हिंदू विवाह के लिए सात फेरे अनिवार्य : सूरत कोर्ट ने पति सहित पांच लोगों को किया बरी

सूरत।सूरत की जेएमएफसी अदालत ने दूसरी शादी के आरोप में पति सहित पांच आरोपियों को साक्ष्य के अभाव में निदोष घोषित कर दिया। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि हिंदू विवाह की वैधता सिद्ध करने के लिए “सप्तपदी” (सात फेरे) की विधि का प्रमाण आवश्यक होता है, और इस प्रकरण में शिकायतकर्ता ऐसा कोई ठोस प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर सका।
सूरत के वेडरोड क्षेत्र में रहने वाली बीना (परिवर्तित नाम) की शादी 7 मार्च 2011 को रांदेर रोड निवासी प्रकाश से हिंदू रीति-रिवाज के अनुसार हुई थी। दो वर्षों के वैवाहिक जीवन के बाद बीना को पता चला कि प्रकाश का एक महिला से प्रेम संबंध है और उसने कथित रूप से उस महिला से विवाह कर एक पुत्र भी जन्मा है। इसके बाद बीना अपने मायके चली गई और घरेलू हिंसा एवं भरण-पोषण का मामला प्रकाश के खिलाफ दर्ज कराया।
इसके साथ ही बीना ने महिला पुलिस थाने में प्रकाश, उसकी कथित दूसरी पत्नी, सास-ससुर सहित कुल पाँच लोगों के खिलाफ IPC की धारा 494, 495, 496 व 114 के तहत मामला दर्ज कराया। शिकायतकर्ता पक्ष ने हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के पुराने निर्णयों का हवाला देते हुए दूसरी शादी और बच्चे के जन्म से जुड़े साक्ष्य कोर्ट में पेश किए।
बचाव पक्ष के वकील एडवोकेट ज़मीर शेख ने तर्क दिया कि केवल शारीरिक संबंध या संतान का जन्म होना विवाह का प्रमाण नहीं है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय “डॉली रानी बनाम मनीष कुमार चंचल” का उल्लेख करते हुए कहा कि हिंदू विवाह को वैध ठहराने के लिए सप्तपदी (सात फेरों) का विधिवत संपन्न होना जरूरी है। इस मामले में ऐसा कोई प्रमाण पेश नहीं किया गया है।
दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद अदालत ने यह स्पष्ट किया कि दूसरी शादी का आरोप साबित नहीं हुआ है और शिकायत खारिज करते हुए प्रकाश समेत सभी पांच आरोपियों को बरी कर दिया गया।