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जीवन में प्रखर बने योग साधना : सिद्ध साधक आचार्यश्री महाश्रमण 

अमरावाड़ीवासियों ने अपने आराध्य के समक्ष दी अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति

-अमराईवाड़ी-आढ़व में पधारे शांतिदूत

-सिंघवी भवन में पावन प्रवास, हर्षित हुआ सिंघवी परिवार

26.06.2025, गुरुवार, अहमदाबाद (गुजरात) :वर्ष 2025 के अहमदाबाद चतुर्मास से पूर्व अहमदाबाद की उपनगरीय यात्रा कर रहे जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, अहिंसा यात्रा प्रणेता, शांतिूदत आचार्यश्री महाश्रमणजी गुरुवार को अपनी धवल सेना के साथ कांकरिया-मणिनगर से गतिमान हुए। अपने आराध्य को अपने नगर में पाकर हर्षित श्रद्धालु मार्ग में स्थान-स्थान पर अपने दर्शनार्थ उपस्थित हो रहे थे। आचार्यश्री उन श्रद्धालुओं को मंगल आशीष प्रदान करते हुए अगले गंतव्य की ओर गतिमान था। हालांकि अन्य दिनों की अपेक्षा किलोमीटर की दृष्टि से विहार की दूरी भले ही कम हो, किन्तु श्रद्धालु जनता की भावनाओं को पूरा करने में आचार्यश्री को अधिक समय तक यात्रायित रहना पड़ रहा है। जन-जन को आशीष प्रदान करते हुए आचार्यश्री अमराईवाड़ी-आढ़व में स्थित सिंघवी भवन में पधारे। अपने आराध्य को अपने आंगन में पाकर सिंघवी परिवार धन्यता की अनुभूति कर रहा था।

जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने समुपस्थित जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि भोग, रोग और योग- ये तीन ऐसे शब्द हैं जिनके पीछे ‘ओग’ लगा हुआ है। इस दुनिया में भोग भी चलता है। पांच इन्द्रियां होती हैं-कान, आंख, नाक, जिह्वा व त्वचा। ये पांचों इन्द्रियां पदार्थों का भोग करती हैं। बताया गया कि श्रोत्रेन्द्रिय और चक्षुरेन्द्रिय कामी इन्द्रियां होती हैं और शेष तीन इन्द्रियां भोगी इन्द्रियां होती हैं। इस प्रकार इन पांच इन्द्रियों को काम और भोग में विभक्त किया गया है। इन पांच इन्द्रियों को ज्ञानेन्द्रिय भी कहा जाता है। ये इन्द्रियां ज्ञान प्राप्ति का माध्यम बनती हैं। कान से सुनकर, आंख से देखकर, नाक से सूंघकर, जिह्वा से आस्वाद लेकर व स्पर्श से भी उसके विषय का ज्ञान प्राप्त हो जाता है। इन्द्रियां ज्ञान और भोग दोनों की माध्यम बनती हैं। सुनकर आदमी कितना ज्ञान प्राप्त कर सकता है। प्रवचन सुनना, शिक्षकों के लेक्चर आदि सुनकर कितना ज्ञान प्राप्त हो सकता है। आंखों से पुस्तकों को, ग्रन्थों को शास्त्रों को पढ़कर कितना ज्ञान प्राप्त किया जाता है।

शरीर है तो रोग भी आ सकता है। शरीर के किसी भी अंग या किसी भी प्रकार का रोग आ सकता है। शरीर में रोग भी उत्पन्न होते हैं। भोग और रोग से ऊपर की चीज है योग। आदमी योग की साधना करे, संयम की साधना करे, तप की साधना करे सम्यक् दर्शन, ज्ञान और चारित्र की आराधना करे तो यह योग साधना हो सकती है। भोगों का जितना संयम होता है, जीवन में योग का प्रभाव बढ़ता है।

भोगों का जितना संयम हो सके, करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी अपने भोजन का संयम करे। धरती पर कितने लोग ऐसे भी हो सकते हैं, कि जिन्हें एक वक्त का भोजन भी उपलब्ध नहीं हो पाता और कितने लोग ज्यादा खाकर बीमार हो जाता है, कष्ट में हो जाता है। यह ज्यादा भोजन करना रसेन्द्रिय का भोग हो जाता है। भोग है तो शरीर में रोग भी पैदा हो सकता है। योग संयम और तप का मार्ग है। आदमी को अपने जीवन में योग की साधना, धर्म की साधना पर ध्यान देने का प्रयास करना चाहिए। चौरासी लाख जीव योनियों में सौभाग्य से प्राप्त मानव जीवन का धर्म के संदर्भ में लाभ उठाने का प्रयास करना चाहिए। मानव देह के माध्यम से जितनी उत्कृष्ट साधना हो सकती है, वह अन्य किसी जीवन में नहीं हो सकता। इसलिए आदमी को अपने मानव जीवन का धर्म के संदर्भ में पूर्ण लाभ उठाने का प्रयास करना चाहिए। जितना संभव हो सके, योग, धर्म, ध्यान, सम्यक् दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तप का पालन करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को धर्ममय जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए। जीवन में अहिंसा, नैतिकता, ईमानदारी व नशामुक्ति रहे। जीवन में योग साधना जितनी प्रखर बन सके, बनाने का प्रयास करना चाहिए।

आचार्यश्री ने कहा कि हमारा सन् 2023 में आना हुआ था। अब बहुत जल्दी अहमदाबाद में आना हो गया है। यह उपनगरीय यात्रा हो रही है। आज अमराईवाड़ी-ओढ़व में आना हुआ है। यहां की जनता में खूब धार्मिक चेतना अच्छी रहे।

आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीप्रमुखाजी ने उपस्थित जनता को उद्बोधित किया। आचार्यश्री के स्वागत में स्थानीय तेरापंथी सभा के अध्यक्ष श्री नवरतनमल चिप्पड़ ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। तेरापंथ युवक परिषद के सदस्यों ने गीत का संगान करते हुए संकल्पों का उपहार प्रस्तुत किया तो आचार्यश्री ने समुपस्थित युवकों को उनके संकल्पों का त्याग कराया। श्री सिद्धेश्वरी माता धाम-महीरंगपुर के श्री अर्जुनभाई जीवाजी ने अपनी अभिव्यक्ति दी। स्थानीय ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। श्री सज्जनलाल सिंघवी, मेवाड़ तेरापंथ मण्डल के अध्यक्ष श्री गणेश पगारिया ने अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति दी। तेरापंथ महिला मण्डल व तेरापंथ कन्या मण्डल ने स्वागत गीत का संगान करने के उपरान्त गुरुदेव के सामने त्याग की बगिया भेंट की। आचार्यश्री ने सभी को त्याग कराया

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