आचार्य सम्राट डॉ. श्री शिवमुनि जी म.सा. आदि ठाणा-10 का शोभा यात्रा के साथ हुआ चातुर्मासिक मंगल प्रवेश

आत्म भवन, बलेश्वर
आत्मज्ञानी सद्गुरुदेव आचार्य सम्राट पूज्य श्री शिवमुनिजी म.सा. आदि ठाणा-10 का चातुर्मासिक मंगल प्रवेश हुआ। प्रातः काल शुभ घड़ी शुभ मुहुर्त्त ठीक 8.05 बजे बंगला नं. 114-115 से शोभा यात्रा के साथ विहार कर 8.30 बजे आत्म भवन में मंगल प्रवेश हुआ।
आज के इस मंगल प्रवेश पर आचार्य भगवन् ने अपने उद्बोधन में फरमाया कि आज का यह दिवस चातुर्मास प्रवेश का दिवस है। पूरे भारतवर्ष जहां-जहां भी मुनिराज-साध्वीवृंद चातुर्मास कर रहे हैं वे अपनी सुविधानुसार प्रवेश कर रहे हैं।
ऐसे ही चातुर्मास भरत क्षेत्र में, महाविदेह क्षेत्र में सीमंधर स्वामी भगवान भी चातुर्मास प्रवेश करते हैं और चातुर्मास समापन करते हैं। इन्द्र, देवी-देवता समवसरण की रचना करते हैं। भगवान
सबको समान उद्बोधन देते हैं। भगवान के समवसरण में राजा, मंत्री, इन्द्र, इन्द्राणी, साधु-साध्वी, श्रावक श्राविका, तिर्यंच के पशु-पक्षी सभी
जिनको अंदर से रूचि होती है वे भगवान के समवसरण में आते हैं। समवसरण की रचना जीव के उद्धार के लिए, जीव के कल्याण के लिए जीव जो अनादिकाल से संसार में भ्रमण कर रहा है वह किस तरह से सिद्ध गति में चला जाए यही भगवान उद्बोधन देते हैं।
आचार्य भगवन् ने आगे फरमाया कि चार माह में नवीन कर्मों का बंधन न हो, इस बात का जरूर ध्यान रखना चाहिए। हमारे द्वारा किसी भी जीव को कष्ट न हो ऐसी भावना प्रत्येक जनमानस में होनी चाहिए। प्रार्थना, प्रवचन, प्रतिक्रमण, पौषध इन चार माह में प्रत्येक श्रावक-श्राविकाओं को करना चाहिए। दान, शील, तप और भावना प्रतिपल बढ़ती रहे। देव, गुरु, धर्म का शरणा ग्रहण करोगे तो निश्चित आत्मा का कल्याण होगा।
प्रमुख मंत्री श्री शिरीष मुनि जी म.सा. ने अपने उद्बोधन में फरमाया कि ग्रीष्म ऋतु के चार महीने का प्रतिक्रमण करना है। कर्म घटाये हैं या बढ़ाये हैं कौनसे कर्म घटाने हैं और कौनसे कर्म बढ़ाने हैं, मिथ्यात्व बढ़ा है
या घटा है, मोह बढ़ा है या घटा है इसका अवलोकन करना है।
इससे पूर्व श्री शुभम मुनि जी म.सा. “आयो चातुर्मास सुहाणो मन खिलयो-खिलयो जाय” भजन की प्रस्तुति दी।
श्री शमित मुनि जी म.सा. ने अपने उद्बोधन में फरमाया कि जब वर्षा आती है प्रकृति बदल जाती है, जब संत आते हैं तो मनुष्य की प्रवृतियां बदलनी चाहिए। इसलिए यह वर्षावास आता है। वर्षावास के चार महीने में साधु की बाहर की यात्रा पर विराम लग जाता है और भीतर की यात्रा प्रारंभ हो जाती है।
श्री निशांत मुनि जी म.सा. ने “अमृतमय वाणी का झरना तुम नाथ निरंतर बहने दो” भजन की प्रस्तुति दी। श्रीमती मनीषा शाह, सुश्री ज्योति मेहता ने स्वागत भजन की प्रस्तुति दी। संघीय सूचना व जानकारी सुरेश चौपड़ा ने दी।