शिव महापुराण कथा में नवदा भक्ति का वर्णन, सती-शिव विवाह प्रसंग एवं दक्ष यज्ञ का प्रसंग सुन श्रद्धालु भाव-विभोर
श्री रामायण प्रचार मंडल, उधना द्वारा आशानगर में आयोजित कथा के चौथे दिन का आयोजन

सूरत। श्री रामायण प्रचार मंडल, उधना द्वारा आशानगर में आयोजित शिव महापुराण कथा के चौथे दिन बुधवार को कथा वाचक पंडित संदीप महाराज ने श्रद्धालुओं को भगवान शिव व सती के विवाह प्रसंग, नवदा भक्ति तथा दक्ष यज्ञ की कथा विस्तारपूर्वक सुनाई।
पंडित संदीप महाराज ने कहा कि सती ने भगवान शिव से भक्ति के स्वरूप को लेकर प्रश्न किया था, तब शिवजी ने नवदा भक्ति का वर्णन करते हुए बताया कि – श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पाद सेवन, अर्चन, वंदन, दास्य, सख्य और आत्मनिवेदन – ये भक्ति के नौ लक्षण हैं। इनसे मनुष्य के हृदय में सच्ची भक्ति का प्रादुर्भाव होता है।
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कथा में आगे बताया गया कि सती से विवाह के पूर्व भगवान शिव ने यह शर्त रखी थी कि सती उनकी भक्ति पर अविश्वास नहीं करेंगी, और सती ने अपने पिता दक्ष से वचन लिया था कि वे उनका अपमान नहीं करेंगे। विवाहोपरांत भ्रमण के दौरान शिव व सती को दण्डकारण्य में राम-लक्ष्मण वनवासी रूप में मिले। शिवजी ने श्रीराम को प्रणाम किया, जिससे सती को संदेह हुआ कि समस्त देवों के देव महादेव रामजी को क्यों प्रणाम कर रहे हैं।
सती ने परीक्षा लेने हेतु सीता का रूप धारण किया, जिससे शिवजी आंतरिक रूप से व्यथित होकर सती का परित्याग कर देते हैं। आगे चलकर राजा दक्ष ने कनखल में भव्य यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें भगवान शंकर को आमंत्रित नहीं किया गया। शिवजी की अनुमति के बिना ही सती यज्ञ में पहुंचीं, जहां उनका अपमान हुआ और उन्होंने योगाग्नि से अपने प्राण त्याग दिए।
इस घटना से क्रोधित होकर भगवान शिव ने अपने जटा से वीरभद्र को उत्पन्न किया, जिसने यज्ञ विध्वंस कर दिया और दक्ष का सिर काट डाला। ब्रह्मा-विष्णु सहित सभी देवताओं की प्रार्थना पर भगवान शिव स्वयं यज्ञ स्थल पर पहुंचे, यज्ञ को पूर्ण कराया और दक्ष को बकरे का सिर देकर जीवनदान दिया।
कथा के अंत में पंडित संदीप महाराज ने बताया कि बाद में शिवजी का विवाह राजा हिमाचल और रानी मैना की पुत्री माता पार्वती से बड़े धूमधाम से सम्पन्न हुआ।
कथा के दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे और भक्ति भाव में डूबकर कथा का रसास्वादन किया।