जीव के अस्तित्व के बिना इस काया का भी कोई महत्त्व नहीं रहता है-आचार्य डॉ-शिवमुनि

आत्म भवन, बलेश्वर, सूरत।आचार्य सम्राट डॉ. शिवमुनि जी म.सा. ने अपने उद्बोधन में फरमाया कि जीव छह दिशाओं में कहां से आया है यह अस्तित्व का बोध होना चाहिए। इस साढ़े तीन हाथ की काया में केवल अपने समान जीव को देखें और जाने, हर देह में जीव का अस्तित्व होता है, जीव के अस्तित्व के बिना इस काया का भी कोई महत्त्व नहीं रहता है। शरीर परिवर्तनशील है वह बदलता रहता है, किंतु जीव का परिवर्तन नहीं होता वह स्थायी है।
उन्होंने आगे फरमाया कि गुरु नानक की वाणी ‘इक ओंकार’ निराकार आत्मा में सत्य को देखो। सभी महापुरुषों की एक ही वाणी है कि भीतर आत्मा के अस्तित्व को जानो। व्यक्ति का लक्ष्य तय हो कि मुझे इस मानव रूपी देह का
सम्यक् उपयोग कर सिद्धशिला जाना है। यह जो देह मिली है यह स्थायी नहीं है, यह देह बचपन, जवानी, बुढ़ापा और फिर एक दिन शमशान की राख बन जाती है, इसलिए अपने स्थायी घर सिद्धशिला को प्राप्त करने का लक्ष्य तय करें।
उन्होंने हंस और बगुले का दृष्टांत देते हुए फरमाया कि हंस और बगुले का रंग एक जैसा होता है, दोना ही मानसरोवर पर जाते हैं किंतु हंस मोती चुगता है और बगुला मछली, दोनों की वृत्तियां अलग-अलग होती है, मनुष्य की वृत्ति हंस की तरह होनी चाहिए। इस संसार में रहते हुए जो धर्म साधना मिली है उस धर्म का सार ग्रहण कर अपने जीवन को उज्ज्वलमय बनाएं।
प्रमुख मंत्री श्री शिरीष मुनि जी म.सा. ने श्री दशवैकालिक सूत्र की गाथाओं का विवेचन करते हुए उद्बोधन में फरमाया कि जिस शिष्य में ज्ञान है, बुद्धि है किंतु वह स्वयं को सर्वेसर्वा मानता है दूसरे को हीन मानता है वह शिष्य दुर्बुद्धि वाला होता है। जो मिथ्यात्वी व्यक्ति होता है वह पाप कर्मों का बंधन करता है। सम्यक्तवी व्यक्ति अपनी आत्मा पर श्रद्धा करता है और जड़ चेतन का भेद कर आत्मा में स्थित रहता है।
प्रवचन प्रभाकर श्री शमित मुनि जी म.सा. ने “जरा सा इतना बता दो भगवन” सुमधुर भजन की प्रस्तुति दी।
इस अवसर पर आज सुश्री उर्मिला विजय कुमार जी गन्ना ने 9 दिन के उपवास का प्रत्याख्यान लिया, तपस्वी बहन का शॉल, माला, मोमेन्टो द्वारा सम्मान किया। साथ अपनी धारणा अनुसार कई श्रावक श्राविकाओं ने उपवास, एकासन, बेला, तेला, आयंबिल का प्रत्याख्यान लिया। सभा में दिल्ली, पूना, मुंबई, लालबाई (मंगलदेश), वलसाड आदि क्षेत्रों से श्रद्धालु गुरु दर्शन हेतु उपस्थित हुए।