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जब तक शरीर सक्षम, कर लें धर्म का समाचरण : शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमण

-ग्रामीणों ने गुरुमुख से स्वीकार किए सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति के संकल्प

-महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमणजी ने किया लगभग 13 कि.मी. का विहार

-अणियोर कम्पा गांव पर बरसी शांतिदूत की कृपा

04.06.2025, बुधवार, अणियोर कम्पा, अरवल्ली।

जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी जन-जन को पावन पाथेय प्रदान करते हुए बुधवार को प्रातः की मंगल बेला में मालपुर से मंगल प्रस्थान किया। ग्रामीण क्षेत्रों में गतिमान आचार्यश्री के दर्शन से अनेक गांव के ग्रामीण लाभान्वित हो रहे हैं। कई स्थानों पर ग्रामीण महिलाओं ने मार्ग में उपस्थित होकर आचार्यश्री से मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया। सभी पर अपने दोनों कर कमलों से आशीष की वर्षा करते हुए आचार्यश्री महाश्रमणजी लगभग 13 किलोमीटर का विहार कर अणियोर कम्पा में स्थित अणियोर कम्पा प्राथमिकशाला में पधारे। आचार्यश्री का एकदिवसीय प्रवास यहीं हुआ।

प्राथमिकशाला परिसर में आयोजित मुख्य मंगल प्रवचन कार्यक्रम में जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए कहा कि शास्त्र में बताया गया है कि जब तक बुढ़ापा पीड़ीत न करे, जब तक शरीर में कोई बीमारी न हो जाए और जब तक इन्द्रियां क्षीण न हो जाएं, तब तक मानव को धर्म का समाचरण कर लेना चाहिए। जब तक शरीर की सक्षमता हो, तब तक धर्म का अच्छे रूप में समाचरण कर लेना चाहिए।

धर्म का कार्य करने में तीन बाधाएं होती हैं, इनमें पहला है बुढ़ापा। बुढ़ापे में यदि कोई सेवा, परिश्रम आदि का कार्य करने का प्रयास करता है तो वह उसमें सक्षम नहीं हो पाता है, क्योंकि उसे आंखों से ज्यादा दिखाई नहीं देता है। पैर ज्यादा चलने में अक्षम हो जाते हैं, सुनाई भी कम देता है, हाथ कोई कार्य करने में कांपने लगते हैं तो भला ऐसा में आदमी में कोई धार्मिक कार्य, परोपकार का कार्य अथवा सेवा का कार्य कितना कर सकता है।

धर्म के मार्ग की दूसरी बाधा है-बीमारी। आदमी की उम्र तो ज्यादा नहीं हुई, लेकिन उसे कोई लकवा आदि जैसी बीमारी हो जाए तो भी वह आदमी भला कितना कार्य करने में सक्षम हो पाएगा। शरीर में अनेक प्रकार की व्याधियां आ जाने पर आदमी के कार्य करने में बाधा उत्पन्न होती है।

तीसरी बाधा बताई गई है- इन्द्रिय शक्ति की हिनता। देखने में कठिनाई हो जाए, सुनने की क्षमता इतनी कमजोर हो जाए तो भी कमी की बात हो जाती है। इसलिए जब तक इन्द्रिय हिनता की बात न हो, तब तक आदमी को धर्माचरण कर लेना चाहिए। मानव शरीर को नौका के समान कहा गया है। आदमी को अपने इस मानव शरीर के माध्यम से संसार रूपी समुद्र को तरने का प्रयास करना चाहिए। मानव शरीर नौका, जीव नाविक और संसार समुद्र है, महर्षि लोग इससे तर जाते हैं। संयम और तप की साधना हो तो यह शरीर नौका बन सकती है, अन्यथा नहीं।

आदमी को पाप कर्मों से बचने का प्रयास करना चाहिए। पाप कर्म मानव जीवन रूपी नौका में छिद्र के समान होते हैं और इन छिद्रों के कारण नौका डूब जाती है। इसलिए आदमी को संसार रूपी समुद्र से तरने के लिए पापकर्मों से बचने का प्रयास करना चाहिए। यह मानव जीवन मोक्ष प्राप्ति का गेट है। जो मानव जीवन को बेकार गंवा दे, वह मानों महामूर्ख हो सकता है। मानव जीवन के द्वारा मोक्ष के वरण का प्रयास करना चाहिए। आदमी कम से कम अपने जीवन में लेनदेन में नैतिकता, प्रमाणिकता को रखने का प्रयास करना चाहिए। जितना संभव हो अहिंसा और नशामुक्ति की भावना को बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए कि ताकि आत्मा परम सुख की ओर गति कर सके।

मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने समुपस्थित ग्रामीणों को सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति की प्रेरणा प्रदान करते हुए उन्हें स्वीकार करने का आह्वान किया तो ग्रामीणों ने सहर्ष ही तीनों संकल्पों को स्वीकार किया और आचार्यश्री से मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया। आचार्यश्री के स्वागत में श्री घनश्याम भाई पटेल ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी।

 

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