गुजरातसामाजिक/ धार्मिकसूरत सिटी

चुनाव आयोग पर वारः लोकतंत्र के लिये खतरे की घंटी

– ललित गर्ग –
भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, और इस लोकतंत्र की बुनियाद जिन संस्थाओं पर टिकी है, उनमें चुनाव आयोग की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण, निष्पक्ष और प्रतिष्ठित मानी जाती है।

किंतु लोकतंत्र की रक्षा का दावा करने वाले प्रमुख विपक्षी नेता श्री राहुल गांधी जैसे वरिष्ठ जनप्रतिनिधि जब चुनाव आयोग जैसी सर्वोच्च संवैधानिक संस्था पर वोट चोरी में शामिल होने एवं बिहार में मतदाता सूची में धांधली जैसे गंभीर, शरारत भरे, बेहूदे और गुमराह करने वाले आरोप सड़क से लेकर लोकसभा तक में लगाते हैं, तब यह केवल एक संवैधानिक संस्था पर नहीं बल्कि पूरे लोकतांत्रिक ढांचे पर सीधा प्रहार है, यह दुर्भाग्यपूर्ण भी है और चिंताजनक भी। चुनाव आयोग का काम केवल चुनाव कराना नहीं है, बल्कि यह संस्था लोकतंत्र को पारदर्शिता, विश्वसनीयता और निष्पक्षता से चलाने की रीढ़ है। लाखों कर्मचारियों, सुरक्षा बलों और तकनीकी सहयोग के बीच करोड़ों मतदाताओं को चुनाव प्रक्रिया में शामिल करना, भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में,एक असाधारण कार्य है। चुनाव आयोग ने समय-समय पर खुद को दबावों से ऊपर उठकर न्यायप्रिय संस्था के रूप में सिद्ध किया है।


