर्शन, पावन प्रवचन का श्रवण तथा यथावसर निकट सेवा का लाभ भी प्राप्त कर अपने जीवन को आध्यात्मिकता से भावित बना रहे हैं। आचार्यश्री के श्रीमुख से निरंतर प्रवाहित होने वाली अमृतवाणी अहमदाबादवासियों के मानस को उसी प्रकार अभिसिंचित कर रही है, जिस प्रकार वर्षा धरती को अभिसिंचन प्रदान करती है।

शाहीबाग प्रवास के छठे दिन नित्य की भांति प्रातःकालीन मुख्य प्रवचन कार्यक्रम का शुभारम्भ युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी के मंगल महामंत्रोच्चार के साथ हुआ। आचार्यश्री के मंगल प्रवचन से पूर्व साध्वीवर्याजी का उद्बोधन हुआ।

तदुपरान्त शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित जनता को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि क्षमा धर्म जैन वाङ्मय में बताया गया है। क्षमा को उत्तम धर्म कहा गया है। इसकी आराधना करना आत्मकल्याण की दृष्टि से सहायक बताया गया है। कहा भी गया है- सहन करो, सफल बनो। आदमी को वचन के प्रहारों को सहन करना चाहिए। कई बार आदमी को ऐसे वचन सुनने को मिलते हैं। वे शब्द आदमी के मन में दुर्भावना पैदा करने वाले होते हैं। कठोर शब्दों को सहन करना भी एक साधना है। जहां कठोर वचन सुनने को मिले, वहां आदमी यह सोचे कि सहन करना मेरा धर्म है। आदमी के यह विचार करे कि सहन करना मेरी आत्मा के लिए हितावह होता है। जो सहन कर लेते हैं, वे अच्छे व्यक्ति होते हैं, जो वचन के बाणों को सहन कर लेते हैं।

आदमी चिंतन प्रशस्त हो जाए तो कठोर वचनों को भी सहन किया जा सकता है। चिंतन प्रशस्त नहीं होगा तो आदमी दो की चार सुनाने का प्रयास करेगा। ईंट का जवाब पत्थर से देने का प्रयास करेगा। आदमी का चिंतन यह हो कि कोई बात नहीं, मेरे कर्म कटेंगे, चिंतन प्रशस्त हो जाएगा तो आदमी सहन कर लेगा। सहन कर लेने का परिणाम बहुत अच्छा आता है। शक्ति होने पर भी मौन हो जाना अच्छी बात होती है। सहन करने से कभी सामने वाला प्रभावित हो सकता है और कड़वाहट समाप्त भी हो सकती है। साथ में रहने और सहन करने से शांति रह सकती है।

इसलिए आदमी को क्षमा धर्म का अनुपालन करना चाहिए। साधु को तो क्षमा धर्म का पालन तो करना ही होता है, गृहस्थ जीवन में भी क्षमा धर्म की साधना करने का प्रयास होना चाहिए। कहा गया है- ‘क्षमा वीरस्यभूषणम्।’ क्षमा रूपी खड्ग जिसके हाथ में है, दुर्जन उसका क्या बिगाड़ लेगा। जहां घास-फूस होता है, वहां अग्नि पड़ने पर वह और धधकती है, किन्तु जहां सूख मैदान है, वहां अग्नि पड़ेगी भी तो थोड़ी देर में स्वतः बुझ जाएगी।

क्षमा रूपी धर्म कर्म निर्जरा और आत्म शुद्धि का अच्छा उपाय है। सहन करने वाला आराधना करने वाला होता है। जो साधु सहन न करे, वह विराधक हो सकता है। इसलिए क्षमा रूपी धर्म का पालन करने का प्रयास होना चाहिए। शांति है तो क्षांति की प्राप्ति भी हो सकती है। कठिनाइयां और प्रतिकूलताएं बड़े-बड़े लोगों के जीवन में भी आती है। कोई तथ्यहीन बातें बोले तो भी उसे सहन करने का प्रयास होना चाहिए। अपेक्षा हो तो कभी स्पष्टीकरण भी दिया जा सकता है, किन्तु आलोचना-निंदा का जवाब जबान से नहीं, अपने अच्छे कार्यों से देने का प्रयास होना चाहिए। जो वचन के प्रहारों को सहन करता है, वह पूज्य होता है।

अहमदाबादवासियों की ओर से आज भी भावनाओं की अभिव्यक्ति का क्रम जारी रहा। इस क्रम में स्थानीय तेरापंथी सभा के उपाध्यक्ष श्री ललित सालेचा, श्री डालमचन्द नौलखा व श्री सूरजकरण बोथरा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। ज्ञानशाला की प्रशिक्षिकाओं तथा तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम-अहमदाबाद से जुड़ी महिला सदस्यों ने पृथक्-पृथक् गीत का संगान किया। श्री विजयराजजी ने गीत को प्रस्तुति दी।

 

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button