सौंदर्य की अनासक्ति और प्रोत्साहन की शक्ति:आत्म जागृति के दो मार्ग
पूज्य मुनिराजों के प्रेरणादायक प्रवचनों से आत्म-जागृति की दिशा में कदम

सूरत। बाड़मेर जैन श्री संघ द्वारा पर्वत पाटिया स्थित कुशल दर्शन दादावाड़ी में आयोजित सर्वमंगलमय वर्षावास-2025 के तहत विराजित पूज्य आचार्यश्री जिनपियूषसागर सूरीश्वरजी म.सा. ससंघ के पावन सान्निध्य में प्रेरणाप्रद प्रवचनों का आयोजन हुआ, जिसमें श्रद्धालुओं को आत्मबोध, सदाचार और आत्मकल्याण की दिशा में प्रेरणा मिली। प्रवचनों में पूज्य शाश्वतसागरजी म.सा. ने सौंदर्य की आसक्ति से उत्पन्न मोह और उसके परिणामों पर प्रकाश डालते हुए राजा भर्तृहरि और पिंगला की कथा सुनाई, जिसमें मोह के कारण उत्पन्न धोखे ने राजा को आत्मजागृति की ओर मोड़ा और अंततः उन्होंने मुनिव्रत धारण कर लिया। पूज्यश्री ने कहा कि भोग और आकर्षण विवेक को नष्ट कर देते हैं, और प्रश्न किया कि “राजा भर्तृहरि तो जाग गए… पर क्या हम जागे?” उन्होंने तीन प्रकार के पुरुषों की व्याख्या करते हुए कहा कि उत्तम पुरुष जिनवाणी से प्रेरित होकर आत्ममार्ग पर चलते हैं, मध्यम पुरुष दूसरों के अनुभवों से सीखते हैं, जबकि जड़ पुरुष सत्य जानकर भी परिवर्तन नहीं करते। उन्होंने श्रोताओं से आत्ममंथन का आह्वान किया कि क्या हम केवल जीवन जी रहे हैं या आत्मकल्याण हेतु पुरुषार्थ कर रहे हैं।
इस अवसर पर पूज्य समर्पितसागरजी म.सा. ने आत्मकल्याण के लिए प्रोत्साहन की शक्ति को निर्णायक बताया और आचार्य हेमचंद्रसूरी जी म.सा. की माताजी के प्रेरणास्पद संवाद का उल्लेख करते हुए बताया कि एक सच्चा साधक अंतिम श्वास तक आत्मोत्थान की भावना से ओतप्रोत रहता है। उन्होंने सच्चे सद्गुरु के चार लक्षण बताते हुए कहा कि वह H–Help, E–Encourage, L–Lead और P–Promote करता है। एक संत और डाकू की कथा सुनाते हुए उन्होंने समझाया कि प्रेम और प्रोत्साहन के बल पर कोई भी जीवन दिशा बदल सकता है। प्रवचन के अंत में पूज्य आचार्य श्री जिनपियूषसागर सूरीश्वरजी म.सा. ने अपने मधुर स्वर में एक भजन प्रस्तुत कर उपस्थित जनसमूह को भावविभोर कर दिया, जिसके बोल – “चंद दिनों का जीना रे बंदे, ये दुनिया मकड़ी का जाला…” – ने सभी को आत्मचिंतन के लिए प्रेरित किया।
संघ के वरिष्ठ सदस्य चम्पालाल बोथरा ने जानकारी देते हुए कहा कि पूज्य शाश्वतसागरजी म.सा. ने जहां मोह से मुक्त होने का मार्ग दिखाया, वहीं पूज्य समर्पितसागरजी म.सा. ने प्रोत्साहन की शक्ति के माध्यम से आत्म-जागृति की दिशा सुझाई। उन्होंने कहा कि समाज को आज ऐसे ही सद्गुरुजनों की वाणी से प्रेरणा लेकर सजग, सकारात्मक और साधनायुक्त जीवन जीने की आवश्यकता है।