अजमेर की 871 वर्ष पुरानी विश्व की प्रथम श्री जिनदत्तसूरीजी दादावाड़ी के जीर्णोद्धार हेतु शुभ मुहूर्त प्रदान
शासनगौरव, संयमसारथी, छत्तीसगढ़-श्रृंगार पूज्य आचार्य श्री जिन पीयूषसागर सूरीश्वरजी म.सा. की निश्रा में हुआ ऐतिहासिक क्षण

सूरत। पर्वत पाटिया स्थित कुशल दर्शन दादावाड़ी में चातुर्मासिक विराजित जिनशासन के गौरव, संयम-सारथी, शासन-प्रभावक, छत्तीसगढ़-श्रृंगार पूज्य खरतरगच्छाचार्य श्री जिन पीयूषसागर सूरीश्वरजी म.सा. ने शनिवार, 12 जुलाई 2025 को अजमेर की पुण्यधरा पर स्थित विश्व की प्रथम एवं 871 वर्ष पुरानी श्री जिनदत्तसूरीजी दादावाड़ी के जीर्णोद्धार हेतु भूमि पूजन, खनन और शिलान्यास के तीनों शुभ मुहूर्तों की एक साथ घोषणा कर जैन शासन में एक ऐतिहासिक अध्याय जोड़ा।
पूज्य आचार्य श्री की निश्रा में श्री जैन श्वेतांबर खरतरगच्छ संघ (राज.) अजमेर एवं श्री जिनदत्तसूरी समाधि स्थल जीर्णोद्धार समिति के तत्वावधान में यह विशेष आयोजन रखा गया, जिसमें बाड़मेर जैन श्री संघ एवं सर्वमंगलमय वर्षावास समिति, सूरत को यह गौरव प्राप्त हुआ कि उनके संघ की उपस्थिति में यह पावन मुहूर्त घोषित हुआ।
ढोल-नगाड़ों के साथ नाचते-गाते अजमेर संघ जीर्णोद्धार समिति, बाड़मेर जैन श्री संघ एवं महिला मंडल की सामैयायुक्त टोली भावपूर्वक सूरत पहुंची और गुरुदेव से मुहूर्त प्रदान करने की विनती की। पूज्य आचार्यश्री ने चतुर्विध संघ की साक्षी में एक साथ तीन पावन मुहूर्त इस प्रकार घोषित किए।
🔹 जिनालय, दादावाड़ी एवं धर्मशाला का भूमि पूजन:
संवत 2082, श्रावण शुक्ला 3, दिनांक 27 जुलाई 2025, रविवार
🔹 भूमि खनन का शुभारंभ:
भादवा सुदी 7, दिनांक 30 अगस्त 2025, शनिवार
🔹 जिनालय एवं दादावाड़ी शिलान्यास:
भादवा सुदी 12, दिनांक 4 सितंबर 2025, गुरुवार
जैसे ही आचार्य भगवंत ने मुहूर्तों की घोषणा की, सभा में उपस्थित भक्तों में हर्षोल्लास की लहर दौड़ गई। जयकारों के साथ भक्तगण नृत्यमग्न होकर इस ऐतिहासिक क्षण के सहभागी बने।
इस गौरवपूर्ण अवसर के श्री जिनदत्तसूरी समाधि स्थल जीर्णोद्धार समिति के संयोजक भीमराज बोहरा, सह-संयोजक एवं अजमेर संघ अध्यक्ष विक्रम पारख, अमृतलाल छाजेड़, सुशीला बोहरा, चम्पालाल बोथरा, बाबूलाल संकलेचा, नरेंद्र लालन, दिलीप पारख, सतीश बुरड़, मनोज बुरड़, रमेश गोलेच्छा, छगन घीया सहित अजमेर संघ के अनेक वरिष्ठ पदाधिकारी व सदस्य साक्षी बने।
पूज्य आचार्य श्री के कुशल मार्गदर्शन में घोषित यह त्रि-शुभ मुहूर्त न केवल एक प्राचीन तीर्थ के नवजीवन का आरंभ है, अपितु जिनशासन की गौरवशाली परंपरा को पुनः जागृत करने की ऐतिहासिक आध्यात्मिक पहल है।