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जो तपस्वी होता है, वह सुखी होता है : महातपस्वी महाश्रमण

-इडरवासियों ने शांतिदूत की अभ्यर्थना में दी भावनाओं को अभिव्यक्ति

-युगप्रधान आचार्यश्री ने किया 12 कि.मी. का विहार

– दूसरी बार आराध्य का प्रवास प्राप्त कर हर्षित हुए इडरवासी

23.05.2025, शुक्रवार, इडर, साबरकांठा।जन-जन के मानस को आध्यात्मिक अभिसिंचन से नवीन ऊर्जा प्रदान करने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि, शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी शुक्रवार को अपनी धवल सेना के साथ साबरकांठा जिले के इडर नामक कस्बे में पधारे तो इडरवासियों ने अपने आराध्य का भावभीना स्वागत किया। आराध्य का द्वितीय बार पदार्पण प्राप्त कर श्रद्धालुओं का हर्षोल्लास द्विगुणित हो रहा था। पूर्व में सन् 2023 में भी गुरुदेव का इडर शुभागमन हुआ था। आचार्यश्री सभी को मंगल आशीष प्रदान करते हुए इडर के अंजना पाटीदार एच.के.एम. कला एवं पी.एन. पटेल कॉमर्स कॉलेज में पधारे। आचार्यश्री के मंगल शुभागमन से कॉलेज परिवार भी हर्षित नजर आ रहा था।

इसके पूर्व शुक्रवार को प्रातःकाल युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उम्मेदगढ़ से मंगल विहार किया। अब आचार्यश्री अपनी धवल सेना के साथ क्रमशः अहमदाबाद के निकट होते जा रहे हैं। अहमदाबादवासी भी अपने आराध्य के अभिनंदन की तैयारियों में जोर-शोर से जुटे हुए हैं। कोबा में स्थित प्रेक्षा विश्व भारती में आचार्यश्री वर्ष 2025 का चतुर्मास होना निर्धारित है। चतुर्मास व्यवस्था समिति भी चातुर्मासिक व्यवस्थाओं को पूर्ण रूप देने में जुटी हुई है। लगभग 12 किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री इडर में पधारे।

कॉलेज परिसर में बने ‘महाश्रमणोत्सव समवसरण’ में आयोजित मुख्य मंगल प्रवचन कार्यक्रम में समुपस्थित जनता को युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने मंगल संबोध प्रदान करते हुए कहा कि दुनिया का हर आदमी सुखी रहना चाहता है। और आदमी ही दुनिया का हर प्राणी सुख में रहने का इच्छुक होता है, परन्तु सुख चाहने वाले कई बार दुःखी दिखाई देते हैं। एक प्रश्न हो सकता है कि वे कौन-से उपाय हैं, जिनका अनुशीलन कर आदमी सुख बन सकता है, अथवा रह सकता है? शास्त्र में सुखी बनने के सूत्र बताए गए हैं कि सुकुमारता को छोड़कर स्वयं को तपाने का प्रयास करना चाहिए। जो तपस्वी होता है, वह सुखी रह सकता है। जो कुछ कठिनाइयों अथवा कठोर परिस्थितियों को झेल सकता है, वह सुखी रह सकता है।

आदमी अपने जीवन में भौतिक सुविधाओं की इच्छा रखता है। कई बार ये इच्छाएं इतनी ज्यादा हो जाती हैं, जो अवांछनीय बन जाती हैं। इस कारण आदमी अवांछनीय सुविधावादी मनोवृत्ति वाला बन जाता है तो वह दुःखी भी बन जाता है। यदि कोई आदमी मानसिक रूप से मजबूत हो और वह कुछ कठिनाइयों को सहने की भावना रखता हो तो वह सुखी रह सकता है। किसी भी समूह, संगठन अथवा संस्था के कार्यकर्ताओं में यदि सुविधावादी वृत्ति होती है तो वह समूह, संगठन अथवा संस्था कितना काम कर सकती है। कार्यकर्ता को कभी पलंग मिले न मिले, जमीन पर सोना पड़े, कहीं निंदा और कभी प्रशंसा भी सुनने को मिले तो भी अपने पथ से विचलित नहीं होते हैं।

साधु के जीवन को ही देखें तो साधु तो जमीन पर सोने वाले होते हैं। गर्मी, सर्दी और वर्षा में पैदल ही चलने वाले होते हैं, लेकिन साधु का जीवन सुखी होता है। उसे आराम की ज्यादा आकांक्षा, लालसा नहीं होती। इसलिए आदमी को स्वयं को तपाने का प्रयास करना चाहिए। साधु हो या सामान्य आदमी उसे ज्यादा मोह से बचने का प्रयास करना चाहिए। निर्मोहता की स्थिति होती है तो दुःखी होने से बचा जा सकता है। किसी समस्या से अप्रभावित रहते हुए समता-शांति में रहने का प्रयास होना चाहिए। स्वयं को तपाकर तपस्वी की भांति रहने का प्रयास हो तो आदमी सुखी बन सकता है। संसार में सुखी रहने के लिए इन सूत्रों पर ध्यान देने का प्रयास करना चाहिए।

आचार्यश्री के मंगल प्रवचन के उपरान्त साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभाजी ने समुपस्थित जनता को उद्बोधित किया। आचार्यश्री के स्वागत में श्री लक्ष्मीलाल झाबक ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। स्थानीय तेरापंथ महिला मण्डल ने स्वागत गीत का संगान किया। भाविक व प्रक्षाल खिंवेसरा ने अपनी अभिव्यक्ति दी। ज्ञानशाला के ज्ञानार्थियों ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति दी। श्री योगेशभाई पटेल आदि ने भी अपनी अभिव्यक्ति दी व आचार्यश्री से मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया।

 

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