बिहार में मतदाता सूची के विशेष सघन पुनरीक्षण (सर) का जबरदस्त विरोध करते हुए राहुल गांधी चुनाव आयोग एवं उनके अधिकारियों को डराने एवं धमकाने की भाषा का प्रयोग कर रहे हैं। राजनीति में जब हार की बौखलाहट हावी हो जाती है, तो ऐसे ही विकृत आरोपों और झूठे नैरेटिव को गढ़ा जाता है। श्री राहुल गांधी द्वारा हाल ही में चुनाव आयोग पर लगाए गए आरोप इसी राजनीतिक हताशा का परिणाम प्रतीत होते हैं। वे चुनाव परिणामों या प्रक्रिया में किसी तकनीकी दोष की बजाय, सीधे आयोग की नीयत पर सवाल उठा रहे हैं, जो कि एक गंभीर लोकतांत्रिक अनाचार एवं अराजकता है। वे अपनी नाकामी का ठीकरा चुनाव आयोग पर फोड़ रहे हैं और वह भी भद्दे तरीके से। चूंकि उनके ऐसे पुराने आरोप ठहर नहीं रहे इसलिए वे कुंठित हो रहे हैं। वे हताशा में हद पार कर रहे हैं। उन्हें सोचना चाहिए कि वे नेता सदन हैं और उस कांग्रेस के नेता हैं, जिसने देश पर लंबे समय तक शासन भी किया और चुनाव प्रक्रिया में सुधार के कुछ कदम भी उठाए। क्या कांग्रेस के लिए यह शर्म की बात नहीं कि जिस ईवीएम का उपयोग उसके शासनकाल में शुरू हुआ, उसके पीछे उसके ही बड़े नेता पड़े हैं। हाल के वर्षों में ईवीएम के कथित दुरुपयोग के जो भी आरोप लगे, उन्हें तो सुप्रीम कोर्ट ने भी फर्जी पाया। महाराष्ट्र चुनाव को लेकर लगाए गए आरोप भी फर्जी ही पाए गए। राहुल गांधी ने लोकसभा में चुनाव आयोग के खिलाफ उलटा-सीधा नहीं, उलटा ही उलटा इसलिए बोला ताकि सांसद को मिले अधिकारों के तहत उनके खिलाफ कोई कार्रवाई न हो सके।
चुनाव आयोग ने राहुल गांधी के नितांत झूठे, बेबुनियाद, निराधार और भारतीय लोकतंत्र की छीछालेदर करने वाले आरोपों का कड़ा प्रतिवाद करने के साथ यह कहकर उन्हें बेनकाब भी किया कि वे किस तरह अपने आरोपों का जवाब सुनने या अपने आरोपों की सच्चाई प्रस्तुत करने आयोग के समक्ष उपस्थित नहीं हुए। आरोपों में दम होता तो वे उपस्थित होते। चुनाव आयोग ने बार-बार उन्हें बुलाया, लेकिन लगता है कि वे खुद को इस संवैधानिक संस्था से भी ऊपर समझ रहे हैं। वे गांधी परिवार के सदस्य हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वे जो मन में आये करते रहे कि आम जनता उनके शरारत भरे आरोपों को सच मान लेगी। जनता का उनके आरोपों पर भरोसा उठ चुका है, उनके आरोपों पर ही नहीं, उन पर भरोसा नहीं रहा तभी तो चुनावों में कांग्रेस की इतनी दुर्गति हो रही है। गृहमंत्री अमित शाह ने लोकसभा में सही सका कि ऐसी हरकतों से कांग्रेस 30 साल तक विपक्ष में ही बैठती रहेगी।
वोट चोरी के आरोप लगा रहे राहुल और उनके साथी यह क्यों भूल जाते हैं कि झारखंड और जम्मू-कश्मीर विधानसभा के चुनाव कौन जीता था? क्या यह उचित है कि जब तक चुनाव परिणाम अनुकूल हों तब तक चुनाव आयोग निष्पक्ष है, और जब हार हो जाए तो वही आयोग पक्षपाती हो जाए? क्या लोकतंत्र का सम्मान इस प्रकार के दोहरे मापदंडों से किया जा सकता है? राहुल गांधी को यह नहीं भूलना चाहिए कि वे स्वयं उसी निर्वाचन प्रणाली से संसद पहुंचे हैं, जिसे अब वे झूठा और पक्षपाती बताने की कोशिश कर रहे हैं। यह जनता की समझ और चेतना का भी अपमान है। अब यह भी साफ है कि ऐसे लोग मतदाता सूचियों का सत्यापन नहीं होने देना चाहते, भले ही घुसपैठिये वोटर बने रहें, यह तो सबसे बड़ा देशद्रोह है। इस मामले में जनहित याचिकाएं सुनने को आतुर सुप्रीम कोर्ट को भी सक्रिय होना चाहिए।
यदि किसी दल या नेता को किसी प्रक्रिया पर आपत्ति है, तो उनके पास कानूनी और संवैधानिक मार्ग खुले हैं। लेकिन सार्वजनिक मंचों से इस तरह झूठी कहानियां गढ़कर जनता को भ्रमित करना, लोकतंत्र की मर्यादाओं को तार-तार करना है। चुनाव आयोग ने बार-बार यह सिद्ध किया है कि वह सत्ता या विपक्ष, दोनों से परे, केवल संविधान और जनादेश के प्रति जवाबदेह है। ऐसे में बार-बार उसे लांछित करना विपक्षी राजनीति की गिरती हुई संस्कृति का परिचायक है। आज आवश्यकता इस बात की है कि सभी राजनीतिक दल और नेता लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करें, न कि उन्हें क्षति पहुंचाएं। यदि विपक्ष को सशक्त बनना है, तो उसे अपने विचारों की ताकत और जनसमर्थन की ऊर्जा से यह करना होगा, न कि संस्थाओं को कमजोर कर या झूठी शंकाओं का धुंआ फैलाकर। राहुल गांधी जैसे नेताओं से अपेक्षा की जाती है कि वे जनता के बीच संवेदनशीलता, सच्चाई और गंभीरता का उदाहरण प्रस्तुत करें। किंतु जब वे स्वयं राजनीतिक अपरिपक्वता, अविश्वास और तर्कहीन आलोचनाओं के वाहक बन जाते हैं, तो इससे केवल विपक्ष की साख ही नहीं, बल्कि लोकतंत्र की पूरी संरचना प्रभावित होती है।
राहुल गांधी द्वारा यह दावा करना कि पूर्व में महाराष्ट्र एवं हाल ही में बिहार में लाखों फर्जी वोटर जुड़े हैं, यह आरोप न केवल अतिशयोक्ति और तथ्यहीनता का उदाहरण है, बल्कि इससे मतदाताओं में अनावश्यक भय और भ्रम फैलता है। चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया कि यह पूरी तरह भ्रामक है और यह मतदाता सूची में प्राकृतिक अद्यतन प्रक्रिया का हिस्सा है, जिसमें मृतकों, स्थानांतरित लोगों या दोहरावों को हटाकर सत्यापन किया जाता है। बिहार राज्य के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी ने भी इसे नियमित कार्यवाही बताते हुए राहुल गांधी के आरोपों को बेबुनियाद बताया है। यह स्पष्ट करता है कि ‘वोट चोरी’ का शोर एक राजनीतिक भ्रमजाल है, न कि तथ्यात्मक आपत्ति। राहुल गांधी के ऐसे बचकाने और संवेदनहीन बयानों से देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में अफरातफरी और अविश्वास का माहौल बनता है। यह किसी विपक्ष की सशक्त आलोचना नहीं, बल्कि एक अराजक और गैर-जिम्मेदार राजनीतिक व्यवहार का उदाहरण है। जब विपक्ष का प्रमुख चेहरा बिना तथ्यों के गंभीर संस्थाओं पर कीचड़ उछालता है, तो न केवल देश की जनता भ्रमित होती है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी भारत की लोकतांत्रिक छवि धूमिल होती है।
ऐसे निराधार वक्तव्यों से लोकतंत्र मजबूत नहीं होता, बल्कि अराजकता को बढ़ावा मिलता है। इसलिए समय की मांग है कि ऐसे गुमराह करने वाले वक्तव्यों का तीव्रता से खंडन ही नहीं किया जाये बल्कि ऐसे मिथ्या एवं भ्रामक आरोप लगाने वालों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई भी की जाये। अब यह आवश्यक है कि यदि राहुल गांधी या उनके सहयोगी अथवा कथित लोकतंत्र हितैषी चुनाव आयोग पर सिरे से झूठे आरोप लगाएं तो वह उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करे। यदि ऐसा काम राहुल संसद के बाहर करें तो उनके खिलाफ भी चुनाव आयोग को पुलिस में शिकायत करने के साथ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना चाहिए। यह इसलिए जरूरी है, क्योंकि कुछ लोग लोकतंत्र बचाने के नाम पर उससे ही खेल रहे हैं। चुनाव आयोग जैसी संस्थाओं को उनके संवैधानिक कर्तव्यों के निर्वहन में समर्थन और सम्मान दिया जाए। लोकतंत्र का स्वास्थ्य तभी सुरक्षित रहेगा जब उसकी संस्थाएं सशक्त, सम्मानित और निष्पक्ष बनी रहें

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button