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कर्म बंधन का हेतु है आश्रव : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

1200 बेटियां ही नहीं, सैंकड़ों दामाद, दोहिता-दोहिती व समधि भी बने संभागी

कर्म बंधन का हेतु है आश्रव : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

-‘बेटी तेरापंथी की’ के तृतीय सम्मेलन में संभागी बनने आध्यात्मिक पीहर पहुंची बेटियां

-देहली के दीपक की भांति पीहर व ससुराल को रौशन कर सकती हैं बेटियां : आचार्यश्री

-बेटियों व दामादों ने दी अपनी भावात्मक प्रस्तुति

-दोहिता-दोहितीयों संग शांतिदूत का मधुर जिज्ञासा-समाधान का दिखा अनुपम नजारा

26.07.2025, शनिवार, कोबा, गांधीनगर (गुजरात) :

प्रेक्षा विश्व भारती में वर्ष 2025 के लिए विराजमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता, युगप्रधान आचार्यश्री महारमणजी की मंगल सन्निधि में नित नवीन आयोजनों के साथ ही तेरापंथ समाज की विभिन्न संस्थाओं के अंतर्गत आयोजित होने वाले अनेकानेक उपक्रमों के वार्षिक अधिवेशन व सम्मेलन आदि क्रम भी प्रारम्भ हो चुका है। तेरापंथ किशोर मण्डल के वार्षिक अधिवेशन व उपासक श्रेणी के शिविर व सेमिनार के आयोजन के उपरान्त शनिवार से ‘संस्था शिरोमणि’ जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के तत्त्वावधान में आयोजित होने वाले स्नेह, संस्कार व समन्वय के अद्भुत उपक्रम ‘बेटी तेरापंथी की’ के तृतीय सम्मेलन के द्विदिवसीय कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ।

इसके लिए देश के विभिन्न हिस्सों से लगभग 1200 से अधिक बेटियों संभागिता दर्ज कराई तो वहीं बेटियों के साथ 250 से अधिक दोहिता-दोहितीयों, 325 से अधिक दामादाओं और इस बार पचास से समधिजन भी पूज्य सन्निधि में पहुंचे। आध्यात्मिक के साथ सांसारिक संबंधों के जुड़ाव का यह अद्भुत सम्मेलन अब मानों जन-जन के मानस पर अंकित होने लगा है। इस कार्यक्रम में संभागी बनने के लिए बेटियों का अपने परिवार सहित पहुंचने का क्रम शुक्रवार से ही प्रारम्भ हो गया था।

शनिवार को महातपस्वी आचार्यश्री की मंगल सन्निधि ‘बेटी तेरापंथ की’ के तृतीय सम्मेलन के प्रथम दिन का प्रथम सत्र आयोजित हुआ, जिसमें बेटियों व दामादों ने अपनी भावात्मक प्रस्तुति दी तो आचार्यश्री ने उन्हें मंगल आशीष प्रदान किया। इसके साथ ही आचार्यश्री ने बेटियों के साथ बड़ी संख्या में पहुंचे दोहिता-दोहीतियों को आचार्यश्री ने मुख्य प्रवचन कार्यक्रम के दौरान ही अपनी जिज्ञासाओं को व्यक्त करने का अवसर प्रदान किया तो बालसुलभ मन वाले दोहिता व दोहीतियों ने अपनी बालसुलभ जिज्ञासाओं व कुछ सारगर्भित जिज्ञासाओं को प्रस्तुत किया तो आचार्यश्री ने उनके सभी जिज्ञासाओं को भी समाहित किया। यह दृश्य जन-जन को मंत्रमुग्ध बनाने वाला था।

शनिवार को प्रेक्षा विश्व भारती परिसर में बना विशाल ‘वीर भिक्षु समवसरण’ आज बेटियों व दोहिता-दोहीतीयों की उपस्थिति से विशेष गुलजार नजर आ रहा था। हाथों में ‘बेटी तेरापंथ की’ लोगो की रचित मेहंदी की सुवास से वातावरण सुगंधित हो रहा था। साथ ही सभी के हाथ में फ्लैग भी उनकी विशेष पहचान करा रहा था। युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी मंचासीन हुए और नित्य की भांति ‘आयारो’ आगम के माध्यम से पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि आश्रव और परिश्रव दो शब्द हैं। शास्त्र में बताया गया है कि जो आश्रव हैं वे ही परिश्रव हैं और जो परिश्रव हैं, वे ही आश्रव हैं। नौ तत्त्वों में एक है- आश्रव। कर्म बंधन का हेतु आश्रव होता है। जितने भी कर्म बंधते हैं, उन सबका कारण आश्रव ही होता है। जन्म-मरण का हेतु भी आश्रव ही होता है। पांच प्रकार के आश्रव में चार तो नितांत अशुभ ही होते हैं और पांचवां आश्रव शुभ भी होता है और अशुभ भी होता है। मन, वचन और काय की प्रवृत्ति शुभ भी होती है और अशुभ भी होती है। योग आश्रव के कारण ऐसा होता है। योग आश्रव भी है और योग निर्जरा भी है। शुभ योग भी आश्रव है, लेकिन पुण्य के रूप में होता है। आदमी की एक ही प्रवृत्ति बंध का हेतु भी बन सकता है, वही प्रवृत्ति निर्जरा का हेतु भी बन जाती है। उदाहरण के दौर पर देखें तो जिस प्रवृत्ति के साथ मोह कर्म जुड़ जाता है, वह बंध कराने वाली और जिस प्रवृत्ति के साथ मोह कर्म नहीं जुड़ता, वह कर्म निर्जरा की हेतु बन जाती है। आदमी को अपनी निर्जरा पर ध्यान देने का प्रयास करना चाहिए और पाप कर्मों के बंधन से बचने का प्रयास करना चाहिए।

