आत्मा आध्यात्मिक तो कर्म भौतिक तत्त्व : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण
महातपस्वी की मंगल सन्निधि में सुदीर्घजीवी साध्वी बिदामांजी की स्मृतिसभा का हुआ आयोजन

जैन विश्व भारती द्वारा वर्ष 2025 का जैन विद्या पुरस्कार समारोह का भी हुआ आयोजन
*30.07.2025, बुधवार, कोबा, गांधीनगर (गुजरात) :
जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी नित्य प्रति श्रद्धालुओं को आगमवाणी के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान कर रहे हैं तथा इस समय ‘तेरापंथ प्रबोध’ की आख्यानमाला से भी लाभान्वित कर रहे हैं। आचार्यश्री की अमृतमयी वाणी का श्रवण करने के लिए प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु उमड़ रहे हैं। न केवल अहमदाबादवासी, अपितु गुजरात के अन्य क्षेत्रों सहित देश के विभिन्न हिस्सों से इस अवसर का आध्यात्मिक लाभ उठाने को श्रद्धालु उपस्थित हो रहे हैं। बुधवार को ‘वीर भिक्षु समवसरण’ में उपस्थित जनता को आचार्यश्री की मंगलवाणी के श्रवण से पूर्व साध्वीवर्याजी की प्रेरणा से लाभान्वित होने का अवसर मिला।
तदुपरान्त तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अनुशास्ता युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने ‘आयारो’ आगम के माध्यम से पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि भौतिकता और आध्यात्मिकता- ये दो चीजें हैं। भौतिकता मूर्त है और आध्यात्मिकता अमूर्त है। आत्मा के साथ कर्म हैं। आत्मा तो अपने आप में विशुद्ध तत्त्व है। कर्म पुद्गल मूर्त होते हैं। उनको एक प्रकार से भौतिक भी कहा जा सकता है। आत्मा आध्यात्मिक तत्त्व और कर्म भौतिक तत्त्व है। जैन विद्या में पांच प्रकार के शरीर बताए गए हैं। औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस व कार्मण। प्रत्येक सामान्य मनुष्य के साथ तीन शरीर साथ रहते हैं। औदारिक, तैजस व कार्मण शरीर सभी जन सामान्य के साथ रहते हैं। यह स्थूल शरीर औदारिक शरीर होता है। इसके बाद एक सूक्ष्म शरीर है तैजस शरीर और सूक्ष्मतर शरीर है कार्मण। कार्मण शरीर मूल कर्म से युक्त होता है। यह कार्मण शरीर ही जीव के जन्म-मरण का एक कारण है। आदमी का व्यवहार कैसा है, वह भी कार्मण शरीर के आधार पर ही निर्धारित होता है। इसलिए कार्मण शरीर को कारण शरीर भी कहा जाता है।
आयारो में प्रश्न हुआ कि धर्म-अध्यात्म की बात, आत्मा की बात आदि इसे कौन जान सकता है और आगे बढ़ सकता है? धर्म के क्षेत्र में अहिंसा धर्म है। अध्यात्म की साधना में आगे बढ़ने के लिए इस देह के प्रति अनासक्ति की भावना का होना अपेक्षित है। जो शरीर के प्रति ज्यादा मोह और आसक्ति रखने वाला होता है, वह आसक्ति में भी जा सकता है और फिर उसे धन आदि अन्य पदार्थों के प्रति भी आकर्षण हो सकता है। देह के प्रति आसक्ति अध्यात्म की साधना में बाधक तत्त्व है। जो साधक शरीर के प्रति मोह का भाव छोड़ देता है, वह भला अन्य पदार्थों के प्रति कितना ममत्व रखेगा।
आदमी शरीर के प्रति बहुत मोह भले न हो, किन्तु शरीर की सार-संभाल, देखरेख और शरीर को भाड़ा भी देना हो सकता है, क्योंकि साधना भी तो शरीर के माध्यम से ही हो सकती है। यात्रा-विहार करते समय भी शरीर का ध्यान रखते हुए सावधानी से चलने का प्रयास होता है। शरीर का ध्यान रखना भी अपेक्षित है, ताकि ज्यादा सेवा लेनी न पड़े। जहां तक संभव हो सके, सेवा देने का प्रयास होना चाहिए। कहा गया है कि जो देह प्रति मोह का भाव नहीं रखता, वह अहिंसा की अच्छी साधना कर सकता है।
आज के कार्यक्रम में तेरापंथ समाज की सुदीर्घजीवी शासनश्री साध्वी बिदामांजी की स्मृतिसभा का आयोजन किया गया। इस संदर्भ में साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी, मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी ने उनके प्रति अपनी भावांजलि अर्पित की। आचार्यश्री ने उनका संक्षिप्त जीवन परिचय प्रदान करते हुए कहा कि वे सुदीर्घजीवी ही नहीं, सुदीर्घ संयम पर्याय वाली साध्वीजी थीं। आज के इस चिकित्सा जगत की सुविधा में जीवन जीते हुए भी वे औषधमुक्त रहीं, यह विशिष्ट बात थी। मानों ऐतिहासिक साध्वीजी का प्रयाण हो गया। आचार्यश्री ने उनकी आत्मा के कल्याण के लिए चतुर्विध धर्मसंघ के साथ चार लोगस्स का ध्यान किया। इस संदर्भ मंे मुनि मदनकुमारजी, साध्वी जिनप्रभाजी, साध्वी परमयशाजी, साध्वी मधुरप्रभाजी ने अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। साध्वीवृंद ने गीत का संगान भी किया। कालू सभा के पूर्व अध्यक्ष श्री विनोद सिंघी ने भी अपनी अभिव्यक्ति दी। साध्वी बिदामांजी के ज्ञातिजनों की ओर से श्री प्रेम चावत, श्री धर्मचंद दक व कालू सभा के अध्यक्ष श्री बुद्धमल लोढ़ा ने अपनी अभिव्यक्ति दी। गुरुदर्शन समन्वय यात्रा की ओर से श्री रमेश सिंघी ने भी अपनी अभिव्यक्ति दी।
वहीं आचार्यश्री की मंगल सन्निधि में जैन विश्व भारती की ओर से गंगादेवी सरावगी जैन विद्या पुरस्कार समारोह का आयोजन हुआ। वर्ष 2025 का जैन विद्या पुरस्कार श्रीमती राजकुमारी सुराणा (कोलकाता) को जैन विश्व भारती के पदाधिकारियों तथा अन्य गणमान्य लोगों द्वारा प्रदान किया गया। श्रीमती सुराणा का परिचय श्री मालचंद बैंगानी ने किया। श्रीमती राजकुमारी सुराणा ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। इस कार्यक्रम का संचालन जैन विश्व भारती की ओर से श्री जयंतीलाल सुराणा ने किया। आचार्यश्री ने इस संदर्भ में मंगल आशीर्वाद प्रदान किया।