मानव जीवन में आदमी जितना धर्म कर लेता है, वह उसके लिए उतना ही कल्याणकारी हो सकती है। मानव जीवन में जितना धर्माचरण हो सके, नए कर्मों का बंधन न हो, सामायिक, पौषध, जप, तप आदि द्वारा संयम-निर्जरा की साधना करने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने ‘तेरापंथ प्रबोध’ के संगान व आख्यान से जनता को लाभान्वित किया।

अहमदाबाद चतुर्मास प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री अरविंद संचेती ने सम्मेलन के संदर्भ में अपनी भावाभिव्यक्ति दी। सम्मेलन में संभागी बनी अहमदाबाद की बेटियों ने गीत का संगान किया। बेटियों के साथ पधारे दामाद श्री विनीत चौधरी ने अपनी प्रस्तुति दी, तदुपरान्त उपस्थित सभी दामादों ने सामूहिक रूप में गीत का संगान किया। ‘बेटी तेरापंथ की’ की राष्ट्रीय संयोजिका श्रीमती कुमुद कच्छारा व ‘संस्था शिरोमणि’ जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के अध्यक्ष श्री मनसुखलाल सेठिया ने भी इस सम्मेलन के संदर्भ में विचाराभिव्यक्ति दी।

आचार्यश्री ने ‘बेटी तेरापंथ की’ सम्मेलन में संभागी बेटियों, दामादों, दोहिता-दोहितियों व समधियों को पावन संबोध प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के जीवन संस्कार भी एक महत्त्वपूर्ण संपदा हो सकती है। जीवन में संस्कार कैसे हैं, इसका प्रभाव इस जीवन के बाद भी बना रहता है। धर्म के संपर्क में रहने वाला व्यक्ति अच्छे संस्कारों से युक्त हो सकता है। आज जो यह कार्यक्रम जैन श्वेताम्बर तेरापंथ महासभा के अंतर्गत हो रहा है। यह नया उपक्रम शुरु हुआ है, अब एक ऐसा नाम से हो गया है कि ये उन बेटियों की विशेष पहचान-सी हो गई है। महिलाओं के दो घर होते हैं-पीहर और ससुराल। बालिका अच्छी संस्कारी हो तो वह दो घरों पर में अच्छा प्रकाश फैला सकती है। बेटियां देहली दीपक न्याय से पीहर और ससुराल दोनों में रौशनी कर सकती है। अच्छे संस्कार व ज्ञान वाली बेटियां होती हैं तो दोनों ओर अच्छी रौशनी फैलानी वाली हो सकती हैं। वे जहां रहें, अच्छे संस्कार देती रहें। जीवन में नशामुक्तता रहे। महासभा द्वारा यह पिछले कुछ अर्से से चल रहा है। यह दो-तीन थोड़े समय में धार्मिक चेतना को पुष्ट होने का अवसर मिले, यह विशेष बात हो सकती है। साथ ही जुड़ने और मिलने का अच्छा अवसर हो सकता है। जिस परिवार से हैं, वहां से भी अच्छा संस्कार मिले और यहां से भी अच्छे संस्कार मिले तो अच्छी बात है। बेटियों के साथ दामाद, दोहिता, दोहिती के साथ समधि भी आए हुए हैं। अच्छे धार्मिक माहौल में पहुंचने से अच्छी धार्मिक प्रेरणा मिल सकती हैं। दामादों और बेटियों में कुछ परिष्कार की अपेक्षा लगे तो अपना सुझाव भी दे सकते हैं।

यह लौकिक संबंध होने के साथ अध्यात्म से भी जुड़ रहा है। साथ में आए छोटे बच्चों को भी अच्छे संस्कार और प्रेरणा मिले। तेरापंथी महासभा के दोहिता-दोहिती भी कह सकते हैं। अच्छी प्रेरणा मिले। आचार्यश्री ने समुपस्थित बालक-बालिकाओं से अपनी जिज्ञासा भी प्रकट करने की आज्ञा प्रदान की तो बच्चों ने अपनी जिज्ञासाएं भी प्रकट की तो आचार्यश्री ने बच्चों की जिज्ञासाओं को समाहित किया। यह दृश्य देख जन-जन का मन आह्लादित था। बच्चे भी ऐसे गुरु के समक्ष अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में तत्पर दिखाई दे रहे थे।

 

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